अज़मते नमाज़

इमाम अली अलैहिस सलाम नहजुल बलाग़ा में इरशाद फ़रमाते हैं:

नमाज़ से बढ़ कर कोई अमल ख़ुदा को महबूब नही है लिहाज़ा कोई दुनियावी चीज़ तूझे अवक़ाते नमाज़ से ग़ाफ़िल न करे।

वक़्ते नमाज़ की अहमियत

इमाम अलैहिस सलाम इसी किताब में फ़रमाते हैं:

नमाज़ को मुअय्यन वक़्त के अंदर अंजाम दो, वक़्त से पहले भी नही पढ़ी जा सकती और वक़्त से ताख़ीर में भी न पढ़ों।

इमाम अलैहिस सलाम जंगे सिफ़्फ़ीन में जंग के दौरान नमाज़ पढ़ने की तैयारी फ़रमाते हैं, इब्ने अब्बास ने कहा कि ऐ अमीरुल मोमिनीन हम जंग में मशग़ूल हैं यह नमाज़ का वक़्त नही है तो इमाम (अ) ने फ़रमाया कि ऐ इब्ने अब्बास, हम नमाज़ के लिये ही तो जंग लड़ रहे हैं। इमाम (अ) ने ज़वाल होते ही नमाज़ के लिये वुज़ू किया और ऐन अव्वले वक़्त में नमाज़ को अदा कर के हमें दर्स दिया है कि नमाज़ किसी सूरत में अव्वल वक़्त से ताख़ीर न की जाये।

नमाजे तहज्जुद या नमाज़े शब

नमाज़े शब या नमाज़े तहज्जुद एक मुसतहब्बी नमाज़ है जिस की गयारह रकतें हैं आठ रकअत नमाज़े शब की नीयत से, दो रकअत नमाज़े शफ़ा की नीयत से और एक रकअत नमाज़े वित्र की नीयत से पढ़ी जाती है, नमाज़े शफ़ा के अंदक क़ुनूत नही होता और नमाज़े वित्र एक रकअत है जिस में कुनूत के साथ चालीस मोमिनीन का नाम लिया जाता है। यह नमाज़ मासूमीन (अ) पर वाजिब होती है। मासूमीन (अ) ने इस नमाज़ की बहुत ताकीद की है। चूं कि इस के फ़वायद बहुत ज़्यादा है।

नमाज़े शब की बरकात

1. नमाज़े शब तंदरुस्ती का ज़रिया है।

2. ख़ूशनूदी ए ख़ुदा का ज़रिया है।

3. नमाज़े शब अख़लाक़े अंबिया की पैरवी करना है।

4. रहमते ख़ुदा का बाइस है। (1)

इमाम अली (अ) नमाज़े शब की अज़मत को बयान करते हुए फ़रमाते हैं:

मैंने जब से रसूले ख़ुदा (स) से सुना है कि नमाज़े शब नूर है तो उस को कभी तर्क नही किया हत्ता कि जंगे सिफ़्फ़ीन में लैलतुल हरीर में भी उसे तर्र नही किया। (2)

नमाज़े जुमा की अहमियत

नमाज़े जुमा के बारे में भी इमाम अलैहिस सलाम ने नहजुल बलाग़ा में बहुत ताकीद फ़रमाई है:

पहली हदीस

जुमे के दिन सफ़र न करो और नमाज़े जुमा शिरकत करो मगर यह कि कोई मजबूरी हो। (3)

दूसरी हदीस

इमाम अली अलैहिस सलामा जुमे के ऐहतेराम में नंगे पांव चल कर नमाज़े जुमा में शरीक होते थे और जुते हाथ में ले लेते थे। (4)

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1. क़ुतबुद्दीन रावन्दा, अद दअवात पेज 76

2. बिहारुल अनवार जिल्द 4

3. नहजुल बलाग़ा ख़त 69

4. दआयमुल इस्लाम जिल्द 1 पेज 182