शिया मज़हब के इमाम

 

वह मासूम इमाम जो एक के बाद एक पैगम्बर (स.) के उत्तराधिकारी बनते रहे 12 हैं। और बारहवे इमाम अब तक जीवित हैं तथा परोक्ष रूप से जीवन यापन कर रहे हैं। जिस प्रकार हज़रत पैगम्बर (स.) ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपने बाद के लिए इमाम नियुक्त किया इसी प्रकार हज़रत अली (अ.) ने भी अपने बाद के लिए इमाम नियुक्त किया और यह प्रक्रिया आगे तक चलती रही अर्थात हर इमाम अपने से बाद वाले इमाम का परिचय कराता रहा।

 

इसके अलावा कुछ ऐसी रिवायतें (उल्लेख) मिलती हैं जिनमें पैगम्बर (स.) ने अपने बाद आने वाले इमामों की संख्या का वर्णन किया और कुछ रिवायतें ऐसी भी पायी जाती हैं जिनमें अपने बाद आने वाले इमामों के नाम भी स्पष्ट किये हैं। और उनकी इमामत के बारे में आग्रह भी किया है।

 

यहाँ पर सुन्नी सम्प्रदाय की किताबों से दो हदीसें उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत की जा रही हैं।

 

1- बुख़ारी ने जाबिर पुत्र समुरह के हवाले से वर्णन किया है कि है समितु रसूलल्लाहि (स.) यक़ूलु यकूनु इस्ना अशरा अमीरन फ़क़ाला कलिमतन लम् असमाहा फ़क़ाला अबी इन्नहु क़ाला कुल्लुहुम मिन क़ुरैशिन।

 

(सही बुख़ारी 9/ किताबुल अहकाम /बाब 51बाबि उस्तिख़लाफ़)

 

अनुवाद-- जाबिर ने कहा कि मैनें पैगम्बर से सुना कि उनहोंने कहा कि [मेरे बाद]बारह इमाम होंगे और इसके बाद एक वाक्य और कहा जिसको मैं सुन नही सका। मेरे पिता ने कहा कि पैगम्बर ने कहा था कि वह सब इमाम क़ुरैश से होंगे।

 

 

2- तिरमिज़ी जाबिर की इस रिवायत का उल्लेख इस प्रकार करता है क़ाला रसूलुल्लाहि (स.) यकूनु मिन बअदी इस्ना अशरा अमीरन।

 

(सही तिरमिज़ी 2/45)

 

अनुवाद -- जाबिर ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि मेरे बाद बारह इमाम होंगे।

 

और अहमद ने इस रिवायत का उल्लेख इस प्रकार किया है कि यकूनु लिहाजिहिल उम्मति इस्ना अशरा ख़लीफ़तन।

 

(मुसनदि अहमद 5/86-108)

 

अनुवाद--पैगम्बर ने कहा कि इस उम्मत के लिए बारह ख़लीफ़ा होंगे।

 

यह रिवायत और इसी जैसी अन्य रिवायतें विभिन्न रूपों में वर्णित हुई है। परन्तु प्रश्न यह है कि क्या बारह ख़लीफ़ा या इमाम शिया मज़हब के इमामों के अलावा किसी दूसरे मज़हब के इमामों पर भी चरितार्थ होते हैं ?

 

यनाबिउल मवद्दत नामक किताब में इस प्रकार वर्णन हुआ है कि अन मुजाहिदिन अन इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अनहुमा क़ाला क़दिमा यहूदी युक़ालु लहु नअसलुन क़ाला या मुहम्मद ! असअलुका अन अशयाआ तुलजलिजु फ़ी सदरी....... फ़क़ाला रसूलुल्लाहि (स.) इन्ना वसीय्यी अलीयुब्नु अबी तालिब व बाअदहु सिब्ताया अल हसनु वल हुसैनु ततलुहु तिसअता आइम्मता मिन सुलबि अलहुसैनि क़ाला या मुहम्मद ! फ़सम्मिहिम ली क़ालाइज़ मज़ल हुसैनु फ़इब्नहु अलीयुन फ़इज़ा मज़ा अली फ़इब्नुहु मुहम्मदुन फ़इज़ा मज़ा मुहम्मदुन फ़इब्नुहु जअफ़रुन फ़इज़ा मज़ा जअफ़रुन फ़इब्नुहु मूसा फ़इज़ा मज़ा मूसा फ़इब्नुहु अलीयुन फ़इज़ा मज़ा अली फ़इब्नुहु मुहम्मदुन फ़इज़ा मज़ा मुहम्मदुन इब्नुहु अलीयुन फ़इज़ा मज़ा अलीयुन इब्नुहु हसनु फ़इज़ा मज़ा हसनु फ़इब्नुहु मुहम्मदुन अलमहदी फ़हवलाइ इस्ना अशरा इला अन क़ाला व इन्ना अस्सानि अशरा मिन वुलदी यग़ीबु हत्ता ला युरा व याति अला उम्मति बिज़मनिन ला यबक़ा मिन अल इस्लामि इल्ला इस्मुहु व ला यबक़ा मिन अल क़ुरआनि इल्ला रस्मुहु फ़हीनाइज़िन याज़ुन अल्लाहु तबारका व तअला लहु बिल ख़ुरूजि फ़यज़हरु अल्लाहु अलइस्लामा बिहि व युजद्दिदुहु।

 

अनुवाद-- मुजाहिद ने इब्ने अब्बास (रजियल्लाहु अनहुमा) से उल्लेख किया है कि उन्होंने कहा कि नासल नाम का एक यहूदी पैगम्बर (स.) के पास आया और कहा कि ऐ मुहम्मद कुछ प्रश्न हैं जो मेरे हृदय मे उथल पुथल मचाये हैं मैं चाहता हूँ कि उनके बारे मैं आपसे पूछूँ, (इसके बाद उसने कुछ प्रश्न किये और उनके उत्तर प्राप्त किये उन्हीं प्रश्नों में एक प्रश्न पैगम्बर के उत्तराधिकारी के बारे में भी था।) जिसका उत्तर पैगम्बर ने इस प्रकार दिया कि मेरे उत्तराधिकारी अली हैं और उनके बाद मेरे धेवते हसन और हुसैन हैं और उनके बाद हुसैन के 9 बेटे मेरे उत्तराधिकारी होंगे। उस यहूदी ने कहा कि उनके नाम भी बताओ पैगम्बर ने कहा कि हुसैन के बाद उनके बेटे अली और अली के बाद उनके बेटे मुहम्मद और मुहम्मद के बाद उनके बेटे जाफ़र और जाफ़र के बाद उनके बेटे मूसा और मूसा के बाद उनके बेटे अली और अली के बाद उनके बेटे मुहम्मद और मुहम्मद के बाद उनके बेटे अली और अली के बाद उनके बेटे हसन और हसन के बाद उनके बेटे मुहम्मद महदी यह बारह व्यक्ति हैं। यहाँ तक कहा कि मेरी संतान से बारहवा इमाम परोक्ष हो जायेगा, और जब इस्लाम नामत्र के लिए रह जायेगा और क़ुरआन केवल एक रीति रिवाज बनकर रह जायेगा उस समय अल्लाह उनको प्रत्यक्ष होने की अनुमति देगा ताकि वह इस्लाम को जीवित करें।

 

 

(समाप्त)

 

[1] उतपत्ति में अद्वैतवाद अर्थात इस बात में आस्था होना कि इस संसार का रचियता एक है और वह रचियता ऐसा है जिसकी ज़ात मे किसी प्रकार का संमिश्रण नही है। ।

 

[2] रबूबियत तकवीनी अर्थात इस बात मे आस्था होना कि अल्लाह ने इस संसार को उतपन्न करके सवतन्त्र नही छोड़ है बल्कि इस संसार की समस्त प्रक्रियाओं में अल्लाह का इरादा विद्यमान।

 

[3] रबूबियते तशरीई अर्थात इस बात में आस्था होना कि अल्लाह ने इंसान को पूर्ण अधिकार प्रदान किया है, परन्तु उसकी जीवन शैली को क़ानून के द्वारा संचालित करता है। और यह केवल उसका ही अधिकार है कि वह मानव को पूर्ण रूप से संचालित करने के लिए आदेश व निर्देश जारी करे।

 

[4] अक़ले नजरी से अभिप्राय इंसान के अन्दर पायी जाने वह शक्ति है जिसकी सहायता से इंसान जानकारी प्राप्त कर सकता है।

 

[5] अक़्ले अमली से अभिप्राय इंसान के अन्दर पायी जाने वाली वह शक्ति है जिसकी सहायता से इंसान अच्छे व बुरे कार्यों को समझ सकता है और इस शक्ति को अपना मार्ग दर्शक बना सकता है।

 

[6] धर्म मासूम नबियों व खास वलियों को मानवता के सम्मुख एक आदर्श के रूप में परिचित कराता है। ताकि इंसान इन आदर्शों से सम्पर्क करके पहले इंसान के सही गुणों को समझे और बाद में उन आदर्शों से इस सम्बंध में सहायता ले कि शरियत की शिक्षाओं को अपने संसारिक जीवन में किस प्रकार लागू किया जाये। और मासूम उन विशेष व्यक्तियों को कहते हैं जो न जान बूझ कर ग़लती करते हैं और न ही न जानने के आधार पर पर कोई ग़लत काम करते हैं। ( इनको ही इंसाने कामिल कहा जाता है)

 

[7] बरज़ख़ का जीवन इंसान की मृत्यु से शुरू होता है और इस जीवन की अन्तिम सीमा क़ियामत है। कुछ रिवायतों में बरज़ख़ को सपने से उपमा दी गयी है। बरज़ख़ मे पवित्र आत्माऐं आराम से रहती हैं और बुरी आत्माऐं कष्ट में रहती हैं। और यह क़ियामत का छोटा रूप है।

 

[8] सभी आसमानी धर्मों का एक सामुहिक संदेश यह है कि इस संसार में जो व्यवस्था व्याप्त है वह एक अख़लाक़ी व्यवस्था है। जिसका अर्थ यह है कि वह प्रत्येक कार्य जो इंसानस्वतंत्रा के साथ अपनी मर्ज़ी सेकरता है उसका फल आवश्य है।अगर अच्छा कार्य करेगा तो उसको अच्छा फल दिया जायेगा और अगर बुरे कार्य करेगा तो उसको दण्ड दिया जायेगा। अल्लाह के न्याय से कोई भी नही बच सकता। और अल्लाह की अनुकम्पा सब पर समान व न्यायपूर्वक है।

 

[9] यहां पर सुन्नत से अभिप्राय वह निश्चित्ताऐं हैं जिनके द्वारा संसार का संचालन किया जा रहा है और इनमें परिवर्तन नही होता है। जैसे कि क़ुराने करीम के सूरए फ़ातिर की आयत न. 42 में कहा गया है कि अल्लाह की सुन्नत में परिवर्तन नही आता।

 

[10] निवास स्थान परिवर्तन के लिए पैगम्बर की मक्के से मदीने की यात्रा को इस्लाम में हिजरतकहा जाता है।

 

[11] दुर्रे मनसूर क़ुरआने करीम की तफ़सीर की किताब है जिसके लेखक अब्दुर्रहमान पुत्र अबिबक्र सयूती हैं। वह एक फ़क़ीह, मुफ़स्सिर, मुहद्दिस, अदीब व इतिहासकार थे। और वह शाफ़ई मज़हब से सम्बन्धित थे। वह 849 हिजरी क़मरी में मिस्र के सयूत नामक शहर में पैदा हुए। उनके बारे में इब्ने उम्माद हंबली नामक विद्वान कहता है कि वह हदीस , व रिजाल में अपने समय के सबसे बड़े विद्वान थे।और उनकी मृत्यु सन् 911 हिजरी में हुई।

 

[12] असदुल ग़ाब्बह फ़ी माअरिफ़तिस् सहाबह इस किताब के लेखक अबुल हसन अली पुत्र अबि बक्र मुहम्मद पुत्र अब्दुल करीम अब्दुल वाहिद शेबानी हैं । जो इब्ने असीर जज़री के नाम से प्रसिद्ध हैं। वह सन्555 हिजरी में अलजज़ीरह में पैदा हुए और वहीँ पर पले बढ़े। और इसके बाद अपने पिता के साथ मुसल आ गये। वह हदीस व तफ़्सीर के उस्ताद और अपने समय के एक बड़े इतिहासकार थे। इतिहास विषय पर उनकी किताब अलकामिल फ़ित्तारीखविश्व प्रसिद्ध है। उन्होंने इब्ने समआनी की किताब अल इंसाब का संक्षिप्ती करण किया और उस पर नोट लिखे। उनकी मृत्यु सन् 630 हिजरी में मुसल में हुई।

 

 

[13]“ अल इस्तियाब फ़ी मारिफ़तिल असहाबइस किताब के लेखक युसुफ़ पुत्र अब्दुल्लाह पुत्र मुहम्मद पुत्र अब्दुल बर्र क़रतबी हैं जो मालकी सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। वह सन् 368 हिजरी में क़रतबे में पैदा हुए थे। वह सुन्नी सम्प्रदाय के बड़े मुहद्दिस, फ़क़ीह, व इतिहासकारों में गिने जाते हैं। उनकी म़त्यु सन् 463 हिजरी में हुई।

 

[14] “अल असाबा फ़ी तमीज़िस्सहाबहइस किताब के लेखक इब्ने हज्र अहमद पुत्र अली पुत्र मुहम्मद अक़लानी हैं जो शाफ़ई सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। वह सन् 774 हिजरी में पैदा हुए और सन् 852 हिजरी में उनका देहान्त हो गया। वह क़ाहिरा में पैदा हुए और यमन, हिजाज़ आदि में शिक्षा प्राप्त की। वह अपने समय में एक बड़े फ़क़ीह , अदीब, मुहद्दिस, इतिहासकार व इल्में रिजाल के ज्ञाता थे। उनकी किताबें लिसानुल मीज़ान, तक़रीबुत्तहज़ीबुल इसाबत व फ़तहुल बारी फ़ी शरहि सही बुख़ारी उनकी प्रसिद्ध किताबें हैं।

 

[15] मुसनदे अहमद हदीस की एक प्रसिद्ध किताब है जिसका संकलन हम्बली सम्प्रदाय के इमाम अहमद पुत्र मुहम्मद पुत्र हम्बल, अबुअब्दुल्लाह शेबानी वायली ने किया है। यह सुन्नी सम्प्रदाय के चार इमामों में गिने जाते हैं। वह सन् 164 हिजरी में बग़दाद में पैदा हुए सन् 241 हिजरी में मुतवक्किल अब्बासी के शासन काल में इस दुनिया से गये। उन्होने बहुतसी किताबें लिखी जिनमें से मुख्य मुसनदहै। इस किताब में लग भग 30000 हदीसों का वर्णन किया गया है।

 

[16] सही तिरमिज़ी सुन्नी सम्प्रदाय की छः सही कहलाई जाने वाली हदीस की किताबों में से एक है। और इस किताब का संकलन अबु ईसा मुहम्मद पुत्र ईसा तिरमिज़ी ने किया है। वह सुन्नी सम्प्रदाय में हदीस के बड़े विद्वानों में गिने जाते हैं। उनका देहान्त सन् 279 हिजरी में तिरमिज़ के एक गाँव बूग़ मे हुआ।

 

[17] अलकामिल फ़ित्तारीख इस किताब के लेखक इब्ने असीरे जज़री हैं।

 

[18] इब्ने अबिल हदीद, इज़्ज़ुद्दीन अबुहामिद पुत्र हिबतुल्लाह पुत्र मुहम्मद पुत्र हुसैन पुत्र अबिल हदीद मदाइनी एक अब्बासी शासन काल के एक बड़े विद्वान व इतिहासकार थे । वह एक पारंगत उसूली फ़क़ीह व अदीब थे। और मोतिज़ला ,सम्प्रदाय से सम्बन्धित थे। उनका जन्म सन् 586 हिजरी में मदाइन में तथा देहान्त सन् 656 हिजरी में हुआ। उन्होनें बहुतसी किताबें लिखी जिनमें से एक नहजुल बलाग़ा की शरहे भी है।

 

 

[19] तारीख़् बग़दाद नामक किताब इतिहास से सम्बन्धित है। और इस किताब के लेखक अबुबकर अहमद पुत्र अली पुत्र साबित बग़दादी हैं जो ख़तीबे बग़दादी के नाम से प्रसिद्ध हैं। वह हदीस के हाफ़िज़ व इतिहासकार थे। वह सन् 392 हिजरी में मक्के और कूफ़े के बीच उज़ैय्यह नामक स्थान पर पैदा हुए। और उनका पालन पोषण बग़दाद मे हुआ। और फिर सन् 463 हिजरी में इसी शहर में देहान्त हुआ। उन्होंने 56 किताबें लिखी हैं इनमें मुख्य किताब तारीखे बग़दाद है जिसकी 14 जिल्दे हैं।

 

[20] मरूजुज़्ज़हब किताब के लेखक अली पुत्र हुसैन पुत्र अली, अबुलहसन मसऊदी हैं। यह पैगम्बर के सहाबी मसऊदी के वंश में से हैं। वह बग़दाद में पैदा हुए और मिस्र में रहे और अन्त में सन् 346 हिजरी में मिस्र में ही उनका देहान्त हुआ। वह मोतिज़ला सम्प्रदाय से समबन्धित थे। उन्होनें बहुतसी किताबें लिखी जिनमें से मुख्य मरूजुज़्ज़हब, अखबारे ज़मान व मन इबादिहिल हदसान, अत्तंबीह वल अशराफ़, सिर्रूल हयात, अल इस्तबसार आदि हैं।

 

[21] अहलिबैत इस्लाम में हज़रत अली अलैहिस्सलाम व हज़रत अली व पैगम्बर (स.) की बेटी हज़रत फ़ातिमा की मासूम संतान को अहलिबैत कहा जाता है।

 

[22] अलमुस्तदरक अलस्सहीहैन इस किताब का संकलन अबु अब्दुल्लाह पुत्र मुहम्मद पुत्र हम्दवियह पुत्र हकम जो कि हाकिम नेशापुरी के नाम से प्रसिद्ध है ने किया। वह अपने समय में अहले हदीस सम्प्रदाय के इमाम थे। वह अपने ज्ञान की अधिकता के लिए प्रसिद्ध हैं। क्योंकि वह सन् 359 हिजरी में समानियों के शासन काल मेंअबि नस्र की विज़ारत के समय मे न्यायधीश के पद पर नियुक्त थे, इस लिए हाकिम(अधिकारी) के नाम से प्रसिद्ध हुए। वह सन् 321 हिजरी में नेशापुर में पैदा हुए और उनकी मृत्यु सन् 405 हिजरी में हुई। उनकी लिखी हुई किताबों में से अस्सहीहान, अल इलल, अल आमाली, फ़वाइदुश् शयूख़, आमालीयुल अशयात, तराजिमुश शयूख़, तारीखे उल्माए नेशापुर, अलमदखल इला इल्मुस्सहीह, अलमुस्तदरक अला सहीहैन हैं।

 

[23] - सही बुखारी सुन्नी सम्प्रदाय की छः सही कहलाई जाने वाली किताबों में से एक है। और इन किताबों में भी यह सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस किताब के संकलन कर्ता अबु अब्दुल्लाह मुहम्मद पुत्र अबिल हसन इस्माईल बुख़ारी हैं। वह सन् 194 हिजरी में पैदा हुए और सन् 256 हिजरी में उनका देहान्त हुआ।

 

[24] सही मुस्लिम भी सुन्नी सम्प्रदाय की छः सही कहलाई जाने वाली किताबों में सम्मलित है। इस किताब के संकलनकर्ता ङाफ़िज़ व मुहद्दिस अबुल हसन मुस्लिम पुत्र हज्जाज पुत्र मुस्लिम क़शीरी नेशापुरी हैं। उनका जन्म सन् 206 हिजरी में नेशापुर में हुआ तथा मृत्यु भी सन् 261 हिजरी में नेशापुर में ही हुई।

 

[25] मौला अर्थात हाकिम, संरक्षक या शासक।

 

[26] सवाइक़ुल मुहर्रिक़ा के लेखक सुलिमान पुत्र खौजह इब्राहीम क़बलान हुसैनी हनफ़ी नक़्शबन्दी क़न्दूज़ी हैं। वह बलख़ के विद्वानों में से हैं। उनका जन्म सन् 1220 हिजरी में हुआ और सन् 1270 हिजरी में क़ुसतुनतुनिया में उनका देहान्त हो गया। उनकी दूसरी प्रसिद्ध किताब यनाबिउल मवद्दत है।