काम्बोज़िया परतवी
काम्बोज़िया परतवी
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काम्बोज़िया परतवी का जन्म सन 1955 में उत्तरी ईरान के गीलान प्रांत के रुस्तमाबाद क्षेत्र में हुआ। उन्होंने सिनेमा साहित्य के विषय की शिक्षा प्राप्त की किंतु विश्वविद्यालय की पढ़ाई से वह संतुष्ट नहीं हुए अतः उन्होंने बहुत जल्दी फ़िल्में बनाना आरंभ कर दिया। इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद के वर्षों में उन्होंने छोटे पर्दे के लिए काम किया और टीवी चैनलों के लिए लघु फ़िल्में बनाईं। एक छोटा धारावाहिक क़ूरबाग़े सब्ज़ बनाकर परतवी ने बड़ा सफल अनुभव किया और यह अनुभव परतवी की गुलनार और गुरबए आवाज़ेख़्वान जैसी फ़िल्मों के निर्माण में बहुत सहायक सिद्ध हुआ और इस अनुभव ने इन फ़िल्मों की सफलता को सुनश्चित कर दिया। उस ज़माने में ईरान पर इराक़ के सद्दाम शासन की ओर से थोपे गए युद्ध के संबंध में दो टीवी धारावाहिक बने जिनकी स्क्रिप्ट काम्बोज़िया परतवी ने लिखी। ख़ाने दर इंतेज़ार तथा गुले पामचाल अपने समय के बहुत लोकप्रिय और हिट धारावाहिक थे। गुले पामचाल में परतवी ने कहानी सुनाने की अपनी विशेष क्षमता का भरपूर प्रयोग करके दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया। इस धारावाहिक में दर्शक युद्ध से प्रभावित एक बच्चे के जीवन को देखते हैं जो अपना शहर छोड़कर किसी दूसरे शहर में चला जाता है, वहां उसे अनेक चरणों और घटनाओं से गुज़रना पड़ता है जिसके बाद एक परिवार उसे अपना बेटा बना लेता है। परतवी ने वर्ष 1987 में शीरक की स्क्रिप्ट लिखकर पेवाशराना सिनेमा की दुनिया में क़दम रखा। यह फ़िल्म एक कम उम्र लड़के की है जो गांव में बड़ा कठिन जीवन गुज़ारता है। इसके बाद परतवी ने फ़िल्म माही की स्क्रिप्ट लिखी और इसका निर्देशन भी किया। माही वास्तव में बचपन की बड़ी सीधी साधी किंतु अति रोचक कहानी और बचपन की यादों पर आधारित है। यह लड़का जिसका बाप जेल में है, ईदे नौरोज़ के अवसर पर एक लाल मछली ख़रीदने के लिए बड़ी मेहनत करता है जो नौरोज़ से पहले बाज़ारों में बिकती है जिसे ईरानी परिवार नौरोज़ के दिन शीशे के बर्तन में रखते हैं जिसमें वह तैरती रहती है। इसी लिए फ़िल्म का नाम भी माही रखा गया है जिसका अर्थ होता है मछली। मछली पाने के चक्कर में उसकी अपने दोस्त से लड़ाई हो जाती है। जब वह मछली को घर लाता है तो उसकी मां बहुत डांटती है कि तुमने मछली को क्यों इस प्रकार क़ैद कर लिया है उसे किसी तालाब में ले जाकर क्यों नहीं छोड़ देते। वह लड़का मजबूर होकर मछली को तालाब में छोड़ आता है जबकि उसी रात उसके पिता भी जेल से छूटकर घर आ जाते हैं। फ़िल्म माही नई उम्र के लड़कों के आपसी रिश्तों, दोस्ती, गली कूचे के झगड़ों और उनकी आकांक्षाओं को प्रदर्शित करती है और इन बातों को बड़े सरल अंदाज़ में बयान कर देती है। उस समय के आलोचकों ने इस फ़िल्म पर बड़ी बहसें कीं और इसे बहुत सराहा गया तथा फ़िल्म निर्माता के लिए भी नए मैदान खुल गए। यह फ़िल्म अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म मेलों में भी गई और इसे दूसरे देशों को विशेषज्ञों ने भी ख़ूब सराहा। फ़िल्म गुलनार वर्ष 1989 में बनाई गई। यह अपने ज़माने की बड़ी लोकप्रिय फ़िल्म थी और वर्षों तक कोई फ़िल्म इसका रेकार्ड नहीं तोड़ पाई। इस फ़िल्म की कुछ मीठी तो कुछ कटु घटनाओं से भरी कहानी बाल दर्शकों के लिए बड़ी कुशलता से बयान की गई है। परतवी ने एक रूसी फ़िक्शन से प्रेरणा लेकर गुलनार नाम की एक देहाती लड़की के बारे में यह मज़ेदार फ़िल्म बनाई है जो जंगल में गुम हो जाती है और फिर एक रीछ जोड़े के चंगुल में फंस जाती है। आख़िरकार वह एक योजना बनाती है और उसी योजना के सहारे रीछों से उसे छुटकारा मिलता है। इसके बाद वह अपने दादा दादी के घर चली जाती है। इस फ़िल्म में प्रयोग की गई कुछ कठपुतलियां जैसे मेढकी मौसी आदि को भी बहुत पसंद किया गया। इस फ़िल्म में प्रयोग किया जाने वाला संगीत भी ख़ूब बिका। बहुत से बच्चे गुलनार के जीवन की घटनाओं को याद करते हुए बड़े हुए। अपनी भारी कमाई से फ़िल्म गुलनार ने बाल सिनेमा के आधारों को मज़बूत किया और काम्बोज़िया परतवी के लिए गुरबए आवाज़े ख़ान अर्थात गायक बिल्ली की शूटिंग आरंभ करना आसान हो गया। ख़ूबसूरत संगीत वाली यह फ़िल्म कुछ बच्चों और कठपुतलियों पर आधारित है जो एक आश्रम में रहते हैं। इनमें एक भाई बहन हैं जो अपने मां बाप की तलाश में आश्रम से भाग निकलते हैं। वे दोनों कुछ बिल्लियों की सहायता से जिनसे उनकी दोस्ती है अपने धनवान बाप को ढूंढ निकालते हैं और इस प्रकार वे अच्छी मंज़िल तक पहुंच जाते हैं। कठपुतली नचाने के कुछ विशेषज्ञों ने जिन्हें बाद में बड़ी ख्याति मिली इस फ़िल्म में बड़ा रोमांच पैदा कर दिया। यह फ़िल्म बहुत सफल रही और इसने बहुत बड़ी संख्या में दर्शक बटोरे। इसके बाद परतवी ने युद्ध के काल की एक कहानी को फ़िल्माने पर ध्यान केन्द्रित किया। थोपे गए युद्ध से बच्चों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को आधार बनाकर उन्होंने बाज़ी बुज़ुरगान (बड़ों का खेल) नामक फ़िल्म की स्क्रिप्ट लिखी। यह फ़िल्म युद्ध के दौरान बच्चों की स्थिति की समीक्षा करते हुए एक लड़के और एक लड़की को दिखाती है जो एक सीमावर्ती शहर पर शत्रु के हमले के बाद जीवित बच जाने वाले कुछ लोगों में शामिल हैं। वे दोनों युद्ध की उन कठिन परिस्थितियों में जब शत्रु अनेक क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर चुका है एक नवजात शिशु को बचाने का प्रयास करते हैं जो उन्हें एक जगह मिल जाता है। यह दोनों उस नवजात शिशु की मां बाप की भांति देखरेख करते हैं। यह रोचक बिंदु इस फ़िल्म में जान डाल देता है और लोगों को यह फ़िल्म बहुत पसंद आती है तथा इससे काम्बोज़िया परतवी का स्थान और भी ऊंचा हो जाता है। यह फ़िल्म ज़ाहिर है ग़ैर पेवेशर अभिनेताओं अर्थात बच्चों की मदद से बनाई गई है। इस फिल्म में काम्बोज़िया परतवी ने साबित कर दिया कि बच्चों से भी अभिनय करवाने की उनमें विशेष क्षमता है। काम्बोज़िया परतवी की एक और फ़िल्म नने लाला व फ़रज़न्दानेश (मां लाला और उसके बच्चे) में हम एक एसी वृद्ध महिला को देखते हैं जो कहीं दूर रहने वाले अपने बेटे की आवाज़ सुनने के लिए व्याकुल रहती है। उसके घर में टेलीफ़ोन नहीं है अतः पड़ोसी के घर उसका बेटा फ़ोन करना चाहता है। जब फ़ोन पर बात करने का समय आता है तो वह वृद्ध महिला देखती है कि पड़ोसी घर में नहीं है। मोहल्ले के बच्चे वृद्ध महिला के मदद के लिए जमा हो जाते हैं और उसे टेलीफ़ोन के निकट पहुंचाने का प्रयास करते हैं। हालांकि यह छोटे पर्दे पर दिखाई जाने वाली फ़िल्म थी किंतु इसने कई अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म मेलों में पुरस्कार जीते और काम्बोज़िया परतवी को बाल फ़िल्मनिर्माता के रूप में विशेष पहिचान मिली। बाल सिनेमा क्षेत्र में कई साल तक काम करने के बाद काम्बोज़िया परतवी ने इस क्षेत्र से दूरी बना ली तथा दूसरे विषयों पर फ़िल्मों की स्क्रिप्ट लिखने लगे। ईस्तगाहे मतरूक, मन तराने पान्ज़दह साल दारम, दीशब बाबतो दीदम आयदा, काम्बोज़िया परतवी की सफल फ़िल्में रहीं जो उन्होंने इस नए चरण में बनाईं किंतु बच्चों के प्रति उनका लगाव उनकी दूसरी फ़िल्मों में भी झलकता है। उनका ताज़ा फ़िल्म ट्रान्ज़िट कैफ़े है जिसमें एक महिला की कहानी है जो अपने पति के निधन के बाद अपना बंद हो चुका रेस्टोरेंट पुनः चलाने का प्रयास करती है। यह रेस्तोरां एक सीमावर्ती सड़क के किनारे स्थित है। इस फ़ैसले के कारण जो घटनाएं घटती हैं वही इस फ़िल्म का केन्द्र बिंदु हैं। इस फ़िल्म को फ़ज्र फ़िल्म फ़ेस्टिवल में बहुत सराहा गया तथा क्रिस्टल सीमुर्ग़ पुरस्कार मिले। कई अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म मेलों में इस फ़िल्म पर बड़ी चर्चा हुई और फ़िल्म निर्माता को बहुत सराहा गया। काम्बोज़िया परतवी ने हाल के कुछ वर्षों में कुछ अन्य बड़े फ़िल्म निर्माताओं जैसे मजीदे मजीदी के साथ मिलकर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम पर सीरियल का स्क्रिप्ट तैयार किया है। इसका संबंध पैग़म्बरे इस्लाम के बचपन के ज़माने से है। इस सीरियल की शूटिंग चल रही है। इसकी अनुसंधान टीम ने ईरान, मोरक्को, ट्यूनीशिया, लेबनान, इराक़, और अलजीरिया जैसे देशों में इस्लामी जगत के बड़े बुद्धिजीवियों और धर्मगुरुओं के सहयोग से इस स्क्रिप्ट के बारे में शोध कार्य किया है। इस शोधकार्य के नतीजे में काम्बोज़िया परतवी और मजीदे मजीदी ने इस फ़िल्म का स्क्रिप्ट तैयार किया है। दोनों लेखकों ने शीय व सुन्नी दोनों समुदायों के विश्वस्त स्रोतों के प्रकाश में उन परिस्थितियों को फ़िल्माया है जिनमें पूरे विश्व के लिए एक पैग़म्बर की आवश्यकता का स्पष्ट रूप से आभास होता है। इस फ़िल्म ने इतिहास बयान करने वाली शैली के बजाए दर्शकों को एक अलग अंदाज़ से अतीत का परिचय कराया है और इस फ़िल्म का अपना एक संदेश है। http://hindi.irib.ir/