चोरों का साथी और कारंवा का शुभचिंतक
चोरों का साथी और कारंवा का शुभचिंतक
0 Vote
41 View
यह कहानी वास्तव में एक कहावत की पृष्ठभूमि है। कहावत है शरीके दुज़्द व रफीक़ क़ाफिले अर्थात चोरों का साथी और कारंवा का शुभचिंतक। कहा जाता है कि पुराने ज़माने में एक व्यापारियों का एक कारवां सामान के साथ यात्रा पर था और चूंकि उस युग में लुटेरे, मार्ग में कारंवा को लूट लिया करते थे इस लिए यह कारंवा जब नगर से निकला तो दो तीन दिनों के बाद अन्ततः ऐसे क्षेत्र में पहुंचा जहां से आगे टेढ़े मेढ़े मार्ग थे और सूरज भी ढल रहा था और चूंकि व्यापारियों के पास काफी सामान था इसलिए कारवां के ज़िम्मेदार के सुझाव पर सब ने रात वहीं गुज़ारने का फैसला किया। क्योंकि दिन के समय लुटेरों के आक्रमण का खतरा कम होता है। व्यापारियों ने अपना सामान ऊंटों और घोड़ों से नीचे उतारा और आराम के लिए बिस्तर आदि लगा लिया। कारवां के मार्गदर्शक ने व्यपारियों से कहाः आप लोग अपने मूल्यवान सामान को यहां से थोड़ी दूर पर पत्थरों में छिपा कर रख दें ताकि यदि लुटेरे आक्रमण करें तो वह मूल्यवान सामान उन्हें न मिल सके। व्यापारियों को मार्गदर्शक का यह सुझाव बहुत पसन्द आया और सब ने ठहरने के स्थान से दूर ले जा कर अपना अपना सामान छिपा दिया। इस कारवां में एक व्यापारी ऐसा भी था जिसके पास सामान तो बहुत था किंतु वह लुटेरों के आक्रमण से बिल्कुल चिंतित नहीं नज़र आ रहा था बल्कि वह अपना सामान छोड़ कर दूसरों के सामान छिपाने में उनकी सहायता कर रहा था। जब सारे व्यापारियों ने अपना सामान छिपा दिया तो उस व्यापारी ने भी अपना सामान वहीं अपने निकट एक स्थान पर छिपा दिया। व्यापारियों ने रात का खाना खाया और चिंता की दशा में आराम करने के लिए लेट गये। जिस व्यापारी ने सब की सहायता की थी उसने कहाः इस प्रकार से ठीक नहीं है बेहतर है कि हम लोग बारी बारी जाग कर पहरा दें। अन्य लोगों ने उसका सुझाव मान लिया तो उसने कहाः आप सब सो जाएं सब से पहले मैं पहरा दूंगा। दो घंटे बाद किसी एक को जगा दूंगा और मैं सो जाऊंगा। व्यापारी चिंतित और थके हुए थे उन्होंने इस सुझाव का स्वागत किया और सब सो गये। उस व्यापारी ने थोड़ी प्रतीक्षा की और जब उसे विश्वास हो गया कि सारी व्यापारी सो गये हैं तो वह दबे पांव कारवां के ठिकाने से दूर हो और उस टेढ़े मेढ़ मार्ग की ओर बढ़ गया जहां लुटेरों के होने की आशंका थी। अचानक उसे अंधकार में एक छाया नज़र आयी तो उसने चीख कर कहाः यदि आप लुटेरे हैं तो मेरी बात ध्यान से सुनें। मैं अकेला हूं और मेरे पास कोई हथियार भी नहीं है। मुझे अपने सरदार के पास ले चलो मुझे एक जरूरी बात करनी है। चोरों ने उसे पकड़ लिया और उसके हाथ पैर बांध कर उसे अपने सरदार के पास ले गये। उस व्यापारी ने जब सरदार को देखा तो उससे कहाः मैं एक व्यापारी हूं और थोड़ी ही दूर पर जो कारवां ठहरा मैं उसमें शामिल हूं यदि तुम मुझसे वादा करो कि मेरे सामान को हाथ नहीं लगाओगे और लूट के माल में से कुछ हिस्सा मुझे भी दोगे तो मैं उन व्यापारियों का राज़ तुम्हें बता दूंगा। डाकुओं के सरदार ने कहाः ठीक है बताओ मैं वचन देता हूं। यह सुन कर व्यापारी ने पूरा किस्सा उसे बता दिया और चूंकि उसने हर व्यापारी की सामान छिपाने में मदद की थी इस लिए उसे हर व्यापारी के सामान की जगह के बारे भी मालूम था उसने पूरा ब्योरा डाकुओं के सरदार को दे दिया और तेज़ तेज़ कदमों से वापस कारवां में चला गया। कारवां में पहुंच कर उसने अपनी सांसे ठीक कीं और फिर अपने एक साथी को जगा कर उससे कहने लगाः दो घंटे से अधिक का समय बीत चुका है मैं पहरा देते देते थक गया हूं मुझे बहुत नींद आ रही है आओ अब तुम पहरा दो। इसके बाद स्वंय सोता बन गया। थोड़ा ही समय बीता था कि डाकुओं ने कारवां पर आक्रमण कर दिया। पहरेदार ने चीख पुकार का सब को जगाया और हर ओर चीख पुकार मच गयी किंतु लुटेरे सीधे वहीं गये जहां व्यापारियों ने अपना सामान छिपा रखा था और सारा सामान लूट लिया लेकिन, गद्दार व्यापारी के सामान को हाथ नहीं लगाया। लुटेरे सब कुछ लूट कर चले गये और व्यापारी पूरी रात रोते और चिल्लाते रहे। सुबह हुई तो लुटा हुआ कारवां आगे बढ़ने के लिए तैयार हुआ किंतु बहुत से व्यापारी अब कारंवा के साथ नहीं जाना चाहते थे कुछ ने कहा अब तक हमारे पास कुछ ही नहीं है इस लिए अच्छा यही होगा कि हम अपने घरों को लौट जाएं जबकि कुछ लोगों ने कहा कि हमें नगर तक कारवां के साथ जाना चाहिए और वहां जाकर मित्रों और रिश्तेदारों से कुछ धन कर्ज़ लेकर अपना काम चलाना चाहिए। सब ही परेशान थे किंतु इस पर बात पर भी सब को आश्चर्य था कि चोरो ने एक व्यापारी के सामान को हाथ नहीं लगाया कोई कहता था वह बड़ा त्यागी व्यक्ति है उसने सामान छिपाने में सब की बहुत मदद की। ईश्वर ने उसकी इस मानवीय भावना का इनाम उसे दिया और उसका सामान बच गया। कोई कहता था कि वह बड़ा अच्छा आदमी है वही सब से पहले पहरेदारी के लिए तैयार हुआ था। उसे उसकी भलाईयों का बदला मिला है। जबकि कुछ लोगों ने यह सोचा कि चूंकि उसने अपना सामान सब के साथ कारवां से दूर नहीं छिपाया था इस लिए डाकुओं को उसका सामान नज़र नहीं आया। सारे व्यापारी इसी प्रकार की बातें कर रहे थे जबकि गद्दार व्यापारी को डाकुओं से मिलने की जल्दी से इसी लिए उसने कहा मुझ से आप लोगों का दुख देखा नहीं जा रहा है इस लिए मैं अपनी बची यात्रा अब अकेले ही करना चाहता हूं। यह कह कर उसने अपना सामान दो तीन घोड़ों पर लादा और उनकी लगाम थामे कारवां से दूर हो गया। जब उसे विश्वास हो गया कि उसे कोई नहीं देख रहा है तो वह डाकुओं से मिलने जा पहुंचा वहां डाकुओं ने लूट के माल में से उसे उसका हिस्सा दिया और वह खुश खुश नगर चला गया। इधर लुटे हुए व्यापारी भी इधर उधर से कुछ पैसों की व्यवस्था करके और लूट से बचे कुछ साधारण से सामान के साथ नगर पहुंचे थे। वहां के बाज़ार में उन्हों ने अपने भाग्यशाली साथी व्यापारी को देखा कि वह सामान का ढेर लिए बैठा है। उन लोगों ने बड़ी हसरत से अपने साथी का सामान देखा और सोचा कि यदि डाकुओं ने हमला न किया होता तो आज वह भी अपने इसी साथी की भांति बाजार में ढेर सारा सामान लिए बैठे होते। तभी एक व्यापारी को धोकेबाज़ व्यापारी के सामान में अपना भी एक सामान नज़र आ गया उसने तत्काल अपने दूसरे साथी को बताया और जब उन लोगों ने ध्यान दिया तो लूटा गया कई सामान उसके सामान में मौजूद था। यह स्थिति देख कर वह बहुत कुछ समझ गये और सब एकत्रित हुए और नगर के काज़ी के पास कर उसकी शिकायत की। उस काल में न्याय करने के लिए राजा की एक ओर से एक व्यक्ति का निर्धारण होता था जिसे क़ाज़ी अर्थात फैसला करने वाला कहा जाता था। क़ाज़ी ने धोखेबाज़ व्यापारी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया और और जब उसे क़ाज़ी के पास लाया गया तो क़ाज़ी ने घूरते हुए उससे कहा अच्छा तो चोरों के साथी और कारंवा के शुभचिंतक तुम्ही हो। अब देखों मैं तुम्हारा क्या हाल करता हूं। उस दिन के बाद से हर एसे धोखेबाज़ व्यक्ति के बारे में जो अपना माल बचाने के लिए हर काम करने पर तैयार रहता हो और इसके लिए शत्रुओं से भी हाथ मिलाने पर तैयार रहता हो तो यह कहावत प्रयोग की जाती है। अर्थात चोरों का साथी और कारंवा का शुभचिंतक। http://hindi.irib.ir