क्या कुरआन को समझ कर पढना ज़रुरी हैं -2
क्या कुरआन को समझ कर पढना ज़रुरी हैं -2
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हम मुस्लमान अक्सर बहाने बनाते है की हमारे पास कुरआन मजीद का तर्जुमा पढने का टाइम नहीहै। हम अपने रोज़-मर्रा के कामों मे मसरुफ़ है, अपनी पढाई मे, अपने कारोबार मे, वगैरह वगैरह।हम सब ये जानते है की जो भी वक्त हम स्कुल-कालेज मे लगाते है और कई किताबें हिफ़्ज़ (कंठित)कर लेते है, क्या हमारे पास कुरआन मजीद पढने का टाइम नही हैं? अगर आप कुरआन मजीद कातर्जुमा पढेंगे, चन्द दिनॊं मे पढ सकते है। लेकिन मौहम्मद रसुल अल्लाह सल्लललाहो अलैहेवाआलेही वसल्लम फ़र्माते है :- "कि जो कोई तीन दिन से कम वक्त मे कुरआन मजीद को पुरापढता है तो वो कुरआन मजीद को समझ कर नही पढता है" (२९४९, तिर्मिधी)। अगर आप सुकुन सेपढेंगें तो इन्शाल्लाह आप सात दिन मे कुरआन मजीद के तर्जुमें को पुरा पढ लेंगे, अगर आप रोज़कुरआन का एक पारा पढेगें तो एक महीने मे आप कुरआन को पुरा पढ लेंगें। जो डिगरी आप हासिलकरते है स्कुल और कालेज जाकर वो आप को इस दुनिया मे फ़ायदा पहुचां सकती है और नही भीपहुचां सकती है क्यौंकी हम जानते है की कई डिग्री वाले बेकाम घुम रहे हैं लेकिन अल्लाह सुब्नाह वतआला ने वादा किया है की अगर आप इस कुरान मजीद को अच्छी तरह समझ कर पढेंगे तो आपको आखिरत मे ही नहीं इस दुनिया मे भी इन्शाल्लाह फ़ायदा होगा। अल्लाह तआला फ़र्माता है सुरह बकरह सु. २ : आ. १-२ में "ये वो किताब है जिसमे कोई शक नहीजो तकवा (अल्लाह से डरनें वाले) रखते है"। मिसाल के तौर पर आपका कोई करीबी दोस्त फ़्रांस सेहिन्दुस्तान घुमने के लिये आता है वो हिन्दुस्तान घुमता है और आपके घर पर एक हफ़्ता रुकता हैऔर फिर वापस चला जाता है, अपने घर पहुचने के बाद आपकॊ वो एक खत लिखता है लेकिनउसको हिन्दी या उर्दु नही आती है उसे फ़्रेंच मे महारत हासिल है तो वो आपको खत भी फ़्रेंच मेलिख्ता है। आपको फ़्रेंच आती नही है तो फिर आप क्या करेंगे? उस आदमी को ढुढंगे जिसे फ़्रेंचआती है और जो आपकॊ आपके करीबी दोस्त के खत का तर्जुमा करके बताये की आपके दोस्त नेआपको क्या लिख कर भेजा है। क्या आपका फ़र्ज़ नही होता की आप जानें की आपके रब, आपकेखालिक, अल्लाह सुब्नाह व तआला ने अपने आखिरी पैगाम कुरआन मजीद मे आपके लिये क्या लिखा है? हमें कुरआन शरीफ़ का तर्जुमा करनेकी ज़रुरत नही है अल्हम्दुलिल्लाह कुरआन शरीफ़ का तर्जुमा हर अहम ज़ुबान मे हो चुका है आपको सिर्फ़ उसको मार्कट से जाकर खरीदने कीज़रुरत है। हमें कुरआन शरीफ़ का तर्जुमा पढना चाहिये उस ज़बान मे जिसमें हमें महारत हासिल है। अकसर मुस्लमान समझते है कि ये कुरआन शरीफ़ सिर्फ़ मुसलमानॊं के लिये है और इसे गैर-मुसलमानॊं को नही देना चाहिये ये हमारीगलतफ़हमी है हमारा वहम क्यौंकी अल्लाह सुब्नाह व तआला फ़र्माता है कुरआन शरीफ़ मे सुरह: इब्राहिम सु. १४ : आ. १ में "ये किताब नाज़िलकि गयी थी मौहम्मद रसुल अल्लाह सल्लललाहो अलैहेवाअलेहि वसल्लम पर ताकि वो सारी इन्सानियत को अंधेरे से रोशनी मे ले आयें"। कुरआनमजीद मे ये कहीं नही लिखा हुआ है की कुरआन मजीद सिर्फ़ मुसलमान या अरबों के लिये है। यहां आपने पढा की अल्लाह तआला फ़रमाता है कीकुरआन मजीद मौहम्मद रसुल अल्लाह सल्लललाहो अलैहेवा आलेहि वसल्लम पर इसलिये नाज़िल कि गयी थी कि वो सारी इन्सानियत को अंधेरेसे रोशनी मे लेकर आयें। अल्लाह तआला फ़र्माता है सुरह: इब्राहिम सु. १४ : आ. ५२ में " ये कुरआन मजीद सारी इन्सानियत के लिये पैगाम हैऔर उनके लिये जो समझते है और उनसे कह दो कि अल्लाह एक है और समझने वाले अल्लाह के कलाम को समझेंगे"। अल्लाह तआला फ़र्माताहै सुरह: बकरह सु. २ : आ. १८५ में "रमज़ान वो महीना है जिसमें कुरआन शरीफ़ नाज़िल हो चुका था और ये सारी इन्सानियत के लिये हिदायतकी किताब है ताकि लोग समझ सकें की गलत क्या और सही क्या है"। अल्लाह तआला फ़र्माता है सुरह: अल ज़ुम्र सु. ३९ : आ. ४१ में "के हमनें येकिताब नाज़िल कि मौहम्मद रसुल अल्लाह सल्लललाहो अलैहे वाआलेही वसल्लम पर ताकि वो हिदायत दे इंसानों को"। कुरआन मे ये कही नहीलिखा है की ये कुरआन सिर्फ़ मुसलमानों या अरबों के लियें नाज़िल कि गयी है और कुरआन मे ये कहीं नहीं लिखा है की मुसलमानॊं को हिदायत देंऔर हमारे आखिरी पैगम्बर मौहम्मद सल्लललाहो अलैहे वाआलेही वसल्लम सिर्फ़ अरबों या मुसलमानॊं के लिये नही भेजे गये थें अल्लाह तआलाफ़र्माता है सुरह: अम्बिया सु. २१ : आ. १०७ में "के हमने तुम्हे भेजा है एक रहमत सारी इन्सानियत, सारे जहां के लिये"। अल्लाह तआला फ़र्माताहै सुरह: सबा सु. ३४ : आ. २८ मे "के हमने तुम्हें भेजा एक पैगम्बर सारी इन्सानियत के लिये ताकि आप लोगो को अच्छाई की तरफ़ बुलायें औरबुराई से रोकें"। लेकिन अकसर लोग ये नही जानते है। कुरआन की इन आयतॊं से समझ मे आता है की कुरआन मजीद और मौहम्मदसल्लललाहो अलैहे वाआलेही वसल्लम सारी इन्सानियत के लिये भेजे गये थे मुसलमानॊ के लिये भी और गैर-मुसलमानों के लिये भी। हम मुसलमान लोग कुरआन मजीद को समझ के तो पढते नहीं लेकिन उसकी इतनी हिफ़ाज़त करते है की दूसरों को भी नही पढनें देते। कह्ते हैकुरआन मजीद को जो लोग नजीज़ (नापाक/अपवित्र) है वो हाथ नही लगा सकते हैं और कुरआन मजीद की एक आयत का हवाला देते हैसुरह:वाकिया सु. ५६ : आ. ७७-८२ "कि ये वो कुरआन अल्लाह तआला ने नाज़िल किया और इसको कोई भी हाथ नही लगायेंगा सिर्फ़ वो जो मुताहिरीनहैं"। अगर इस आयत के ये मायने होते की इस कुरआन शरीफ़ को जो मुसफ़ (कापी) है को कोई भी हाथ नही लगा सकता है सिर्फ़ उसके जो जोपाक है, वुज़ु मे हैं, तो कोई भी शख्स, कोई भी गैर-मुस्लिम बाज़ार से सौ या दो सौ रुपये में कुरआन खरीद कर उसे हाथ लगा सकता है औरकुरआन मजीद गलत साबित हो जायेगा। कुरआन इस आयत के मायने इस कुरआन मजीद, इस किताब जो मुसह्फ़ है, के नही है बल्कि उसकुरआन मजीद जो लौहे-महफ़ुज़ (सातवें आसमान) में है जिसका ज़िक्र सुरह: बुरुज सु. ८५ : आ. २२ में है अगर आप देखेगें कि इस आयत केमुताबिक कि कुरआन क्यों नाज़िल हुआ कि कुछ लोग गैर-मुस्लिम वगैरह ये कहते थे कि मौहम्मद सल्लललाहो अलैहे वाआलेही वसल्लम पर ये"वही" (पैगाम) शैतान के पास से आती थी तो अल्लाह तआला फ़र्माता है की "ये "लौह-महफ़ुज़" के नज़दीक कोई भी नही आ सकता है सिवायउसके जो मुताहिरीन हैं।"मुताहिरीन के मायने है वो जिसने कोई भी गुनाह नही किया, वो बिल्कुल पाक है सिर्फ़ जिस्म से ही नही सारे तरीके से।अगर आप तबरिगी तफ़्सील के अन्दर वो कह्ते है की जिस कुरआन का ज़िक्र हो रहा है उस कुरआन का जो सातवें आसमान मे लौहे-महफ़ुज़ केअन्दर जिसको कोई हाथ नही लगा सकता सिवाय फ़रिश्तों के"। तो शैतान के करीब आने का तो सवाल ही नही उठता इसके माईने ये नही कोईइन्सान जो पाक नही है वो हाथ नही लगा सकता है। पाक होना, वुज़ु मे होना अच्छी बात है लेकिन इसका मतलब ये नही है की ये फ़र्ज़ है। कुछ लोग ये भी कह्ते है की हम गैर-मुस्लिम को कुरआन का सिर्फ़ तर्जुमा देंगे अरबी मतन नही देंगे, कुरआन शरीफ़ का तर्जुमा और अरबी मेसाथ-साथ नही देंगे। लेकिन मै अगर किसी गैर-मुस्लिम को कुरआन देता हू तो मैं तर्जुमें के साथ अरबी का कुरआन भी देता हु क्यौंकी अगर तर्जुमेंमे गलती हो तो वो इन्सान की तरफ़ है अल्लाह की तरफ़ से नही है, और तर्जुमें तो इन्सान करते है और गलती तो कहीं न कहीं करेंगे। मिसाल केतौर पे आप पढेंगे सुरह: लुकमान सु. ३१ : आ. ३४ उसमें अल्लाह तआला फ़र्माता है की "अल्लाह के अलावा कोई भी नही जानता के मां के पेट मेजो बच्चा है वो कैसा होगा"। लेकिन आप उर्दु का तर्जुमा पढेंगे तो उसमें अकसर ये लिखा मिलेगा कि "कोई भी नही जानता कि मां के पेट मे जोबच्चा है उसका जिन्स (लिंग) कैसा होगा"। और जो शख्स थोडा बहुत साइंस के बारे मे जानता होगा वो बता सकता की आज के दौर में ये जाननाबहुत आसान काम है की मां के पेट मे बच्चा लडंका है या लडकी। जबकी अरबी मे जिन्स लफ़्ज़ है ही नही। कुरआन मजीद मे लिखा है कि "कोई भीनही जानता सिर्फ़ अल्लाह के सिवा की मां के पेट के अन्दर बच्चा कैसा होगां। कैसा होगा के माईने की पैदा होने के बाद वो अच्छा होगा या बुरा,दुनिया के फ़ायदेमन्द होगा या नुक्सानदायक, वो जन्नत जायेगा या जह्न्नम कोई भी नही जानता सिवाय अल्लाह के।" बाकी अगली कडीं मे.... अल्लाह आप सब कुरआन पढ कर और सुनकर, उसको समझने की और उस पर अमल करने की तौफ़िक अता फ़रमाये। आमीन, सुम्मा आमीन