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अमर शौर्यगाथा

अमर शौर्यगाथा

अमर शौर्यगाथा

Publish number :

दूसरा

Publication year :

2009

Number of volumes :

1

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अमर शौर्यगाथा

इमाम हुसैन की ज़रीह सन साठ हिजरी क़मरी है। कुछ ही दिन पहले अपने पिता मुआविया की मुत्यु के बाद यज़ीद विस्तृत सीमाओं वाले इस्लामी जगत की बागडोर पर क़ब्ज़ा जमा चुका है। वह शराब के नशे में धुत है और ठहाके लगा रहा है किंतु उसकी आंखों से भय व चिन्ता के भाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। से याद आ रहा है कि उसके पिता मुआविया ने उसे चार व्यक्तियों की ओर से सचेत रहने को कहा था। मुआविया ने यह भी कहा था कि तीन व्यक्तियों को धोखे, धौंस-धमकी या फिर उच्च पद की लालच देकर मार्ग से हटाया जा सकता है परंतु पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और अली अलैहिस्सलाम के पुत्र हुसैन के साथ यह सब नहीं किया जा सकता क्योंकि उनका पालन-पोषण पैग़म्बरे इस्लाम की छत्रछाया में हुआ है। वे महान चरित्र और श्रेष्ठ प्रवृत्ति के लिए सर्वप्रसिद्ध हैं। एक अन्य स्थान पर मदीने का राज्यपाल वलीद अपने शासन के केन्द्र या दारुल इमारह में अपनी गद्दी पर बैठा हुआ ऊंचे पद के सपने देख रहा है। तभी यज़ीद की ओर से आने वाला पत्र उसे चौंका देता है। वह पत्र खोलता है। पत्र में लिखा हैः मुआविया के पुत्र यज़ीद की ओर से मदीने के राज्यपाल अत्बा के पुत्र वलीद के नाम! जान लो कि मुआविया इस संसार में नही रहे। उन्होंने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था। हे वलीद! तुम्हारा सबसे पहला कर्तव्य यह है कि मदीना वासियों विशेषकर अली के पुत्र हुसैन से स्वेच्छा से यह बलपूर्वक मेरी आज्ञापालन का वचन लो और यदि कोई इससे इंकार करे तो उसका सिर काटकर मेरे पास भेज दो। वलीद जो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के नाती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पहचानता था, बड़े दुख से बोलाः काश मैं मर गया होता ताकि यह दृष्य न देखता। परंतु दुख की यह भावना अधिक देर न रही। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम वलीद के बुलाने पर दारुल इमारह जाते हैं। वलीद उन्हें मुआविया की मृत्यु की सूचना देता है तथा यज़ीद की बैअत अर्थात आज्ञापालन का विषय छेड़ देता है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम स्थिति की गहराई को समझते हुए कहते हैं कि मेरे विचार में तुम गुप्त रूप से बैअत से संतुष्ट नहीं होगे और यही चाहोगे कि मैं लोगों के सामने बैअत करूं। वलीद ने जो यह सोचने लगा था कि अपने उद्देश्य की प्राप्ति में सफल हो गया है, बड़ी प्रसन्नता से कहाः जी हां, ऐसा ही है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहाः कल मेरी प्रतीक्षा करना ताकि लोगों को लेकर तुम्हारे पास आऊं।