पश्चिमी समाज मे औरत का शोषण (2)
पश्चिमी समाज मे औरत का शोषण (2)
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पहले जो घरों मे चैन और सेफ़्टी का माहौल देखने को मिलता था वह घर के लोगों ख़ासतौर से पति पत्नी के बीच मुहब्बत और अट्रैक्शन व आकर्षण को बढ़ावा देने की वजह बनता था जिसके प्रभाव से मर्दों के अन्दर शाम को देर तक आवारा गर्दी में घूमते रहने के बदले जल्दी घर पहुंच जाने की लगन पाई जाती थी, लेकिन यह धीरे-धीरे पिछले ज़माने की दास्तान हो गई, दूसरी तरफ़ बदल रहे माहौल मे, किराए की औरतें नाईट क्लबों में मर्दों के लिए बनावटी मुस्कराहटें, ऐश व आराम की प्रबंध रखती थीं, जिसका रूह और आत्मा से कोई सम्बन्ध नही होता था, इन हालात मे एक काम करने वाली औरत के लिए यह ज़रूरी बनता गया कि वह अपने पति और बच्चों की तरफ़ ध्यान देने से बचे या जी चुराए, इसका अधिकतर कमाया हुआ माल मेकअप और बदलते फ़ैशन के साथ ताल मेल बिठाने मे ख़र्च हो जाता था, पहले तो अधिकतर यह स्थिति थी कि औरत अपने पति या परिवार के ज़ुल्म व अन्याय की शिकार थी, लेकिन अब ‘नए सिस्टम’ की ज़बरदस्ती में बलपूर्वक वह पिस्ती रही, रेप, सुसाईड, मर्डर व किडनैप और दूसरी तरह की पीड़ा व तकलीफ़ें उसके लिए आम बात हो गईं, जो दूसरी मेंटल बीमारियों के अतिरिक्त घर और परिवार की ज़िंदगी को तबाह करती रहीं। शादी और घराने के बारे मे पश्चिमी माहौल बीसवीं सदी ईसवी के मध्य से घिनौने और बर्बाद करने वाले हालात पैदा करता रहा है। शहरी केन्द्रों मे दिन-प्रतिदिन उन ग़ैर क़ानूनी जोड़ों की बढ़ती जा रही भीड़ होती है, जिनमे जवान भी होते हैं और अधेड़ उम्र के मर्द और औरतें भी, ताकि वह शादी का रजिस्ट्रेशन कराएं, उनमे बहुमत ऐसे जोड़ों का होता है जिनके लिए शादी का शौक और एक दूसरे से मुहब्बत की भावना नई नही हुआ करती है, क्योंकि बर्सों तक आपस में नाजाएज़ जिस्मानी रिश्तों की दुनियावी भावना, रूहानी पवित्रता, ज़िम्मेदारी का एहसास और निकाह के सवाब होने के विचार के न होने से मुहब्बत मे वह गर्मी नज़र नही आती है, अधिकतर जोड़े चर्च मे शादी की रस्म और निकाह को पूरा करने के बजाए सरकारी सिटी सेंटरों मे शादी के रजिस्ट्रेशन को प्राथमिकता देते हैं (सिटी सेंटरों की सहूलियत सरकार की ओर से उपलब्ध होती है) ,इस लिए रजिस्ट्रेशन के बाद कई बरसों तक बच्चा नही चाहते हैं, जब इसकी आवश्यकता महसूस होती है या परिवार वाले जीवन की भावना जागती है तो उस समय अधिकतर लोग जवानी की हदों को पार कर चुके होते हैं, इस तरह बच्चों की स्वस्थ्य एवं अच्छी ट्रेनिंग तथा उनको उचित ढंग से पालने पोसने के लिए मेहरबानी व उत्साह की भावना नही पाई जाती है जो उनको फ़ैमिली लाईफ़ से जोड़े रखने की वजह बन जाता, आमतौर से नन्हें बच्चों के लिए पालन घरों (crèches) मे उनकी देखरेख की जाती है। यह बच्चे मां की गोद की ममता और प्यार से वंचित रह जाते हैं। www.wilayat.in