मुसलमान औरत क़ुरआन की निगाह में
मुसलमान औरत क़ुरआन की निगाह में
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किसी भी सरकारी या प्राइवेट डिपार्टमेंट में एक हेड आफ़ डिपार्टमेंट होता है जो डिपार्टमेंट को कंट्रोल करता है और उसके नीचे उसका असिस्टेंट होता है। और यह लोग आपस में मिलकर एक दूसरे की मदद से काम को आगे बढ़ाते हैं। इसी तरह से एक परिवार में बाप हेड आफ़ डिपार्टमेंट की जगह पर होता है और माँ एक असिस्टेंट की तरह काम को मैनेज करती है। मुमकिन है बाप की हैसियत एक गार्जियन के तौर पर बहुत मुश्किल हो लेकिन उसके साथ साथ माँ भी घर के सारे कामों का संचालन करती है और आम तौर पर जो काम को संचालित करता है उसका हिस्सा काम को अपने टार्गेट तक पहंचाने में ज़्यादा होता है। 1: कहना मानना क़ुरआन मजीद में आया हैः فَالّصالِحاتُ قانِتاتُ बस नेक महिलाएं वह हैं जो अपने शौहरों {पतियों} का कहना मानती हैं। जिस तरह से हेड आफ़ डिपार्टमेंट अपने डिपार्टमेंट का ज़िम्मेदार होता है इसी तरह से उसके नीचे काम करने वालों की भी कुछ ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। उनकी एक ज़िम्मेदारी यह भी होती है कि वह उस क़ानूनी सिस्टम की सुरक्षा करते हुए हेड आफ़ डिपार्टमेंट के अंडर में अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाएं। क़ुरआन की यह आयत इस बात को बयान कर रही है कि मर्द की मज़बूती और स्थिरता औरत के मुतीअ (आज्ञापालक) होने में है। यानि अगर मर्द औरत पर हाकिम और उसका ज़िम्मेदार है तो औरत के लिए भी ज़रूरी है की उसका कहना माने यानि उसकी इताअत और आज्ञापालन करे। एक औरत यह नहीं कह सकती कि मैं ज़्यादा मुत्तक़ी और परहेज़गार (सदाचारी) हूँ इस लिए अपने पति का कहना नहीं मानूँगी। यहाँ पर इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है कि बिना किसी शर्त के इताअत व आज्ञापालन करना केवल व केवल अल्लाह तआला के लिए है, शौहर की बात मानना यानि अपनी ज़िम्मेदारी पर अमल करना है। हज़रत रसूल सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम फ़रमाते हैं {ما اٌفادَ رَجُلٌ بعد الایمانِ خَیراً مِنِ امرَاَهِ ذاتَ دینٍ و جَجمال تَسُرُّهٌ اِذا نَظَرَ اِلَیها و تُطیعُهُ إِذا أمَرَها و تَحفَظُهُ فی نَفسِها و جمالهِ اِذا غابَ عَنها} मर्द के लिए ईमान के बाद दीनदार और ख़ूबसूरत औरत से ज़्यादा कोई चीज़ अच्छी नहीं है कि अगर वह उसको देखे तो ख़ुश हो और जब उससे कुछ कहे तो वह उसका कहना माने और उसके मौजूद ने होने की स्थिति में उसके माल व इज़्ज़त की रक्षा करे। जो महिलाएं अपने शौहरों (पतियों) की बात मानती हैं यानि कहना मानती हैं वह अपने परिवार को सवांरते हुए अपने पति को अपना मतवाला और चाहने वाला बना सकती हैं ، क्युंकि अल्लाह ने जो भी हुक्म दिए हैं वह इंसान के स्वभाव और फ़ितरत के अनुसार ही हैं। औरत के स्वभाव में मर्द की इताअत पाई जाती है इस शर्त के साथ कि मर्द बिना किसी वजह के कमी या ज़्यादती न करे। इसी लिए अक्सर ऐसा होता है कि महिलाएं उन मर्दों से नाराज़ रहती हैं जो अपनी ज़िम्मेदारी को सही से नहीं निभाते हैं। इसके विपरीत मर्द के स्वभाव में इताअत करना शामिल नहीं है मगर यह कि वह देखे कि औरत उसका कहना मान रही है इसी लिए अक्सर ऐसा होता है कि मर्द जब देखता है कि उस की पत्नी उसका कहना मानती है तो वह भी बहुत से कामों में औरत का कहना मानने लगता है। लेकिन अगर औरत मर्द के मुक़ाबले में खड़ी हो जाती है यानि उसका कहना नहीं सुनती है तो ऐसी सूरत में मर्द का भरोसा भी परिवार पर से उठने लगता है तो इस हालत में औरत व मर्द के लिए एक अच्छी ज़िंदगी की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। वह महिलाएं जो अपने शौहरों के मुक़ाबले में मर्दांगी दिखाने लगती हैं वह कभी भी कामयाब नहीं हो पाती हैं क्युंकि ऐसा व्यवहार उनके पैदाईशी सिस्टम के विपरीत होता है। क्युंकि अगर अल्लाह तआला यह चाहता है कि उसकी बंदगी की जाए तो बंदगी की लालसा भी उसी ने इंसान के अंदर पैदा की है और हम अल्लाह तआला की बंदगी से तुत्फ़ उठाते हैं। औरत के स्वभाव में भी मर्द पति की इताअत करना पाया जाता है और यह स्वाभाविक व फ़ितरी है कि अगर एक तरफ़ से इताअत आ गई तो दूसरी तरफ़ से भी इताअत की जाती है जैसा कि ख़ुद अल्लाह तआला फ़रमाता है : {أَنَا مطیع لِمَن أطاعَنی} मैं उसकी बात मानता हूँ जो मेरी बात मानता है। 2. वफ़ादार होना परिवार में औरत की दूसरी ज़िम्मेदारी यह होती है कि व मुहाफ़िज़ व संरक्षक हो। और इसी तरह से मर्द की ग़ैर मौजूदगी में अपनी ज़िम्मेदारियों को समझे या यूँ कहा जाए कि अपने शौहर के लिए वफ़ादार रहे। जैसा कि क़ुरआन में बयान हुआ है : (حافِظاتُ لِلغَیبِ بِما حَفِظَ اَللهُ) मर्दों की> ग़ैर मौजूदगी में <माल और इज़्ज़त की सुरक्षा करती हैं उन हुक़ूक़ के बदले में जो अल्लाह ने उनके लिए रखे हैं। हदीसों में आया है कि ऐसी महिलाएं पहले अपनी सुरक्षा करती हैं और फिर शौहर के माल की हिफ़ाज़त करती हैं यानि उसका ग़लत इस्तेमाल नहीं करतीहैं। सबसे पहले औरत के लिए ज़रूरी है कि अपनी सुरक्षा करे क्युंकि वह मर्द का सम्मान और उसकी नामूस होती है। इस लिए ज़रूरी है कि उस सम्मान की हिफ़ाज़त की जाए और उसकी असली सुरक्षा औरत के अलावा कोई दूसरा नहीं कर सकता, मुमकिन है मर्द लम्बे सफ़र पर जाए उस हालत में वह औरत की तरफ़ से संतुष्ट रहे और इसको वह अपने व्यवहार से साबित कर सकती है। दूसरे मरहले में औरत के लिए ज़रूरी है कि मर्द की ग़ैर मौजूदगी में उसके माल की सुरक्षा करे और उसको सही तरीक़े से ख़र्च करे। क्युंकि वह घर की मैनेजर है और घर के कामों को मैनेज करना उसकी ज़िम्मेदारी है और एक मैनेजर के लिए ज़रूरी है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन करे। 3. घर के कामों का मैनेजमेंट घर में औरत की जगह एक होम मिनिस्टर की तरह होती है और वह घर और परिवार के कामों की ज़िम्मेदारी उठाती है। और यह बात सभी लोग जानते हैं कि किसी भी ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए अथार्टी का होना ज़रूरी होता है ताकि वह अपने कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभा सके। घरेलू मामलों में मर्द केवल सलाहकार का काम करता है। ۔ इसी तरह से मर्द की कामयाबी में औरत एक सलाहकार का रोल अदा कर कर सकती है। अगर मर्द घर के हर काम में हस्तक्षेप करने लगें तो वह घरेलू सिस्टम को दुविधा और मुश्किल में डाल देते हैं। और ऐसे मर्द साइकलोजिक तरीक़े से अपने साथी की संतुष्टि हासिल नहीं कर पाते हैं। कुछ घरानों में देखा गया है कि मर्द छोटे छोटे कामों जैसे किस सामान को कहाँ रखना है आदि में औरत की इच्छा के ख़िलाफ़ इंटर-फ़ेयर करते हैं और यह ज़िंदगी में मुश्किल ईजाद कर देती है। इसके बावजूद यह नहीं भूलना चाहिए कि घरेलू कामों में मर्द का औरत की मदद करना एक अच्छा काम है। www.wilayat.in