इमाम हसन मुजतबा अलैहिस सलाम

जैसे ही ईश्वरीय कृपा के प्रतीक पैग़म्बरे इस्लाम ने इस नश्वर संसार से आंखें मूंदी वैसे ही दुख के अथाह सागर में डूबे मन से हज़रत अली ने पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहाः मेरे माता पिता आप पर न्योछावर हो जाएं हे ईश्वरीय पैग़म्बर! आप के स्वर्गवास से वह संपर्क टूट गया जो दूसरों के स्वर्गवास इस प्रकार नहीं टूटा था और वह ईश्वरीय मार्गदर्शन नबुव्वत तथा ईश्वरीय संदेश वही है जिसका संपर्क टूट गया। आपका दुख दूसरों दुख ग्रस्त लोगों को सांत्वना देने वाला है। यह इतना बड़ा दुख है जिसने पूरी जनता को शोकाकुल कर दिया है। यदि आपने धैर्य बरतने का आदेश न दिया होता और दुख में आपा खोने से न रोका होता तो मैं इतना रोता कि आंसूओं के सोते सूख जाते। शरीर से प्राण निकालने वाला यह दुख मेरे मन में सदैव रहेगा। मेरे माता पिता आप पर न्योछावर हों हे ईश्वरीय दूत! मुझे अपने ईश्वर के निकट याद रखिएगा और कदापि न भूलिएगा।  

हज़रत अली पैग़म्बरे इस्लाम के सबसे अच्छे सहायक थे और वह पैगम्बरी के उतार चढ़ाव से भरी घटनाओं के तेईस वर्षों तक पैग़म्बर के साथ रहे तथा पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवाद के दुखद दिन के बारे में कहते हैः पैग़म्बरे इस्लाम ऐसी स्थिति में परलोक की ओर सिधारे जब उनका सिर मेरे सीने पर था और मेरे हाथों में उन्होने दम तोड़ा। मैंने अपने हाथों को अपने चेहरे पर श्रृद्धा स्वरूप मल लिया फिर उनके शरीर को स्नान दिया। इस कार्य में फ़रिश्ते मेरा हाथ बटां रहे थे। ऐसा लगा रहा था मानो घर का हर भाग बिलख बिलख कर रो रहा हो और हर ओर विलाप हो रहा हो। फ़रिश्तों का एक गुट उतरता था तो दूसरा गुट ऊपर जाता था। जब तक पैग़म्बरे इस्लाम को दफ़्न नहीं किया उस समय तक एक क्षण भी फ़रिश्तों द्वारा पैग़म्बरे इस्लाम पर नमाज़ पढ़ने का क्रम नहीं टूटा। अंतिम ईश्वरीय दूत एवं इस्लाम के चमकते सूर्य हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के स्वर्गवास पर आप सभी की सेवा में हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं। बहुत से लोगों के लिए पैग़म्बरे इस्लाम के इस नश्वर संसार से चले जाने की कल्पना करना भी कठिन था क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम ईश्वर की ओर से चुनी गई हस्ती थीं और उन्होंने बहुत थोड़े समय में लोगों के बीच प्रेम व भाईचारे का वातावरण उत्पन्न करने के साथ ही न्याय पर आधारित ऐसी व्यवस्था की बुनियाद रखी थी जिससे सभी वर्ग के लोगों को लाभ पहुंच रहा था। इस संदर्भ में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैः पैग़म्बरे इस्लाम के भेजे जाने से लोगों को प्राप्त होने वाली उन महान ईश्वरीय अनुकंपाओं के बारे मे सोचो कि किस प्रकार उसने लोगों को अपने धर्म के आज्ञापालन से जोड़ा और उन्हें एकजुट किया। ईश्वरीय अनुकंपाओं ने लोगों को अपनी छत्रछाया में ले लिया और उनके लिए कल्याण के सोते खोल दिए तथा ईश्वरीय विभूतियों ने उन्हें अपने दामन में ले लिया। लोगों का जीवन अनुकंपाओं से भर गया तथा उनका जीवन मंगलमय हो गया। इस्लामी प्रशासन की छत्रछाया में उनके सामाजिक मामले सुदृढ़ हुए और उन्हें सम्मान मिला तथा उन्हें अमर सत्ता प्राप्त हुई। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास को चौदह सौ वर्षों से अधिक का समय बीच चुका है किन्तु आज भी जैसे ही इस महान हस्ती का नाम आता है वैसे ही लोगों के चेहरे प्रसन्नता से खिल उठते हैं। हर दिन विश्व में सुदूर क्षेत्रों में डेढ़ अरब मुसल्मान नमाज़ में पैग़म्बरे इस्लाम के अंतिम ईश्वरीय दूत होने की ग्वाही देते हैं ईश्वर से उनकी मंगलकामना करते हैं और उस धर्म का पालन करते हैं जो पैग़म्बरे इस्लाम उनके लिए उपहारस्वरूप लाए। वास्तव में पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के पश्चात इस्लामी समाज को उसके हाल पर नहीं छोड़ दिया गया है बल्कि आज भी पैग़म्बरे इस्लाम अपने प्रकाशमान व्यक्तित्व से लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं इसलिए लोगों के मानवता के इस महानतम मार्गदर्शक के प्रति कुछ कर्तव्य हैं। जैसा कि पवित्र क़ुरआन ने इस कर्तव्यों के नियामक रेखांकित कर दिए हैं जो हर काल व हर समय में मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक बन सकते हैं। पवित्र क़ुरआन में पैग़म्बरे इस्लाम को श्रृद्धा सुमन अर्पित करने पर बहुत बल दिया गया है। ईश्वर ने क़ुरआन में बहुत से स्थानों पर अपने नाम के साथ पैग़म्बरे इस्लाम का नाम लिया और उनके अनुसरण को ईमान तथा अपने सामिप्य का चिन्ह कहा है। कुछ आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम की महानता का इस सीमा तक उल्लेख किया गया है कि ईश्वर की प्रसन्नता को उनकी प्रसन्नता पर निर्भर कहा गया है या दूसरे शब्दों में जब तक पैग़म्बरे इस्लाम किसी से प्रसन्न नहीं होंगे उस समय तक ईश्वर उस व्यक्ति से प्रसन्न नहीं होगा। जैसा कि ईश्वर सूरए तौबा की आयत क्रमांक 94 द्वारा कि जिसका अर्थ है ईश्वर और पैग़म्बर तुम्हारे कर्मपत्र देख रहे हैं, यह याद दिलाया जा रहा है कि पैग़म्बरे इस्लाम लोगों के कर्म के सम्बन्ध में गवाह हैं। पैग़म्बरे इस्लाम अपने व्यक्तिगत जीवन में भी महान थे। वह राजनैतिक, न्यायिक, सैनिक सहित सभी प्रकार की शक्ति से संपन्न होने के बावजूद आडम्बर रहित थे तथा उनमें घमण्ड छू कर भी नहीं था। वह अपने साथियों एंव अनुयाइयों के बीच बहुत ही विनीति मुद्रा में बैठते थे। पैग़म्बरे इस्लाम अपने अनुयाइयों के बीच इस प्रकार बैठते कि वृत्ताकार बन जाता था। इसके साथ ही पैग़म्बरे इस्लाम के सम्मान की उनके स्वर्गवास के पश्चात भी अनदेखी नहीं करना चाहिए जैसा कि इतिहास में मिलता है कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम के शहीद होने के पश्चात जब कुछ लोगों ने उनके शरीर को उनके नाना पैग़म्बरे इस्लाम की क़ब्र के बग़ल में दफ़्न होने से रोकने के लिए बहुत ऊंचे स्वर में विरोध किया तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने लोगों से कहा कि वे क़ुरआनी आदेशानुसार पैग़म्बरे इस्लाम की क़ब्र के निकट ऊंची आवाज़ में बात न करें। फिर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः ईश्वर ने मोमिन के सम्बन्ध में जिस चीज़ से उसके जीवन में रोका है वह चीज़ उसके स्वर्गवास के पश्चात भी वर्जित है अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के पश्चात उनके रौज़े में ऊंचे स्वर में बात करना या बहस व तकरार करना उसी प्रकार वर्जित है जिस प्रकार ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन काल में लोगों को उनसे ऊंचे स्वर मे बात करने से रोका था। सूरए आराफ़ की आयक क्रमांक 157 में उन लोगों को मोक्षप्राप्त कहा गया है जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम का सम्मान किया तथा उनकी सहायता की। सूरए आराफ़ की 157 वीं आयत में ईश्वर कह रहा हैः जो लोग उस पर ईमान लाए और उसका समर्थन तथा सहायता की और उस प्रकाश का अनुसरण किया जो उस पर उतारा गया उन्हीं लोगों को मोक्ष प्राप्त है। पैग़म्बरे इस्लाम की आत्मा शुद्ध थी तथा उनका व्यक्तित्व अनुदाहरणीय गरिमा का नमूना था इसलिए यह स्पष्ट सी बात है कि शुद्ध आत्माएं अशिष्ट कर्मों से दुखी होती हैं जैसा कि पवित्र क़ुरआन लोगों से कह रहा है कि वे ऐसे कर्म न करें जिनसे ईश्वर और उसके पैग़म्बर अप्रसन्न हों। यह कहा जा सकता है कि इस समय जो बात पैग़म्बरे इस्लाम सर्वाधिक दुखी होने का कारण है वह मुसल्मानों के बीच मतभेद तथा एकता व समरस्ता का अभाव है क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम की मुख्य चिंता लोगों के बीच एकता व समरस्ता पैदा करना थी। पवित्र क़ुरआन के अनुसार लोगों के महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से एक यह है कि वे पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से प्रेम करें। सूरए शूरा की आयत क्रमांक 23 में ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम से कह रहा हैः लोगो से कह दो कि मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करने के बदले में तुमसे मात्र यह चाहता हूं कि तुम मेरे परिजनों से प्रेम करो। यह विषय इसलिए महत्वपूर्ण है कि पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से प्रेम तथा उनका अनुसरण समाज को सही मार्ग पर ले जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन वे पवित्र एंव महान हिस्तयां हैं जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम से प्रशिक्षण प्राप्त किया और वे पैग़म्बरे इस्लाम के पश्चात मनुष्य के कल्याण की ओर सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक हैं। यह कहा जा सकता है कि पैग़म्बर के पश्चात उनके मार्ग पर चलना मनुष्य का सबसे बड़ा कर्तव्य है। पवित्र क़ुरआन सूरए निसा की आयत क्रमांक 64 में कहता हैः मैंने किसी पैग़म्बर को नहीं भेजा सिवाए इसके कि ईश्वर के आदेश पर उसका अनुसरण किया जाए। पैग़म्बरे इस्लाम ने पतन की ओर उन्मुख मानवता को कल्याण का मार्ग दिखाया और एक निरक्षर व असभ्य जाति को सभ्य बनाया। निःसंदेह यह परिपूर्ण सिद्धांत किसी विशेष काल से विशेष नहीं है और पैग़म्बरे इस्लाम का अनुसरण केवल उनके जीवन काल तक सीमित नहीं है। ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को मानवता के लिए एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया है। एक एसी हस्ती जो मनुष्य के लिए सभी प्रकार के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक तथा धार्मिक मामलों में उपयोगी है। वह एसी हस्ती है जो हर प्रकार की आत्ममुग्धता से पाक है, ईश्वर की मर्ज़ी के अतिरिक्त और कुछ नहीं सोचती, उसका व्यक्तित्व त्रुटिरहित है और वह लोगों का उनसे अधिक शुभचिंतक है। वे उच्चतम नैतिक मूल्यों और ईश्वरीय तेज के प्रतीक हैं। उनका अनुसरण मनुष्य को मोक्ष प्रदान करता है। पवित्र क़ुरआन लोगों से कह रहा है कि वे करनी, कथनी, शिष्टाचार और परंपराओं में पैग़म्बर से आगे निकलने का प्रयास न करें। इसी प्रकार धार्मिक शिक्षा संकटग्रस्त वर्तमान मानव समाज से यह चाहती है कि वे पैग़म्बरे इस्लाम की शैली तथा उनके उच्च नैतिक मूल्यों को भलिभांति पहचानें और उसे अपने जीवन में ढालें। अंत में मोमिन का एक कर्तव्य यह है कि वह ईश्वर से उस महान हस्ती के लिए मंगलकामना करे और उसका सम्मान करे। जैसा कि सूरए अहज़ाब की आयत 56 में ईश्वर कह रहा हैः ईश्वर और उसके फ़रिश्ते पैग़म्बर की मंगलकामना करते हैं, हे ईमान लाने वाले लोगो पैग़म्बर की मंगलकामना करो और उसके आदेश के सामने स्वंय को पूर्णतः समर्पित कर दो।