विवाह की आवश्यकता - 2
विवाह की आवश्यकता - 2
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इससे पहले हमने कहा था कि विवाह एक पावन बंधन है और इंसान के व्यक्तिगत जीवन में उसका बहुत महत्व है। इस आधार पर स्वाभाविक , प्राकृतिक, धार्मिक और सामाजिक कारणों से विवाह मनुष्य के जीवन की एक आधार भूत आवश्यकता है। समाज शास्त्रियों और प्रशिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सही विवाह और उसके समस्त पहलुओं को ध्यान में रखने में ही समाज की सुरक्षा नीहित है। इस आधार पर विवाह सही ढंग से होना चाहिये ताकि पति -पत्नी का विकास हो और उन दोनों की क्षमताएं ओर योग्यताएं निखरें। उद्देश्य के बिना किया जाने वाला विवाह वैसे ही है जैसे किसी इमारत की बुनियाद खराब और गैर ठोस ज़मीन पर रख दी जाये। अगर इस प्रकार का विवाह किया जायेगा तो निश्चित रूप से वह संतोषजनक व सफल जीवन का स्थान नहीं होगा। हालिया दशकों में बहुत से विशेषज्ञों और अध्ययनकर्ताओं का ध्यान पति- पत्नी के बीच संबंधों और उसका परिवार के स्वास्थ्य पर प्रभाव जैसे विषयों की ओर गया है। इस समय मनोवैज्ञानिक दृष्टि से जिस चीज़ पर बहस व चर्चा की जाती है वह यह है कि विवाह में कौन कौन सी चीज़ें प्रभावी होती हैं। इस संबध में सांस्कृतिक, आर्थिक और आध्यात्मि व मनोवैज्ञानिक जैसे मामलों पर ध्यान दिया गया है। प्रश्न यह है कि विवाह इतना महत्वपूर्ण क्यों है उसकी आवश्कता क्या है? क्या आप ने अब तक कभी इस विषय के बारे में सोचा? अगर आप थोड़ा सा सोचेंगे तो आप पहले ही चरण में समझ जायेंगे कि विवाह कानूनी और वैध तरीक़े से प्राकृतिक आवश्यकता का उत्तर है। अगर सही समय पर इस प्राकृतिक आवश्यकता का उत्तर न दिया जाये तो बहुत ही खतरनाक सिद्ध हो सकता है। इस आवश्यकता के पूरा न होने पर न केवल मनुष्य के शरीर को आघात पहुंचता है बल्कि आत्मिक व मानसिक क्षति भी पहुंचती है। दांपत्य जीवन पति- पत्नी के संयुक्त जीवन में शांति और प्रेम का आरंभिक बिन्दु है। पति पत्नी का एक दूसरे की ओर झुकाव व रुझान और एक दूसरे से प्रेम वह चीज़ है जिसे महान व कृपालु ईश्वर ने दोनों के मध्य रख दिया है और इसे उसने अपनी निशानियों में बताया है और दोनों के मध्य प्रेम शारीरिक आवश्यकता से बढकर है। विवाह वह चीज़ है जिससे शारीरिक व मानसिक आवश्यकता की पूर्ति होती है चाहे महिला व लड़की हो या पुरुष व जवान। विवाह वह चीज़ है जो पति- पत्नी की परिपूर्णता का कारण बनता है। स्त्री और पुरुष मानवता में समान हैं परंतु शारीरिक व मानसिक दृष्टि से एक दूसरे से कुछ अंतर भी रखते हैं। अलबत्ता इसका मतलब किसी एक की कमी दूसरे की परिपूर्णता नहीं है बल्कि यही अंतर ही समाज और परिवार में संतुलन का कारण है और यही अंतर समाज में वांछित संतुलन तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करता है। यह विशेषताएं व भिन्नताएं स्त्री- पुरूष के एक दूसरे की ओर रुझान का कारण बनती हैं और यही रुझान बहुत सी आवश्यकताओं की पूर्ति की भूमिका बनती है। ईश्वरीय धर्म इस्लाम की शिक्षाओं में आया है कि स्त्री और पुरुष अपनी स्वाभाविक व प्राकृतिक विशेषताओं को एक दूसरे पर श्रेष्ठता का कारण न समझें या सामने वाले पक्ष की प्राकृतिक विशेषता को अपनी कमी न समझें। संयुक्त जीवन में दोनों पक्षों को चाहिये कि वे एक दूसरे की भिन्नताओं व मानवीय विशेषताओं का सम्मान करें और दोनों को चाहिये कि वे एक दूसरे के स्थान को अपने जीवन साथी के रूप में स्वीकार करें और दोनों एक दूसरे के स्थान पर होने की आकांक्षा व अभिलाषा न करें। पति- पत्नी को चाहिये कि दोनों एक दूसरे को समझें, एक दूसरे को परिपूर्ण बनायें परंतु वे शारीरिक व मानसिक दृष्टि से कभी भी एक दूसरे के समान नहीं हो सकते। जर्मन मनोवैज्ञानिक एरिक फ्रोम स्त्री पुरुष के मध्य अंतरों की समीक्षा करने के बाद कहते हैं” स्त्री- पुरुष एक दूसरे को समझ सकते हैं और वे एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं परंतु कभी भी एक दूसरे जैसे नहीं हो सकते और यह उस अंतर के कारण है जो उनके अस्तित्व में रख दिया गया है” इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अधिकांश परिवारों में जो झगड़े होते हैं पति- पत्नी के बीच तनाव रहता है बात- बात पर दोनों एक दूसरे से लड़ते हैं उन सबका कारण एक दूसरे की शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक आवश्कताओं का पूरा न होना है। दूसरे शब्दों में भावनात्मक निर्धनता इन समस्याओं का मूल कारण है। अतः इस वास्तविकता के दृष्टिगत कहा जा सकता है कि इस्लाम की दृष्टि में अच्छी महिलाएं वे हैं जिन्हें अपने पारिवारिक जीवन में सबसे अधिक शांति प्राप्त है और उनका अस्तित्व प्रेम व दया का सबसे मूल्यवान स्रोत हो। प्रेम के सबसे बड़े भाग का संबंध महिला से है। यानी परिवार के शांतिपूर्ण होने में महिला के प्रेम की पहली भूमिका है। इस आधार पर विवाह करने का एक महत्वपूर्ण कारण परिवार का गठन और मानसिक व आत्मिक शांति प्राप्त करना है जो परिवार की छत्रछाया में ही व्यवहारिक हो सकता है। विवाह का एक कारण निखार और परिपूर्ण होना है। बाल्याकाल गुज़रने और प्रौढ उम्र तक पहुंचने के लिए नये चरण को तय करने की आवश्यकता है जो विवाह के परिप्रेक्ष्य में ही अस्तित्व में आता है। विवाह करने वाले व्यक्ति के अस्तिव में यह आभास उत्पन्न होता है कि वह एक स्वतंत्र व स्वाधीन इंसान है और अब वह बड़ा हो गया है और अब वह पति या पत्नी के रूप में अपनी भूमिका के निर्वाह का प्रयास करता है। लड़की और लड़का विवाह हो जाने के बाद अपने कुंवारेपन की बहुत सी यादों को भूल जाते हैं और विवाह की नई परिस्थिति में वे नये अनुभवों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि विवाह लड़के और लड़की दोनों को शांति प्रदान करता है और यह विवाह इस बात का कारण बनता है कि दोनों महत्वपूर्ण उद्देश्य की ओर आगे बढ़ें। क्योंकि विवाह के बाद लड़के और लड़की को जो शारीरिक व मानसिक शांति मिलती है उसकी छत्रछाया में वे अधिक प्रयास कर सकते हैं। अलबत्ता इसके लिए विवाह का सफल होना आवश्यक है। ईरानी मनोवैज्ञानिक डाक्टर श्रीमती नव्वाब नेजाद कहती हैं” लड़की और लड़का बालिग होने के बाद अपनी कमियों और असंख्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विवाह करना चाहते हैं और योग्य जीवन साथी का चयन करके अपनी दिली आरज़ूओं को पूरा करना चाहते हैं। जब इंसान संयुक्त रूप से जीवन बिताना आरंभ कर देता है तो वह अधिक जिम्मेदारी का आभास करता है। वह अपने जीवन को अर्थ व लक्ष्यपूर्ण समझता है तथा परिवार में अपने कार्य व प्रयास के परिणामों से लाभान्वित होता है” अनैतिक कार्यों से दूर रहने के लिए विवाह आवश्यक है। परिवार और समाज की सुरक्षा के लिए विवाह आवश्यक और लाभप्रद है। निश्चित रूप से विवाह वह पावन बंधन है जो इंसान को गलत व अनैतिक कार्यों की ओर जाने से रोकता है विवाह के कारण बहुत से अनैतिक कार्यों में ध्यान योग्य कमी होती है। यही कारण है कि इस्लाम की शिक्षाओं में विवाह करने पर बहुत बल दिया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम के एक कथन में आया है कि विवाह करने से इंसान का आधा धर्म पूरा हो जाता है। इंसानियत को बाकी रखने के लिए भी विवाह आवश्यक है अगर समस्त इंसान विवाह न करें और उनके पास कोई संतान भी न हो तो कुछ वर्षों के बाद पूरी ज़मीन से इंसान ही समाप्त हो जायेगा। दूसरे शब्दों में मानव समाज ही समाप्त हो जायेगा। अधिकांश इंसान यह चाहते हैं कि उनकी नस्ल चले, उनका वंश बाकी रहे और उनकी संताने हों। अलबत्ता इस बारे में महिलाएं पुरुषों से अधिक इस बात को पसंद करती हैं कि उनके कोई बच्चा हो और उनके अंदर मां बनने की जो भावना है वही उसका मूल कारण है। माता- पिता और बच्चों के बीच में जो प्रेमपूर्ण संबंध होते हैं वह इंसान की आत्मा को शांति प्रदान करते हैं और यह शांति इंसान को उसी समय प्राप्त होती है जब वह विवाह करता है। यहां तक हमने जो कुछ बयान किया वह विवाह के महत्व और उसकी आवश्यकता के बारे में था और अब हम इस बारे में चर्चा करना चाहते हैं कि कौन सी चीज़े हैं जो वैवाहिक जीवन की मज़बूती का कारण बनती हैं दूसरे शब्दों में किस समय कहा जा सकता है कि विवाह सफल हुआ है? अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि सफल विवाह वह है जिसमें महिला और पुरुष दोनों परिपूर्णता का मार्ग तय करें। आम तौर पर हर इंसान चाहे वह स्त्री हो या पुरुष अपने काम के अलावा यह चाहता है कि आध्यात्मिक दृष्टि से प्रगति करे। जो पति -पत्नी एक दूसरे की भावनाओं पर ध्यान देते हैं वास्तव में वे अपने मध्य मज़बूत संबंधों की बुनियाद रखते हैं परंतु यह चीज़ व्यवहारिक नहीं होगी मगर यह कि जीवन साथी के चयन में आवश्यक ध्यान दिया गया हो। अगर जीवन साथी के चयन में आवश्यक चीज़ों का ध्यान नहीं रखा गया तो परिवार में नाना प्रकार की समस्याएं अस्तित्व में आयेंगी। मनोवैज्ञानिक और परिवार विशेज्ञ विवाह के संबध में विभिन्न चीज़ों व मापदंडों को बयान करते हैं जैसे एक दूसरे की पहचान, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिति व उनकी पहचान। hindi.irib.ir