किस के धन से अरब के निर्धन धनाड्य हो गये
किस के धन से अरब के निर्धन धनाड्य हो गये
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इस्लाम का इतिहास ऐसे पुरुषों एवं महिलाओं के नामों से सुसज्जित है जिन्होंने इस महान धर्म की सुरक्षा के लिए अपनी अंतिम श्वासों तक त्याग व बलिदान के अनोखे उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। ऐसे ही महान व्यक्तियों में प्रथम नाम हज़रत ख़दीजा (स) का है जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) की पत्नी थी । पैग़म्बरे इस्लाम (स) की तन मन और धन से सहायता करने वाली हज़रत ख़दीजा इस्लाम स्वीकार करने वालों में सबसे आगे थीं। इस्लाम एवं पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्रति उनकी निष्ठा इस सीमा तक थी कि जब वह अपने जीवन क अंतिम दिनों में से एक दिन अपनी वसीयत अपने प्रिय पति हज़रत मुहम्मद (स) से बयान कर रही थीं तो उन्होंने श्रद्धा और प्रेम में डूबे हुए स्वर में उन्हें संबोधित करके कहाः हे ईश्वर के पैग़म्बर मैंने आपके अधिकारऔं की पूर्ति में कमी की है आप मुझे क्षमा कर दें। पैग़म्बर (स) ने कहाः मैंने कभी तुम्हारे किसी कार्य में कमी नहीं देखी। तुमने सदैव भरपूर प्रयास किया और मेरे घर में अनेक कठिनाइयां उठायीं। तुमने अपनी समस्त धन संपत्ति ईश्वर के मार्ग में लगा दी। यह सुनकर हज़रत ख़दीजा ने कहाः हे पैग़म्बरे इस्लाम मेरी इच्छा है कि आप मुझे उन वस्त्रों का कफ़न दें और दफ़्न करें जो आपने उस समय पहन रखे हों जब आप पर ईश्वरीय संदेश वहि उतरा हो। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने स्वीकार किया। हज़रत ख़दीजा इससे बहुत प्रसन्न हो गयीं और इस प्रसन्नता और हार्दिक संतुष्टि के साथ दस रमज़ान को इस संसार से चली गयीं। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स) की बेसत अर्थात आपकी पैग़म्बरी की घोषणा का दसवां वर्ष था जब हज़रत ख़दीजा जैसी महान जीवन साथी का साथ छूट गया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस अवसर पर बहुत रोए थे और हज़रत ख़दीजा के स्वर्गवास के वर्षों बाद तक कहते थे कि ख़दीजा जैसा कौन हो सकता है। वह ऐसी पत्नी थीं कि जब सब ने मुझ से मुंह फेर लिया था तो उन्होंने मेरा साथ दिया, जब मेरे निमंत्रण को झुठलाया जा रहा था तो वह मुझ पर ईमान लाईं और मेरी पुष्टि की। जीवन की कठिनाइयों में मेरी सहायता की और अपने धन द्वारा मुझे सहारा दिया और मेरे मन से दुखों को दूर किया। हज़रत ख़दीजा (स) का जन्म हिजरत के 65 वर्ष पूर्व मक्के में हुआ था। उन्होंने चालीस वर्ष की आयु में पैग़म्बरे इस्लाम (स) से विवाह किया। इस्लाम से पूर्व अपने महान गुणों एवं अद्वितीय विशेषताओं तथा चारित्रिक पवित्रता के कारण वे “ताहिरा” अर्थात पवित्रर महिला के उपनाम से प्रसिद्ध थीं। वे अत्यंत धनवान थीं और मक्के के लोग उनके धन से व्यापार किया करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम (स) से विवाह के पश्चात हज़रत ख़दीजा ने अपनी समस्त धन संपत्ति पैग़म्बरे इस्लाम के हाथों में देकर इस्लाम को आर्थिक रूप से सशक्त बना दिया और उसके प्रचार-प्रसार में अनथक प्रयास किए। हज़रत ख़दीजा का जीवन परिपूर्णता की खोज और उसके शिखर तक पहुंचने का एक उत्तम उदाहरण है। हज़रत ख़दीजा के जीवन का अधिकतर समय अज्ञानता के काल में व्यतीत हुआ परंतु ज्ञान की खोज में उन्होंने हर प्रकार की रुकावटों को हटा कर इस्लाम की शरण ग्रहण कर ली और छोटे से इस्लामी समाज की आधार शिला रख दी। हज़रत ख़दीजा की सबसे बड़ी विशेषता सत्य की गहन पहचान और अनन्य ईश्वर पर उनका सुदृढ़ विश्वास एवं ईमान है। वह भी ऐसी स्थिति में कि जब पूरा अरब समाज अपनी अज्ञानतापूर्ण परंपराओं में डूबा हुआ था। उस समय के समाज में बहुत से लोग इस बात को समझ गये थे कि हज़रत मुहम्मद (स) के शब्द सत्य हैं, परंतु लोगों को यह बात कहने का साहस नहीं था। जबकि हज़रत ख़दीजा ने सत्य को पूरी गहराई से पहचाना और खुलकर उसे स्वीकार किया। उन्होंने साहस के साथ झूठी और आधारहीन परंपराओं को नकार कर इस्लाम के आरंभिक तीन वर्षों में ही जब इस्लाम का प्रचार गुप्त रूप से किया जा रहा था, अपनी अंतर्दृष्टि के कारण अपने दृढ़ विश्वास को छिपाने का प्रयास नहीं किया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्रिय चाचा अबू तालिब और ख़दीजा जैसे महान लोगों का समर्थन जिनका समाज में बहुत ऊंचा स्थान था, कारण बना कि अनन्य ईश्वरवादियों का इस्लाम पर दबाव कम हो और उनके पैग़म्बरे इस्लाम (स) पूरे संतोष के साथ अपना ईश्वरीय दायित्व निभा सकें। हज़रत अबू तालिब ने आरंभ में, केवल इसलिए कि बिना किसी विरोध के पैग़म्बरे इस्लाम (स) का समर्थन और रक्षा कर सकें, अनन्य ईश्वर पर अपने दृढ़ विश्वास और ईमान को गुप्त रखा था परंतु हज़रत ख़दीजा (स) और हज़रत अली अलैहिस्सलाम छोटे से इस्लामी समाज के अस्तित्व की घोषणा में खुलकर सम्मलित रहे। यहया बिन अफ़ीफ़ अपने दादा जो उस समय के एक प्रसिद्ध व्यापारी थे द्वारा वर्णित घटना को बयान करते हुए कहते हैं कि जब वह काबे के प्रांगण में प्रविष्ट हुए तो एक आश्चर्यजनक दृश्य देखा। उन्होंने तीन व्यक्तियों को नमाज़ पढ़ते हुए देखा। पैग़म्बर के चाचा अब्बास के पुत्र से उन लोगों के बारे में पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि सबसे आगे वाले मुहम्मद हैं जो पैग़म्बर होने का दावा करते हैं, उनके पीछे अली हैं और सबसे पीछे जो महिला हैं वह मुहम्मद की पत्नी ख़दीजा हैं। इन लोगों के अतिरिक्त इस धर्म को स्वीकार करने वाले किसी अन्य व्यक्ति को मैं नहीं जानता। हज़रत ख़दीजा सत्य के प्रेम में इतनी डूब गयी थीं कि इस ईश्वरीय धर्म के प्रचार प्रसार में उन्होंने अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया। उन्होंने न केवल अपनी सामाजिक साख व स्थान का इस्लाम के समर्थन में प्रयोगकि किया बल्कि इस ईश्वरीय धर्म की रक्षा में कठिन मैदानों में भी डट गयीं। शेबे अबू तालिब नामक दर्रे में जब अनेकेश्वरवादियों ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) और हज़रत अबू तालिब एवं इस्लाम स्वीकार करने वाले थोड़े से लोगों की आर्थिक नाकाबंदी कर दी थी तो हज़रत ख़दीजा ने भी तीन वर्ष तक जारी रहने वाली उस नाकाबंदी में अपनी छोटी सी सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) के साथ कठिनाइयां झेली थीं। यह तीन वर्ष हज़रत ख़दीजा के बलिदान की चरम सीमा थे। आर्थिक प्रतिबंधों के इन कठिन वर्षों में मुसलमानों की समस्त आवश्यकताओं को पूरा करना हज़रत ख़दीजा की ज़िम्मेदारी थी। पैग़म्बरे इस्लाम (स) सदैव हज़रत ख़दीजा के बलिदानों को याद करते थे और इस वास्तविकता पर विशेष रूप से बल देते थे कि इस्लाम के लिए उन्होंने अपनी समस्त धन संपत्ति ख़र्च कर दी। हज़रत ख़दीजा की जीवनी पर दृष्टि डालने से यह बात सामने आती है कि वह अज्ञानता के काल में भी और पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा के पश्चात भी चारित्रिक महानता और आध्यात्मिक परिपूर्णता का उदाहरण मानी जाती रही हैं। अपने समाज में उन्होंने एक उत्तम महिला के रूप में उत्तम मानवीय विशेषताएं फैलाने में प्रभावी भूमिका निभाई है। दान-दक्षिणा, कृपा, त्याग, बलिदान, पवित्रता, दूरदर्शिता, बुद्धिमत्ता, निर्धनों पर ध्यान देना और समाज के प्रति स्नेहपूर्ण भावना रखना इसी प्रकार साहस और निर्भीकता वह विशेषताएं थीं जिनके लिए हज़रत ख़दीजा को विशेष प्रसिद्धि प्राप्त थी। निसंदेह यही वह विशेषताएं थीं जिनके कारण उन्होंने हज़रत मुहम्मद के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। चारित्रिक विशेषताओं के अतिरिक्त हज़रत ख़दीजा ज्ञान के उच्च शिखर पर भी पहुंची हुई थीं। वह अपने समय के समाज की ओर से पूर्ण रूप से सूचित रहते हुए उस समय के सभी ज्ञानों से अवगत थीं। ईश्वरीय पुस्तकों का उन्हें पूर्ण ज्ञान था इसी प्रकार प्रथम मुसलमान महिला के रूप में, इस्लामी संस्कृति के प्रचार प्रसार में भी उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है और यह गुण और विशेषताएं ऐसी स्थिति में सामने आई है कि जब उस काल में महिलाएं जीवन के न्यून्तम अधिकारों से भी वंचित थीं और उनका जीवन हर प्रकार के अंधकार से घिरा हुआ था। हज़रत ख़दीजा ने ऐसी परिस्थितियों में महिला शक्ति का लोहा मनवाया और इस्लाम की छत्रछाया में उसे उसके अधिकारों से अवगत किया। सलाम हो पैग़म्बरे इस्लाम की महान, निष्ठावान, ज्ञानी, साहसी और बलिदानी जीवन साथी हज़रत ख़दीजा पर।{