नमाज़ के 114 नुक्ते
नमाज़ के 114 नुक्ते
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Publish number :
दूसरा
Publication year :
2010
Number of volumes :
1
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नमाज़ के 114 नुक्ते
पहला हिस्सा- नमाज़ की अहमियत 1-नमाज़ सभी उम्मतों मे मौजूद थी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स. अ.) से पहले हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की शरीअत मे भी नमाज़ मौजूद थी। क़ुरआन मे इस बात का ज़िक्र सूरए मरियम की 31 वी आयत मे मौजूद है कि हज़रत ईसा (अ.स.) ने कहा कि अल्लाह ने मुझे नमाज़ के लिए वसीयत की है। इसी तरह हज़रत मूसा (अ. स.) से भी कहा गया कि मेरे ज़िक्र के लिए नमाज़ को क़ाइम करो। (सूरए ताहा आयत 26) इसी तरह हज़रत मूसा अ. से पहले हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम भी नमाज़ पढ़ते थे जैसे कि सूरए हूद की 87वी आयत से मालूम होता है। और इन सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम थे। जो अल्लाह से अपने और अपनी औलाद के लिए नमाज़ क़ाइम करने की तौफ़ीक़ माँगते थे। और इसी तरह हज़रत लुक़मान अलैहिस्सलाम अपने बेटे को वसीयत करते हैं कि नमाज़ क़ाइम करना और अम्रे बिल मअरूफ़ व नही अज़ मुनकर को अंजाम देना। दिल चस्प बात यह है कि अक्सर मक़ामात पर नमाज़ के साथ ज़कात अदा करने की ताकीद की गई है। मगर चूँकि मामूलन नौजवानों के पास माल नही होता इस लिए इस आयत में नमाज़ के साथ अम्र बिल माअरूफ़ व नही अज़ मुनकर की ताकीद की गई है। 2-नमाज़ के बराबर किसी भी इबादत की तबलीग़ नही हुई हम दिन रात में पाँच नमाज़े पढ़ते हैं और हर नमाज़ से पहले अज़ान और इक़ामत की ताकीद की गई है। इस तरह हम बीस बार हय्या अलस्सलात (नमाज़ की तरफ़ आओ।) बीस बार हय्या अलल फ़लाह (कामयाबी की तरफ़ आओ।) बीस बार हय्या अला ख़ैरिल अमल (अच्छे काम की तरफ़ आओ) और बीस बार क़द क़ामःतिस्सलात (बेशक नमाज़ क़ाइम हो चुकी है) कहते हैं। अज़ान और इक़ामत में फ़लाह और खैरिल अमल से मुराद नमाज़ है। इस तरह हर मुसलमान दिन रात की नमाज़ों में 60 बार हय्या कह कर खुद को और दूसरों को खुशी के साथ नमाज़ की तरफ़ मुतवज्जेह करता है। नमाज़ की तरह किसी भी इबादत के लिए इतना ज़्याद शौक़ नही दिलाया गया है। हज के लिए अज़ान देना हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की ज़िम्मेदारी थी, मगर नमाज़ के लिए अज़ान देना हम सबकी ज़िम्मेदारी है। अज़ान से ख़ामोशी का ख़ात्मा होता है। अज़ान एक इस्लामी फ़िक्र और अक़ीदा है। अज़ान एक मज़हबी तराना है जिसके अलफ़ाज़ कम मगर पुर मअनी हैं अज़ान जहाँ ग़ाफ़िल लोगों के लिए एक तंबीह है। वहीँ मज़हबी माहौल बनाने का ज़रिया भी है। अज़ान मानवी जिंदगी की पहचान कराती है।