पति और पत्नी के बीच सच्चाई का महत्व

सच्चाई एसी विशेषता है जिसे किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न आयामों में दिखना चाहिए। साधारण शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अपने भीतर पाई जाने वाली कमियों को स्पष्ट रूप में कहना सच्चाई है। सच्चाई केवल यह नहीं है कि केवल सच बोला जाए बल्कि इसकी एक स्पष्ट पहचान, कथनी और करनी में समन्वय है। मनोवैज्ञानिकों के मतानुसार व्यवहार और कथन में यदि विरोध पाया जाता है तो वह सच्चाई नहीं है। जब भी मनुष्य के कथनों और व्यवहार में विरोधाभास पाया जाता है तो सामने वाला, असमंजस्य का शिकार हो जाता है। इस प्रकार परस्पर संबन्ध प्रभावित होते हैं। यदि पति और पत्नी के बीच सच्चाई न पाई जाती हो तो इससे अविश्वास की भावना उत्पन्न होती है और इस प्रकार मतभेद उत्पन्न होने लगते हैं। यही कारण है कि इस्लामी शिक्षाओं में सच बोलने पर बहुत बल दिया गया है। पवित्र क़ुरआन की विभिन्न आयतों में ईश्वर ने बारंबार सच का उल्लेख किया है। पवित्र क़ुरआन उन लोगों को स्वर्ग की शुभ सूचना देता है जो सच्चे और धैर्यवान हैं। सच्चाई के महत्व को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) की धर्मपत्नी हज़रत ख़दीजा ने पैग़म्बर की सच्चाई को देखकर उनसे विवाह का संकल्प किया था। सच्चाई, मनुष्य की लोकप्रियता का भी कारण बनती है। देखा यह गया है कि लोग सामान्यतः उस व्यक्ति पर भरोसा करते हैं जो सच्चा होता है। संयुक्त जीवन में सच्चाई का अपना विशेष महत्व है। जिन परिवारों में सच्चाई नहीं होती वहां पर अधिकांश तनाव और मनमुटाव देखे जाते हैं। यदि हम यह चाहते हैं कि पारिवारिक जीवन में सच्चाई को दिखाएं तो हमे हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इस कथन की ओर संकेत करना होगा। वे कहते हैं कि सच्चाई में मुक्ति है। जो भी इमाम अली के इस कथन को दृष्टिगत रखेगा वह जीवन के हर क्षेत्र में सच्चाई का ही प्रयोग करेगा। एसा व्यक्ति सच बोलते समय कभी भी भयभीत नहीं होगा। पति-पत्नी के बीच सच्चाई का न पाया जाना, दंपति के बीच अविश्वास उत्पन्न करता है। इस प्रकार दोनों के भीतर एक-दूसरे के बीच मतभेद उभरने लगते हैं। इसके दुष्परिणाम दोनों को भुगतने पड़ते हैं। सच्चाई का सबसे पहला लाभ उसके बोलने वाले को होता है। उसके बाद उसके इर्दगिर्द के लोग और समाज उससे लाभान्वित होता है। प्रत्येक परिवार का यह दायित्व बनता है कि वह सच्चाई को जीवन शैली के रूप में अपनी संतान को सिखाए। किसी भी परिवार में सच्चाई को लागू करने का सर्वोत्तम मार्ग यह है कि माता और पिता दोनो सच बोलते हों। पति और पत्नी के बीच सच के बारे में एक अमरीकी शोधकर्ता श्रीमती सैटिर कहती हैं कि पारिवारिक संबन्धों को सुदृढ़ करने के लिए कथनी और करनी दोनों का प्रयोग होना चाहिए। यह बहुत ही स्पष्ट शैली है। इस प्रकार से लोगों के कथन और व्यवहार में समानता होनी चाहिए। इस प्रकार से परिवार के भीतर सच्चाई का बोलबाला होने लगता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि झूठ बोलने का महत्वपूर्ण कारक भय हुआ करता है। पत्नी अपने पति के भय से झूठ बोलती है जबकि पति कई अन्य कारणों से झूठ बोलता है। वास्तव में हमारा व्यवहार ही दूसरों को बताता है कि वे झूठ बोलें। इस उदाहरण पर ध्यान दीजिए। जब किसी बच्चे से यह पूछा जाता है कि खिलौनों को किसने तोड़ा तो उसपर प्रतिक्रिया दो प्रकार से हो सकती है। या उसकी मार पड़ती है या फिर उसे डाट सुननी पड़ती है। इससे बच्चे को यह समझ में आता है कि सच बोलने से या तो मार पड़ेगी या फिर डांट का सामना करना होगा। इस आधार पर हमे प्रयास करना चाहिए कि घर में भय के वातावरण को उत्पन्न न किया जाए। एसे में हमें इस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए कि हमारी प्रतिक्रिया एसी न हो जो सामने वाले को झूठ बोलने पर विवश करे। हालांकि झूठ बोलने वाले को भी यह समझना चाहिए कि झूठ कभी मुक्ति का कारण नहीं बन सकता। इस आधार पर इस बात का प्रयास किया जाना चाहिए कि डर या भय के वातावरण को कम से कम किया जाए। हमें दूसरों की ग़लतियों के संबन्ध में एसा व्यवहार नहीं अपनाना चाहिए कि वे झूठ बोलने पर विवश हों। यह बात मन में बैठा ली जाए कि झूठ, मुक्ति का माध्यम नहीं है। झूठ बोलने वाला कहीं न कहीं पकड़ा ही जाता है जिससे उसकी बदनामी होती है। लगातार झूठ बोलने की स्थिति में लोगों का झूठे से विश्वास समाप्त हो जाता है। जब किसी व्यक्ति पर से विश्वास उठ जाता है तो फिर उसके सच को भी लोग झूठ ही समझते हैं। एसे में समस्या उस समय आती है कि जब झूठ बोलने वाला व्यक्ति किसी समस्या में घिर जाता है और उसके समाधान के लिए लोगों से सहायता चाहता है तो अधिकतर लोग उसे भी झूठ ही समझकर उससे दूर रहते हैं। वैवाहिक जीवन में जब पति या पत्नी को यह पता चल जाए कि उसका जीवन साथी प्रेम की अभिव्यक्ति में सच्चा नहीं है तो फिर संयुक्त जीवन की आधारशिला ही डगमगा जाती है। जिस परिवार में सच्चाई का वातावरण नहीं होगा उसके भीतर पति और पत्नी के बीच संबन्ध तनावपूर्ण हो जाएंगे। हमें अपने घर का वातावरण इस प्रकार का बनाना चाहिए कि घरवालों को इस बात का विश्वास हो जाए की मुक्ति हमें सच बोलने में ही मिलेगी। झूठ से बचने का एक मार्ग यह भी है कि यदि परिवार का कोई भी सदस्य, झूठ बोले तो उसकी तुरंत आलोचना नहीं करनी चाहिए। उसे तुरंत डाटना भी नहीं चाहिए बल्कि पहले उसे उचित ढंग से समझाना चाहिए। डांट के मुक़ाबले में व्यक्ति को समझा-बुझाकर झूठ बोलने से सरलता से रोका जा सकता है। यहां पर एक महत्वपूर्ण बात यह है कि वास्तव में झूठ बोलना पाप है किंतु हर सच बात को हरएक को बताना भी उचित नहीं है। इस बारे में एक मनोवैज्ञानिक का कहना है कि किसी बात का कहना बहुत सरल है जबकि अपनी कही हुई बात को वापस लेना बहुत कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है। एसे में मनुष्य क्यों एसी बात करे जिसपर बाद में उसे पछतावा हो। हो सकता है कि एक बात सही हो किंतु जिससे कही जा रही है उससे कहना सही न हो। कभी-कभी किसी बात को कहने से उचित यह है कि उसे छिपाया जाए। यदि कोई बात सही हो किंतु उसे उसके स्थान पर न कहा जाए तो वह अनुचति है क्योंकि हो सकता है कि उससे मतभेद और भ्रांतियां उत्पन्न होती हैं। इसके विपरीत इस बात पर भी ध्यान रखना चाहिए कि कभी-कभी कुछ विषयों का छिपाया जाना या अपनी भावनाओं को छिपाना उचित नहीं होता और उसके दुष्परिणाम सामने आते हैं। hindi.irib.ir