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हिन्दुस्तान में फ़ितना ए वहाबियत

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हिन्दुस्तान में फ़ितना ए वहाबियत

हिन्दुस्तान में फ़ितना ए वहाबियत के नाम से यह किताब दरहक़ीक़त मेरी असल किताब फ़ितना ए वहाबियत का आख़िरी हिस्सा है जिसे कुछ मुख़लेसीन की मुसलसल फ़रमाइश और इसरार पर हिन्दी रस्मुल ख़त में अलग से शाया किया जा रहा है ताकि हिन्दीदां तबक़ा भी इससे मुस्तफ़ीज़ हो सके। इस आख़िरी बाब में हिन्दुस्तान की सरज़मीन पर वहाबियत की तौलीद व नशवोनुमा के साथ साथ ख़ुसूसी और ज़िमनी तौर पर 1905 से लेकर 1998 तक तक़रीबन सौ साला कज़ीया ए मदहे सहाबा और शियों की तरफ़ से चलायी जाने वाली तहरीक़ अज़ादारी के वाक़ेयात भी मरक़ूम जो ज़्यादा तर मुजाहिदे मिल्लत जनाब सैय्यद अशरफ़ हुसैन एडवोकेट मरहूम की किताब तहफ़्फ़ुज़े शियत और Victimization of Shia Minority (जिस का उर्दू तरजुमा जनाब इब्ने ज़की साहब ने किया था) से माख़ूज हैं। इसके अलावा इस ज़िमन में मुझे किताब फ़ितना ए वहाबियत की इशाअत के बाद सज्जाद अली ख़ां की किताब शियों की बेदारी के मुतालए का शरफ़ भी हासिल हुआ जिस की रौशनी में मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि इन किताबों में मदहे सहाबा और तहरीके अज़ादारी के जो वाक़ेआत तहरीर किये गये हैं उन में कहीं कहीं पर जानिबदाराना तर्ज़े अमल इख़्तियार किया गया है जिसकी बिना पर वाक़ेआत निगारी में बाज़ बाज़ मुक़ामात पर तज़ाद व इख़्तिलाफ़ पैदा हो गया है। मसलन मुजाहिदे मिल्लत जनाब सैय्यद अशरफ़ हुसैन साहब मरहूम की किताब तहफ़्फ़ुज़े शीअत से मैंने अपनी किताब फ़ितना ए वहाबियत के सफ़ा 178 पर तहरीर किया है किः- 30 मार्च 1936 को ही नवाब सुल्तान अली खां नाज़िम सिपहे अब्बासिया की क़यादत मे सोलह रज़ाकारों ने नारा ए तबर्रा बलन्द करते हुए खुद को इमामबाड़ा ग़ुफ़रांमआब के बाहर गिरफ़्तार करा दिया। इस वाक़्ये को जनाब सज्जाद अली खां ने अपनी किताब शियों की बेदारी में नवाब सुल्तान अली खां के बजाये नवाब फ़रेदों मिर्ज़ा साहब मरहूम की क़यादत से ताबीर किया है और गिरफ़्तारियां पेश करने वालों की तअदाद 319 बतायी है। इस के अलावा मौसूफ़ ने यह भी तहरीर फ़रमाया है कि 31 मार्च 1936 को मौलाना सै 0 कल्बे हुसैन साहब क़िबला (कब्बन साहब) ने एक बड़े मजमें के साथ गिरफ़्तारी दी , 1 अप्रैल को मौलाना नसीरुल मिल्लत ने और 2 अप्रैल को क़ौमी लीडर जनाब सैय्यद अली ज़हीर साहब ने खुद को गिरफ़्तार कराया। अपनी असल किताब फ़ितना ए वहाबियत के सफ़ह 205 पर अशरफ़ हुसैन साहब की किताब तहफ़्फ़ुज़े शीअत से मैंने कज्जन साहब की सुकूनत बन्जारी टोला तहरीर किया है जबकि सज्जाद अली खां साहब की सराहत के मुताबिक़ मरहूम की सुकूनत घंटा बेग की गढ़ैया थी। सफ़ा 216 पर मैंने तहफ़्फ़ुज़े शीअत से मक़सूद हुसैन की सुकूनत दरगाह हज़रत अब्बास ((अ.स.) ) तहरीर की थी जबकि मरहूम की सुकूनत कश्मीरी मोहल्ला है। इसी क़िस्म की और भी छोटी छोटी ग़ल्तियां किताबत के बाद प्रूफ़ रीडिंग या वाक़ियात की असल किताब फ़ितना ए वहाबियत में मुम्किन हो सकती हैं। जिन के बारे मे क़ारइने कराम से मेरी दस्तबसता गुज़ारिश है कि वह इस ज़ैल में हमें मुतावज्जे करें ताकि आइन्दा एडीशन में उन्हें दूर किया जा सके। आख़िर कलाम में यह वज़ाहत भी कर दूं कि इस हिन्दी किताब के साथ साथ असल किताब फ़ितना ए वहाबियत का मुतालेआ बहर हाल ज़रूरी है। जिस में वहाबियत की मुकम्मल तारीख़ बड़े मोहक़्क़ेक़ाना अन्दाज़ में पेश की गयी है। मुझे उम्मीद है कि क़ारइने कराम मेरी इस कोशिश को मुस्तहसन नज़रों से मुलाहेज़ा फ़रमायेंगे।