प्रत्येक पाप के लिए विशेष पश्चाताप 3

 

पुस्तक का नामः पश्चाताप दया का आलंग्न

 

लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान

 

 

 

हमने इस से पूर्व के लेख मे तीनो प्रकार के पापो की विशेष पश्चाताप से संबंधित जानकारी आप के लिए स्पष्ट की थी जिनके अंत मे यह बात कही गई थी कि हक़ीकी पश्चाताप स्वीकार होने के लिए निम्नलिखित तीन चीज़ो से स्वतंत्र होना अनिवार्य है। इस लेख मे उन तीन चीजो मे से एक प्रस्तुत है।

 

1- शैतान

 

शैतान एंव इबलीस शब्द पवित्र क़ुरआन मे लगभग 98 बार आया है, जो कि एक घातक और वसवसा करने वाला प्राणी है, जिसका उद्देश्य सिर्फ़ मनुष्य को ईश्वर की पूजा एंव आज्ञाकारिता से रोकना तथा पाप और समझसयत (मासीयत) मे डूबाना है।

 

पवित्र क़ुरआन मे दिग्भ्रमित करने वाले व्यक्ति तथा दिखाई न देने वाला अस्तित्व जो मानव के हृदय मे वसवसा करता है, उनको शैतान कहा जाता है।

 

शैतान शतन एंव शातिन के मूल से व्युत्पन्न है और ख़बीस, अपमानित, विद्रोही, मतमर्द, भ्रमित तथा इसका अर्थ दिग्भ्रमित करने वाला है, चाहे यह मनुष्यो मे हो अथवा जिन्नात मे हो।

 

क़ुरआन और उसकी टिप्पणी (तफ़सीर) एंव व्याख्या मे हज़रत मुहम्मद (सललल्लाहो अलैहे वा आलेही वसल्लम) और इमामो से बयान होने वाले कथनो एंव रिवायतो मे शैतान, जिन्न एंव मानव की विशेषताओ का इस प्रकार वर्णन किया गया है।

 

 

 

जारी