घमंडी चूहा

फ़ार्सी साहित्य के नमूनों में गद्य एवं पद्य दोनों में अनेक कहानियां मौजूद हैं जिनका अपना विशेष स्थान है और इन कहानियों में जो कहानियां पशुओं की ज़बान से ब्यान हुयी हैं उनका और भी महत्वपूर्ण स्थान है। इन कहानियों में से अधिकतर लोक एवं मौखिक साहित्य का भाग हैं और मौखिक रूप से कवियों व लेखकों तक पहुंची हैं जिन्होंने बाद में इन्हें लिखित रूप दिया है।   पशुओं के मुख से ब्यान होने वाली कहानियां लोक साहित्य की  वह शाखा है जो समाज के साधारण तथा विशिष्ट एवं शिक्षित वर्गों में समान रूप से प्रचलित रही है। लोक साहित्य के इस प्रकार के इतने व्यापक होने और पसंद किये जाने का कारण यह है कि सभी वर्गों के लोग इन कहानियों को अपनी बात स्पष्ट करने तथा तर्क प्रस्तुत करने के लिये प्रयोग करते हैं। यही कारण है कि ईश्वरीय पहिचान रखने वाले विद्वानों एवं दार्शनिकों से लेकर नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले शिक्षकों एवं विचारकों तक हर व्यकित संस्कृति, राजनीति एवं समाज के क्षेत्रों में अपने -2 विषयों एवं समस्याओं को ब्यान करने के लिये इस प्रकार की कथाओं का सहारा लेता रहता है। अतः हम कह सकते हैं विभिन्न प्रकार की कहानियों में सब से अधिक प्रयोग की जाने वाली और सबसे अधिक सुनी जाने वाली कहानियां पशुओं की ज़बान से कही जाने वाली कहानियां हैं। क्योंकि बच्चों से लेकर बड़ों तक हर एक इन्हें सुनने में रूचि रखता है। इन कहानियों की कई विशेषतायें इन्हें लोकप्रिये बनाने में भूमिका निभाती हैं। इनकी लोक प्रयता का एक कारक इनका संक्षिप्त होना तथा भाषा का अत्यन्त सरल होना है। एक विशेषता इनके संदेश का व्यापक होना है तथा एक अन्य विशेषता सुनने वालों का पशुओं की कहानियों में रूचि लेना और उन पशुओं तथा उनके व्यवहार से सभी का परिचित होना है। पशुओं की अधकतर कहानियां जो आप किसी एक भाषा में पढ़ते हैं उससे मिलती जुलती कहानियां आपको दूसरी संस्कृतियों एवं भाषाओं में भी मिल जाती हैं जिससे पता चलता है कि इन कहानियों में दिये गये पाठ एवं इनका विषय पूरे विश्व में व्याप्त है तथा सभी लोग इसे पूर्ण रूप से समझ सकते हैं। इन कहानियों की एक विशेषता यह है कि इनको विशेष लक्ष्यों को ब्यान करने के लिये प्रयोग किया जा सकता है। यही कारण है कि किसी कहानी का विषय, ब्यान करने वाले के लक्ष्य द्वारा निर्धारित होता है। यह विशेषता कारण बनती है कि लोग अपने-2 उद्देश्यों व आवश्कताओं के अनुसार इन कहानियों से लाभ उठायें। पशुओं की कहानियों का एक उदाहरण कि जिसकी विभिन्न व्याख्यायें की गयी हैं चूहे और ऊंट की कहानी है जो विषय वस्तु की दृष्ट से विभिन्न स्थानों पर अलग-2 रूपों में ब्यान हुयी है। शम्स तबरेज़ी के लेखों, मौलाना रोम की मसनवी के प्रथम भाग, तथा अत्तार नैशापूरी के“ असरार नामे” में चूहे और ऊंट की कहानी अलग-2 रूपों में दिखायी पड़ती है।   बंदर और बढ़ई की कहानी, या फिर तीतर और कौए की कहानी भी विभिन्न रूपों में एवं विभिन्न शैलियों में देखने में आती है। इन दोनों कहानियों का, जो केलीले व दिमने में आयी हैं, मूल विषय बिना सोचा समझा अनुसरण है। इस प्रकार के अनुसरण से बंदर अपनी जान से हाथ धो बैठता है और कौआ तीतर की तरह चलने के चक्कर में अपनी चाल भूल जाता है। इन दोनों कहानियों का विषय अन्य ईरानी एवं विदेशी कहानियों में भी बहुत मिलता है। बंदर की एक कहानी में आया है कि दूसरे का अनुसरण करते हुये बंदर मछली के जाल में फंस जाता है इसी प्रकार एक अन्य कहानी में ऊंट एक गधे को देख कर उसी की भांति नाचने लगता है और अपमानित होता है। एक फ़्रांसीसी लेखक, जॉन डी लाफ़ोन्टन की एक कहानी में एक मेंढक है जो गाय जैसा बनने के लिये स्वयं को इतना फुलाता है कि फट जाता है।     किसी काल में एक बड़े मैदान में एक युवा चूहा रहता था। हमारे युवा चूहे की एक बुरी आदत यह थी कि वह सदैव यह सोचता था कि वह संसार के समस्त चूहों से अधिक बुद्धिमान व शक्ति शाली है। उसकी बुद्धि की आंखें अंधी होचुकी थीं और आत्म मुग्धता व घमंड उस पि छाया हुआ था। एक दिन सीटी बजाता और गुनगुनाता हुआ चला जा रहा था की अचानक सड़क के किनारे उसे एक ऊंट चरता हुआ दिखायी पड़ गया। ऊंट को देखते ही उसने सोचा क्यों न इस ऊंट को चुरा लिया जाये। इस विचार से वह बहुत प्रसन्न हुआ और आगे बढ़ कर उसने ऊंट की नकेल अपने हाथ में लेली औक धीरे-2 चलने लगा। ऊंट भी निःसंकोच उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। हुआ यह था कि ऊंट पेट भर कर हरी भरी घास खा चुका था इसी लिये प्रसन्नचित था और देखना चाहता था कि चूहे के मन में क्या है और वह उसे कहां ले जाना चाहता है। दोनों अपने-2 विचारों मगन चले जा रहे थे। चूहे को यह पता नहीं था कि ऊंट बस अपने मनोरंजन के लिये उसके पीछे आ रहा है,वह यह समझ रहा था कि वह ऊंट को खींच कर अपने पीछे ला रहा है।  अतः वह घमंड में चूर अपने आप से कह रहा था कि आज तक किसी ने भी नहीं देखा होगा कि एक चूहा ऊंट को अपने पीछे खींचता हुआ चल रहा हो, मैं बहुत शक्तिशाली हूं, मैं इस धरती पर सबसे अधिक शक्तिशाली, बुद्धिमान एवं चालाक चूहा हूं।   चूहा और ऊंट चलते चलते एक नहर पर पहुंचे, चूहा किनारे पर खड़ा हो कर तेज़ी से बहते पानी को देखने लगा। वह सोच में डूबा हुआ मन ही मन स्वयं से कहने लगा अब कैसे इतनी बड़ी और पानी से भरी नहर को पार करूं। ऊंट जो चूहे की स्थिति को भली भांति समझ रहा अपने मन में हंसते हुये चूहे से बोलाः क्यों आशचर्य में डूबे हुये हो, साहस के साथ आगे बढ़ो, डरो नहीं, तुम तो मेरे अगुवा हो। यह बातें सुनकर चूहा लज्जित हो उठा, उसके पास कहने को कुछ नहीं था। थोड़ी देर बाद उसने सिर उठाया और बोलाः पानी बहुत गहरा है, और बहुत तेज़ी से बह रहा है इसी लिये मैं डर रहा हूं कि कहीं डूब न जाऊं। ऊंट हंसा और बोलाः इस छोटी सी नहर से डर रहे हो, तुम तो इतने शक्ति शाली हो, ऊंट को अपने पीछे खींच रहे हो और छोटी सी नहर में डूबने से डरते हो। अच्छा चलो मैं नहर में पैर रखता हूं और देखता हूं कि पानी कितना गहरा है। ऊंट यह कहते कहते नहर में उतर गया और बोलाः प्रिये चूहे देखा तुमने, पानी बस मेरे घुटने तक है, डरने की कोई बात नहीं है।आओ तुम भी पानी में उतर आओ। चूहे ने बड़े आश्चर्य से ऊंट को देखा और बोलाः कुछ समझ रहे हो कि क्या कह रहे हो, पानी तुम्हारे घुटने तक है, इसका अर्थ जानते हो। ऊंट ने कहा नहीं मुझे नहीं पता कि इसका क्या अर्थ है। चूहे ने लज्जा भरे स्वर में कहाः ऊंट और चूहे के घुटने में बहुत अन्तर होता है। यह सुनकर ऊंट हंस पड़ा। चूहा समझ गया था कि वह पानी से पार नहीं हो सकता, यदि नहर में उतरा तो डूब जाएगा, अतः विनती करने लगा। उसकी विनती देख ऊंट को दया आगयी और उसने चूहे से कहा मेरी पीठ पर सवार हो जाओ।   ऊंट ने चूहे को नहर के उस पार पहुंचा दिया परन्तु उसे नसीहत करते हुये कहने लगाः देखो अकारण घमंड न करो, और ऐसा काम करने की न ठानो जो तुम्हारे बस में न हो। चूहे ने लज्जा से सिर झुका लिया।