ईरान में बाल फ़िल्म जगत-4

इब्राहीम फुरोज़िश ईरान के प्रसिद्ध, पटकथा लेखक, और निर्देशक हैं जो बाल फिल्मों के कारण विख्यात हैं। वे चालीस वर्षों से अधिक समय से बाल सेनेमा के क्षेत्र में सक्रिय हैं। उन्हें निकट से जानने वाले सभी लोगों का कहना है कि वे एक विनम्र व बुद्धिमान फिल्मकार हैं जो ईरान में बाल सेनेमा जगत में विकास के लिए सदैव प्रयासरत रहे हैं। वे उन फिल्मकारों में से हैं जिन्हें स्थानीय व ग्रामीण क्षेत्रों से अधिक लगाव और अपनी फिल्मों में भी सदा इन्ही क्षेत्रों और वहां के निवासियों के जीवन के फिल्मांकन का प्रयास करते हैं। इब्राहीम फुरोज़िश ७३ वर्ष पूर्व तेहरान में जन्मे। तीस वर्ष की आयु में उन्होंने निर्देशन के क्षेत्र में आर्ट कालेज से डिग्री प्राप्त की और बाल फिल्म केन्द्र के अध्यक्ष का पद संभाला। ७ वर्षों तक वे इस पद पर रहे जो इस केन्द्र के लिए उपलब्धियों भरा काल समझा जाता है। इस अवधि में देश के प्रसिद्ध फिल्मकार इस केन्द्र से जुड़े और लगभग ७० लघु और लंबी फिल्मों का उत्पादन हुआ। वास्तव में इब्राहीम फुरोज़िश ईरान में बाल सेनेमा के क्षेत्र में अग्रणी लोगों में से हैं और उन्होंने एसे काल में फिल्मकारों को बाल फिल्मों के निर्माण की ओर आकृष्ट किया जब ईरान में बाल सेनेमा से अधिक लोग परिचित तक नहीं थे। निर्देशन के क्षेत्र में इब्राहीम फुरोज़िश ने सब से पहला अनुभव वर्ष १९७२ में एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बना कर किया। अर्गे बम नामक यह डाक्यूमेंट्री फिल्म बम नगर तथा उसके प्रचीन दुर्ग के बारे में थी। उसके बाद उन्होंने स्क्रिप्ट लेखन का काम आरंभ किया और कई एनीमेशन फिल्मों के स्क्रिप्ट लिखे जिन्हें ईरान के प्रसिद्ध फिल्मकार, अली अकबर सादकी जैसे कलाकारों ने फिल्म का रूप दिया। यह एनीमेशन फिल्में, आज भी चालीस वर्ष बीत जाने के बावजूद रोचक और दर्शनीय हैं और पटकथा तथा निर्माण शैली की दृष्टि से श्रेष्ठ रचनाओं में गिनी जाती हैं। इन फिल्मों में ईरान की राष्ट्रीय पहचान तथा सांस्कृतिक विरासत जैसे विषयों जिस सुन्दर और सादे शब्दों में बच्चों के लिए बयान किया गया है वह वास्तव में इन फिल्मों की मुख्य विशेषता है। इब्राहीम फुरोज़िश ने ईरान में इस्लामी क्रांति के बाद अधिक गंभीर विषयों के साथ फिल्म निर्माण का काम आरंभ किया। बच्चों में स्वाधीनता की भावना के बारे में उनकी फिल्म, खुदम मन खुदम तथा कठपुतली फिल्म निर्माण प्रक्रिया के बारे में उनकी डाक्यूमेंट्री फिल्म निगाह, क्रांति के बाद उनकी कलाकृतियों में से हैं। उन्होंने वर्ष १९८६ में अपनी पहली फीचर फिल्म किलीद का निर्देशन किया। इस फिल्म की कहानी बहुत साधारण है। घर के बड़े लड़के को अपने छोटे भाई को संभालने में समस्याओं का सामना है। पड़ोसियों को उसके संकट के बारे में पता चलता है किंतु कोई भी दरवाज़ा खोल नहीं पाता क्योंकि चाभी एसी जगह रखी है जहां तक उस बच्चे का हाथ नहीं पहुंच पाता। कीलीद अर्थात चाभी नामक यह फिल्म बाल फिल्म होने के बावजूद प्रतीकात्मक भाव रखती है और इसी लिए इसे क्रांति के बाद बनाए जाने वाली महत्वपूर्ण सामाजिक फिल्मों में से एक समझा जाता है। इस फिल्म में भावनाओं के विभिन्न रूप नज़र आते हैं और फिल्म का उतार चढ़ाव तथा सरल प्रवाह व चौंकाने वाले दृश्य, साधारण से विषय को ड्रामाई रूप में पेश करने का मज़बूत उदाहरण हैं। वर्ष १९९२ में इब्राहीम फुरोज़िश ने हूशंग मुरादी किरमानी की कहानी के आधार पर खुमरे नामक एक फिल्म बनायी जो ईरानी सेनेमा के बहुत से समीक्षकों और आलोचनकों की दृष्टि में उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना है। खुमरे, या मटकी, मरुस्थलीय क्षेत्र के एक गांव में स्थित एक स्कूल की कहानी है जहां पानी का एकमात्र स्रोत, एक मटकी है जिसमें दरार पड़ गयी है। स्कूल का शिक्षक बच्चों से कहता है कि मटके की मरम्मत का कोई रास्ता निकालें किंतु विभिन्न प्रयासों के बावजूद मटके की मरम्मत नहीं हो पाती और अन्नतः गांव की एक बुढ़िया, लोगों से चंदा मांग कर शहर जाकर एक नया मटका ले आती है। खुमरे एक जीवंत फिल्म है जिसमें मरूस्थलीय क्षेत्रों में रहने वालों के जीवन की सच्चाईयों का बड़ी सुन्दरता व सादगी से चित्रण किया गया है। इस फिल्म में तपते मरूस्थल में पानी से भरे मटके का महत्व दर्शक भली भांति समझते और उसका आभास करते हैं और यह वास्तव में मनुष्य की आवश्यकता की ओर एक संकेत है और इब्राहीम फुरोज़िश ने अपनी इस फिल्म में इस तथ्य का बड़ी कुशलता से चित्रण किया है। इब्राहीम फुरोज़िश ने खुमरे के बाद अन्य कई फिल्में बनायीं कि जिनमें नख्ल और बच्चहाए नफ्ते जैसी फिल्मों का नाम लिया जा सकता है। नख्ल नामक उनकी फिल्म, मुहर्रम की परंपराओं के बारे में। उन्होंने इसी प्रकार हामून व दरिया, ज़मानी बराए दूस्त दाश्तन, संगे अव्वल, और शीर तू शीर नामक फिल्में भी बनायी हैं। उनकी फिल्मों को ईरान और विश्व के विभिन्न फिल्में मेलों में पेश किया गया है और अब तक उन्हें तीस से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हें। इब्राहीम फुरोज़िश ने अपनी फिल्मों से यह सिद्ध कर दिया कि वे साहित्यक रचनाओं से प्रेरणा लेकर फिल्म बनाने में दक्ष हैं । इब्राहीम फुरोज़िश और क्यूमर्स पूर अहमद का नाम ईरान के उन फिल्मकारों में लिया जाता है जिन्होंने सब से पहले ईरान के प्रसिद्ध लेखक हूशंग मुरादी किरमानी की कहानियों पर फिल्में बनायीं। इसी लिए हम ने उचित समझा कि आप को इस लेखक के बारे में भी कुछ बता दें। हूशंग मुरादी किरमानी का जन्म वर्ष १९४४ में किरमान के निकट स्थित सीरज नामक एक गांव में हुआ था और उन्हें उनकी उन किताबों के कारण ख्याति प्राप्त है जो उन्होंने बच्चों के लिए लिखी हैं। हूशंग मुरादी किरमानी ने युवास्था में समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कहानियां लिखने से अपने काम का आरंभ किया और उसके बाद वे बच्चों और किशोरों के लिए किताबें लिखने की ओर आकृष्ट हुए। उन्होंने वर्ष १९७४ में किस्सहाए मजीद अर्थात मजीद की कहानियां नामक रचना लिखी जो वास्तव इस लेखक के बचपन की अपनी कहानी थी। यह एक एसे किशोर की कहानी है जो अपनी स्नेहिल दादी के साथ रहता है और उसके जीवन में विभिन्न घटनाएं घटती रहती हैं। उनकी रचनाएं हिन्दी, अरबी, अग्रेज़ी, जर्मन, स्पेनिश, डच और फ्रेंच जैसी भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं और उनकी रचनाओं को कई पुरुस्कार मिले हैं। हान्स क्रिश्चेन एन्डरसन और खोज़े मार्टिन जैसे विश्व विख्यात साहित्यिक पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया गया। हूशंग मुरादी किरमानी की रचनाओं की एक महत्वपूर्ण विशेषता, आम लोगों की भाषा का प्रयोग है जिससे उनकी रचनाएं समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए लोक प्रिय हैं। कहावतों और आम परंपराओं की झलक तथा बच्चों की कल्पना शक्ति व कविता भाव का समावेश हूशंग मुरादी किरमानी की रचनाओं की एक अन्य विशेषता है। इसी प्रकार उनकी रचनाओं में व्यंग्य व अर्थों की गहराई इस बात का कारण बनी कि विभिन्न भाषाओं में अनुवाद होने के बाद भी रचनाओं का आकर्षण बाकी रहे। संभवतः हूशंग मुरादी किरमानी ईरान के एसे एकमात्र लेखक हों जिनकी कहांनियों पर बनायी जाने वाली फिल्मों को इतनी ख्याति मिली। किस्साए मजीद नामक सीरियल ईरान में क्रांति के बाद सब से अधिक लोकप्रिय टीवी सीरियलों में से है। इसी प्रकार शर्म, सुब्हे रूज़े बाद, नान व शेर, तथा खुमरे जैसे प्रसिद्ध फिल्में, हूशंग मुरादी किरमानी की कहानियों पर ही आधारित हैं। इसके अतिरिक्त चक्मे, तीकताक और कीसए बिरिंज जैसी फिल्मों की पटकथा भी, हूशंग मुरादी किरमानी की कहानियों के आधार पर लिखी गयी है। ईरान के एक प्रसिद्ध निर्देशक दारीयूश मेहरजूई ने हूशंग मुरादी किरमानी की मेहमाने मामान नामक कहानी पर जिस प्रकार से फिल्म बनायी है उससे इस प्रसिद्ध लेखक की कहानियों पर फिल्म निर्माण का एक नया अध्याय आरंभ हुआ । यदयपि यह कहानी बच्चों से विशेष नहीं है लेकिन इस पूरी कहानी में बच्चों की स्वभाविक सरलता, व्यंग्य जैसी अन्य विशेषताएं पूर्ण रूप से नज़र आती है जो वास्तव में हूशंग मुरादी किरमानी की रचनाओं की विशेषता हैं। इस फिल्म को दर्शकों ने खूब स्वागत किया और उसके बाद तक देरख्तहा और गूशवारे जैसे फिल्में भी हूशंग मुरादी किरमानी की कहानियों के आधार पर बनायी गयीं। हूशंग मुरादी किरमानी की कहानियों पर फिल्मकारों की ओर से अधिक ध्यान दिये जाने का शायद वही कारण है जिसके बारे में स्वंय इस लेखक ने कहा है। उनका कहना है कि जब मैं कोई कहानी लिखता हूं कि उसका अपने मन में चित्रण करता हूं। और वास्तव में पूरी कहानी एक फिल्म की भांति मेरी नज़रों में होती है। यही कारण है कि मेरी कहानियां पर जो फिल्में बनी हैं उनमें मुझे बहुत कम कोई समस्या नज़र आती है। वे बाल साहित्या में अपनी सफलता के बारे में कहते हैं कि मुझे लगता है कि मेरा बचपन मुझ में बचा रह गया है मैं बाल्यकाल में ठहरा हुआ हूं और चाहे जितना समय बीत जाए मेरा बचपन जाने वाला नहीं है जो भी अपना बचपन गंवा देता है, उसका प्राण निकल जाते हैं और वह मर जाता है। http://hindi.irib.ir