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आयतुल्लाह सैयद मुहम्मद हुसैनी बहिश्ती-३

हर समाज में भविष्य उज्जवल बनाने के लिए उत्कृष्ट समाधान विचारक एवं शिक्षित लोग प्रस्तुत करते हैं। डा. मोहम्मद हुसैनी बहिश्ती भी ऐसी ही हस्ती थे कि जो धर्म में परिवर्तनीय शोध चाहते थे। विशेषकर वे इस्लामी धर्मशास्त्र में दक्ष थे और जानते थे कि इस्लाम एक गतिशील एवं गति प्रदान करने वाला धर्म है कि जो समय की विभिन्न परिस्थितियों में उत्कृष्ट व्यवहारिक समाधान पेश करता है। वे मानव जीवन के व्यक्तिगत एवं सामाजिक हर क्षेत्र में इस्लाम की भूमिका देखते थे। इस कारण इस्लामी समाधानों को कि जो समय की आवश्यकताओं के दृष्टिगत होते हैं, अधिक महत्व देते थे। शहीद बहिश्ती के भाषणों एवं चिंताओं की जानकारी के बाद, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि स्वतंत्र मनुष्य शिक्षा-दीक्षा देना इस महान बुद्धिजीवि का मूल उद्देश्य था। डा. बहिश्ती की दृष्टि में स्वतंत्र मनुष्य वह मनुष्य है कि जो इच्छाओं, क्रोध और वासना की ज़ंजीरों तथा अपने विचारों पर दूसरों के वर्चस्व से मुक्ति प्राप्त कर ले। उनकी दृष्टि में इस प्रकार के मनुष्य का पालन पोषण एवं उत्पत्ति शिक्षकों एवं माता पिता के बुनियादी कर्तव्यों में से है। शहीद बहिश्ती कि जो युवाओं और बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में एक दक्ष विशेषज्ञ भी थे, इस बारे में समस्त माताओं और पिताओं से सिफारिश करते हुए कहते हैं कि श्रीमान व श्रीमती बच्चे को अपना दृष्टिकोण रखने का अवसर दीजिए, उसे ग़लत तर्क देने दीजिए, ग़लत निष्कर्ष निकालने दीजिए तथा जहां तक बहुत अधिक नुक़सान न हो इस ग़लत निष्कर्ष के पीछे जाए और स्वयं अनुभव हासिल करे, ख़ुद क़रान में उल्लेख है कि मैं मार्गदर्शन और सिफ़ारिश की किताब हूं किन्तु किन लोगों के लिए? चयन करने वाले मनुष्य के लिए... बच्चों को कड़वा अनुभव करने दीजिए। शहीद बहिश्ती इस प्रकार की सिफ़ारिशों द्वारा अपने रास्ते को उन आदर्शों एवं शैलियों से कि जो अनुभव और स्वतंत्रतापूर्वक चयन के अधिकार की भूमिका को नहीं मानते, अलग कर लेते हैं। धार्मिक शिक्षा-दीक्षा के विशेषकर बचपन एवं युवावस्था में प्रभावी परिणाम सामने आते हैं। किन्तु कदापि बच्चों को ज़ोर जबरदस्ती एवं हिंसा द्वारा इस्लामी शिक्षा नहीं देनी चाहिए। शहीद बहिश्ती का मानना है कि इस प्रकार की शिक्षा-दीक्षा से अनिर्णायक पुतले बनते हैं, वे शिक्षकों एवं गुरूओं से मांग करते हैं कि स्वतंत्र सोच एवं चयनकर्ता विद्यार्थी बनाएं। वे कहते हैं कि तुम शिक्षक और गुरु चाहते हो कि बच्चों को बाध्य करो कि वे धर्म में आस्था रखने वाले एवं शिष्टाचारी बनें? इस प्रकार के बनावटी एवं सुन्दर पुतलों का मूल्य एक सुन्दर मूर्ति से अधिक नहीं होगा। आईए हम सभी निर्णय लें कि हमारे बच्चे इंसान बनें। इससे क्या तात्पर्य है? इससे तात्पर्य है कि उन्हें अधिकार प्राप्त हों और वे होशियार और स्वतंत्र हों, इन बच्चों के प्रति हमारी और आपकी भूमिका सहयोग की भूमिका होनी चाहिए, तेज़ और स्वस्थ विकास के लिए अधिक भूमि प्रशस्त करने वाले की भूमिका होनी चाहिए, न कि किसी ऐसे सांचे में ढालने वाले की भूमिका कि जो बच्चे की कोमल एवं नाज़ुक प्रतिभाओं को कठोर सांचे में डाले और उसे एक पुतले के रूप में ढाल दे। आयतुल्लाह बहिश्ती के विचारों की एक और महत्वपूर्ण विशेषता बुद्धि के प्रति उनका दृष्टिकोण है। गहराई तक सोचने वाले इस विचारक की दृष्टि में बुद्धि एक ऐसा उपकरण है कि जो इंसान को मामलों के विश्लेषण की शक्ति प्रदान करता है। शहीद बहिश्ती विश्लेषक विचार को अत्यधिक महत्व देते हैं और उसे वास्तविकता तक पहुंचने एवं सही ज्ञान प्राप्ती के लिए महत्वपूर्ण कारक मानते हैं। उनका मानना है कि अगर शिक्षित एवं स्वतंत्र सोच रखने वाला व्यक्ति विश्लेषक बुद्धि रखता हो तो वो भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन में स्वस्थ जीवन एवं विकास व सफलता का मार्ग पा लेगा। वे इस संदर्भ में दिलचस्प बात कहते हैं कि इस्लाम पैग़म्बर की ईश्वरीय वाणी से शुरू नहीं होता है बल्कि मनुष्य के स्पष्तम ज्ञान से शुरू होता है तथा अपने मार्ग में ईश्वरीय वाणी एवं पैग़म्बर से मिलता है। इस कथन का अर्थ यह है कि अगर मनुष्य विश्लेषक एवं खोजी विचार रखता हो तो यह गतिशील और स्वस्थ विचार उसे सही रास्ता दिखाता है। सही सोच विचार अंततः इंसान को आकाश वाणी एवं ईश्वरीय आदेशों की वास्तविकता तक पहुंचा देता है। उस समय व्यक्ति सही विचार एवं ईश्वरीय संदेश की सहायता से वास्तविकता तक पहुंचने के मार्ग पर आगे पढ़ता है और इसके बाद से ईश्वरीय संदेश उसके ज्ञान एवं आचरण में भूमिका निभाता है। शहीद बहिश्ती आगे कहते हैं कि इस्लाम चाहता है कि अपने विश्लेषक विचारों के साथ स्पष्टतम बिंदुओं से आरम्भ करे और आगे बढ़े। जिस समय मनुष्य इस आधार पर आगे बढ़ता है तो वह ईश्वरीय संदेश और ईश्वरीय दूत तक एक वास्तविकता के रूप में पहुंचता है, और अगर न पहुंचे तो वास्तव में वह ईश्वरीय धर्म तक नहीं पहुंचा है। निरंतर सोच विचार, इस बुद्धिजीवि की अन्य सिफ़ारिशों में से है। शहीद बहिश्ती की दृष्टि में स्वतंत्र इंसान उस समय बुद्धिमत्ता तक पहुंच सकता है कि जब वह बुनियादी विषयों के बारे में सदैव चिंतन मनन करता रहे। उनकी दृष्टि में विकसित विचार एवं दृष्टिकोण मनुष्य को पथभ्रष्टता के जाल एवं जनता को धोखा देने से मुक्ति दिलाता है तथा उत्तम एवं विकसित जीवन उपहार स्वरूप प्रदान करता है। वे समाजी स्तर पर जनता को धोखा देने एवं झूठ बोलने को एक विध्वंसकारी कार्य मानते हैं और उससे मुक़ाबले के लिए अधिकारियों एवं जनता को चिंतन मनन, सच्चाई एवं सही आचरण की सिफ़ारिश करते हैं। शहीद बहिश्ती की दृष्टि में मनुष्य के मार्ग दर्शन एवं समाज के सुधार के लिए जनमत को धोखा देने और लोकप्रियता के लिए हाथ पैर मारने से बचने को दो मूल शर्तें मानते हैं। आयतुल्लाह बहिश्ती की दृष्टि में उत्तम सोच विचार क़रान मजीद की आयतों में चिंतन मनन करना है। इस ईश्वरीय पवित्र पुस्तक के बारे में उनका मानना है कि क़ुरान समस्त लोगों के उपयोग के लिए अवतरित हुआ है। क़ुरान धर्म में गहरी आस्था रखने वालों की पुस्तक है। ऐसी पुस्तक कि जो उज्जवल एवं प्रकाशमय है। वास्तविकताओं और कर्तव्यों को स्पष्ट एवं उल्लेख करने वाली। शहीद बहिश्ती की दृष्टि में क़ुरान किसी विशेष वर्ग के लिए अवतरित नहीं किया गया है बल्कि उसकी प्रकाशमय आयतें सभी के लिए समझने योग्य एवं साहस प्रदान करने वाली हैं तथा वास्तविकता की खोज करने वालों का मार्ग दर्शन करती हैं। वे क़ुरान को समझने के संबंध में कहते हैं कि इतिहास में ऐसी घटनाएं घटी हैं कि जो लोग मुसलमान नहीं थे और इस्लाम के विरोधी थे, वे क़ुरान की कुछ आयतों को सुनते थे और जो अर्थ भी उनसे समझते थे इस्लाम से प्रेम करने लगते थे और सही मार्ग प्राप्त कर लेते थे। शहीद बहिश्ती की दृष्टि में क़ुरान की आयतों का पढ़ना और चिंतन मनन करना मुसलमानों से विशेष नहीं है बल्कि क़ुरान संपूर्ण मानव समाज से संबंधित है। इसी प्रकार वे क़ुरान में मौजूद सिद्धांतों को पैग़म्बरे अकरम (स) के काल से विशेष नहीं मानते बल्कि उनका मानना है कि क़ुरान सदैव के लिए एवं अंतरराष्ट्रीय पुस्तक है, कदापि क़ुरान की आयतों का अर्थ उनके अवतरित होने के काल से विशेष नहीं किया जा सकता बल्कि आयतों के अर्थ को अन्य समय और स्थान की परिस्थितियों पर विस्तृत किया जा सकता है। यद्यपित निश्चित रूप से क़ुरान के विशेषज्ञ और अधिक ज्ञानी लोग ही क़ुरान के अर्थ की गहराई तक कुछ सीमा तक ही पहुंच सकते हैं और उन्हें विभिन्न कालों पर विस्तृत कर सकते हैं। युवावस्था में साहस और प्रेरणा, युवाओं के लिए डा. बहिश्ती की विशेष सिफ़ारिशों में से है। यद्यपि सार्थक साहस एवं प्रेरणा कि जो मनुष्य की प्रतिभा में विकास का कारण बने उनके दृष्टिगत है। वे इस संदर्भ में कहते हैं कि ख़ुशी, सकारात्मक विचारों का परिणाम एवं जीवन का प्राकृतिक तत्व है कि जो युवा के भविष्य निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। जबकि निराशावादी विचार युवाओं के मार्ग में समस्याएं एवं रुकावटें खड़ी करने अलावा कोई काम नहीं करते। एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं कि जितना भी युवा का साहस मज़बूत होगा, कठिन घटनाक्रमों के मुक़ाबले में अधिकतर प्रतिरोध करेगा, और कम ही क्रोध, घृणा, लालच, ईर्षा और प्रतिशोध के भंवर में फंसेगा। साहस एवं जोश कार्य एंव प्रगति का इंजन है। उसके बग़ैर कोई भी योजना व्यवहारिक नहीं होती है। साहस एवं जोश होता है कि जो ऊर्जा प्रदान करता है और एक प्याले का रूप धारण कर लेता है कि जो युवा को समस्त बाधाओं से पार कर देता है। अगर कहा गया है कि धर्म में आस्था पहाड़ को अपनी जगह से हिला देती है तो साहस एवं जोश के संबंध में भी कहा जा सकता है कि वह भी रास्ते से समस्त रुकावटें हटा देता है। शहीद बहिश्ती ने क़ुरान और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण के आधार पर जो पहला शोध किया वह जीवन में ख़ुशी और प्रसन्नता था। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई डा. बहिश्ती के बारे में कहते हैं कि स्वर्गीय श्रीमान बहिश्ती अपने वातावरण की पैदावार नहीं थे, अर्थात यह वातावरण डा. बहिश्ती जैसों को अस्तित्व में नहीं लाता है। उनका निर्माण अपने वातावरण से हटकर दूसरे कारकों द्वारा भी हुआ था। उनकी विशेषताओं में उनकी समझ एवं विचार की शक्ति थी कि जो उनके व्यक्तित्व का अंग थी। उन्होंने बहुत ही समझदारी से स्वयं का संपूर्ण निर्माण किया था। शहीद बहिश्ती अच्छी एवं लोकप्रिय आदतों का समूह थे और मैंने व्यक्तिगत रूप से विगत में और वर्तमान में श्री बहिश्ती जैसा व्यक्ति नहीं देखा है। शहीद बहिश्ती की शहादत वास्तव में उनके व्यक्तित्व की पूरक थी और प्रकृतिक मौत निश्चित रूप से उनके लिए कोई हैसियत नहीं रखती थी। hindi.irib.ir