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नहजुल बलाग़ा : ख़ुत्बा - 25

नहजुल बलाग़ा : ख़ुत्बा - 25 [ जब अमीरुल मोमिनीन को पय दर पय (लगातार) यह इत्तिलाआत मिलीं कि मुआविया के असहाब (मित्र) आप के मक़बूज़ा शहरों पर तसल्लुत (सत्ता) जमा रहे हैं और यमन के आमिल उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास और सिपहसालारे लश्कर सईद इब्ने नमरान बसर इब्ने अर्तात से मग़लूब (परास्त) हो कर हज़रत के पास पलट आए तो आप अपने असहाब (मित्रों) की जिहाद (धार्मिक युद्ध) में सुस्ती और ख़िलाफ़ वर्ज़ी (अवज्ञा) से बद दिल हो कर मिंबर की तरफ़ बढ़े और फ़रमाया ] ''यह आलम (हाल) है इस कूफ़े का, जिसका बन्दो बस्त मेरे हाथ में है। (ऐ शहरे कूफ़ा) अगर तेरा यही आलम रहा कि तुझमें आंधियां चलती रहीं, तो खुदा तुझे ग़ारत करे। फिर आप ने शयर का यह शेर बतौरे तम्सील (उदाहरणार्थ) पढ़ा :-- ऐ अम्र ! तेरे अच्छे बाप की क़सम, मुझे तो इस बर्तन से थोड़ी सी चिकनाहट ही मिली है (जो बर्तन के ख़ाली होने के बाद उस में लगी रह जाती है)'' मुझे यह ख़बर दी गई है कि बसर यमन पर छा गया है। बख़ुदा मैं तो अब उन लोगों के मुतअल्लिक़ (सम्बन्ध में) यह ख़याल करने लगा हूं कि वह अन्क़रीब सल्तनत व दौलत को तुम से हथिया लेंगे, इस लिये कि वह (मर्कज़े) बातिल पर मुत्तहिद व यकजा हैं। और तुम अपने मर्कज़े (केन्द्र) हक़ से परागन्दा (तितर-बितर) व मुनतशिर। तुम अमरे हक़ (सत्यबात में) अपने इमाम के नाफ़र्मान (अवज्ञाकारी) और यह बातिल में भी अपने इमाम के मुतीइव फ़र्माबरदार (आज्ञापालक) हैं। वह अपने साथी (मुआविया) के साथ अमानतदारी के फ़र्ज़ (कर्तव्य) को पूरा करते हैं और तुम ख़ियानत करने से नहीं चूकते। वह अपने शहरों में अम्न बहार रखते हैं और तुम शोरिशें (उपद्रव) बर्पा करते हो। मैं अगर तुम में से किसी को लकड़ी के एक पियाले का भी अमीन बनाऊं, तो यह डर रहता है कि वह उस के कुण्डे को तोड़ कर ले जायेगा। ऐ अल्लाह ! वह मुझ से तंग दिल हो चुके हैं और मैं उन से। मुझे उन के बदले में अच्छे लोग अता कर और मेरे बदलेमें उन्हें कोई और बुरा हाकिम दे। खुदाया इन के दिलों को इस तरह अपने ग़ज़ब (क्रोध से) पिघला दे जिस तरह नमक पानी में घोल दिया जाता है। खुदा की क़सम ! मैं इस चीज़ को दोस्त रखता हूं कि तुम्हारे बजाय मेरे पास बनी फ़रास इब्ने ग़निम के एक ही हज़ार सवार होते। ऐसे जिन का वस्फ़ (गुण) शायर ने यह बयान किया है कि अगर तुम किसी मौक़े पर उन्हें पुकारो, तो तुम्हारे पास ऐसे सवार पहुंचे जो तेज़ रवी में गर्मियों के अब्र (बादल) के मानिन्द (समान) हैं। (इसके बाद हज़रत मिंबर से उतर आए।) सैयिद रज़ी अलैहिर्रहमा कहते हैं कि इस शेर में लफ्ज़े '' अरमियह '' रम्मी की जम्अ है, जिस के मअनी अब्र के हैं और ''हमीम'' के मअनी यहां पर मौसिमे गर्मा के हैं और शायर ने गर्मियों के अब्र की तख्सीस इस लिये की है कि वह सरीउस्सैर और तेज़ रफ़तार होता है। उस कि वजह यह है कि वह पानी से खाली होता है और अब्र सुस्तगाम उस वक्त होता है जब उस में पानी भरा हुआ हो और ऐसे अब्र मुल्के अरब में उमूमन सर्दियों में उठते हैं। इस शेर से शायर का मक़्सूद (अभिप्राय) यह है कि उन्हें जब मदद के लिये पुकारा जाता है और उनसे फ़र्याद रसी की जाती है तो वह तेज़ी से बढ़ते हैं और इस की दलील शेर का पहला मिसरा है '' अगर तुम पुकारो तो वह तुम्हारे पास पहुंच जायेंगे ।''' जब तह्कीम के बाद मुआविया के क़दम मज़बूती से जम गए तो उस से अपना दाइरए सल्तनत वसीइ करने के लिये अमीरुल मोमिनीन के मक़्बू़जा शहरों पर क़ब्ज़ा जमाने के तदबीरें शुरुउ कर दीं और मुख्तलिफ़ इलाक़ों में अपनी फ़ौजें भेज दीं ताकि वह जब्रो तशद्दुद से अमीरे शाम के लिये बैअत हासिल करें। चुनांचे इस सिलसिले में बसर इब्ने अर्तात को हिजाज़ रवाना किया, जिसने हिजाज़ से लेकर यमन तक हज़ारों बे गुनाहों के खून बहाए। क़बीलों के क़बीले ज़िन्दा आग में जला दिये और छोटे छोटे बच्चों तक को क़त्ल किया। यहां तक के उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास वालिये यमन के दो कमसिन बच्चों क़ुस्म और अब्दुर्रहमान को उन की मां हौरिया बिन्ते खालिद के सामने ज़ब्ह कर दिया। अमीरुल मोमिनीन को जब इन सफ्फ़ाकियों और खूं रेज़ियों का इल्म हुआ तो आप ने उस की सरकोबी के लिये लश्कर रवाना करना चाहा। मगर पयहम जंग आज़माइयों की वजह से लोग जंग से जी छोड़े बैठे थे और सरगर्मी के बजाय बद दिली उन में पैदा हो चुकी थी। हज़रत ने जब उन को पहलू बचाते देखा तो यह खुत्बा इर्शाद फ़रमाया जिस में उन्हें हमीयतो ग़ैरत दिलाई है और दुश्मन की बातिल नवाज़ियों और उन के मुक़ाबिले में उन की कोताहियों का तज़्किरा कर के उन्हें जिहाद पर उभारा है। आखिर जारिया इब्ने क़िदामा ने आप की आवाज़ पर लब्बैक कही, और दो हज़ार के लश्कर के साथ उस के तआक़ुब में रवाना हुए और उस का पीछा कर के उसे अमीरुल मोमिनीन मक़्बूज़ात से निकाल बाहर किया। rizvia.net