अमर ज्योति-33

क़ुरआने मजीद ने अनेक स्थान पर इस बात की ओर संकेत किया है कि यह अमर चमत्कार सभी लोगों को अपने संबोधन का पात्र बनाता है। सूरए आले इमरान की 138वीं आयत में कहा गया हैः यह क़ुरआन सभी लोगों के लिए स्पष्ट बयान है। इसी आयत में आगे चलकर कहा गया है कि क़ुरआन उन लोगों के लिए मार्गदर्शन का कार्यक्रम है जो स्वयं को क़ुरआन से मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए तैयार करते हैं। आयत कहती हैः यह क़ुरआन केवल ईश्वर से डरने वालों के लिए मार्गदर्शन व शिक्षा सामग्री है। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम लोगों पर क़ुरआने मजीद के प्रभाव के बारे में कहते हैं कि क़ुरआन और लोगों के बीच वही रिश्ता है जो धरती और वर्षा के बीच है। सहसा की सूखी हुई धरती पर ईश्वर वर्षा भेजता है और धरती हिल जाती है। इसके बाद वह मूसलाधार बारिश करता है तो धरती पुनः हिल जाती है और वनस्पति उगाने के लिए तैयार हो जाती। फिर ईश्वर नहरों को जारी कर देता है यहां तक कि धरती के भीतर से वनस्पतियां और पौधे बाहर निकल आते हैं और बढ़ने लगते हैं। जो कुछ धरती के लिए बेहतर है और लोगों तथा पशुओं के जीवन के लिए आवश्यक है, ईश्वर उसे धरती से बाहर निकालता है। क़ुरआने मजीद भी उन लोगों के साथ ऐसा ही करता है जो उसे स्वीकार करते हैं।   क़ुरआने मजीद की शिक्षाएं, ऐसे कार्यक्रमों का एक समूह हैं जो लोगों के हर वर्ग को अपने संबोधन का पात्र बनाते हैं, चाहे वे शिक्षित हों या अशिक्षित और धनवान हों या दरिद्र। निश्चित रूप से जिसके पास अधिक ज्ञान व ईश्वरीय पहचान होगी वह क़ुरआनी ज्ञान के असीम सागर से अधिक लाभान्वित होगा। क़ुरआन संपूर्ण मानवता के लिए आया है अतः उसकी शिक्षाएं गहन एवं ठोस होने के साथ ही साथ सरल और सभी के लिए समझने एवं लाभ उठाने योग्य हैं। क़ुरआन के अमर होने का रहस्य यह है कि उसकी शिक्षाएं किसी विशेष समय या काल खंड में सीमित नहीं हैं। उसकी ज्ञान संबंधी संस्कृति, समय से इतर है अतः समय उसकी शिक्षाओं और बातों को पुराना नहीं करता। किसी ने यह दावा नहीं किया है कि क़ुरआने मजीद ने मानव जीवन के सभी पहलुओं के सभी छोटी से छोटी वैचारिक एवं व्यवहारिक बातों को विस्तार से बयान किया है। दूसरे शब्दों में यह बात नहीं सोचनी चाहिए कि क़ुरआने मजीद विभिन्न ज्ञानों का विश्वकोष है और उसकी शिक्षाएं हमें सृष्टि की वस्तुओं की पहचान हेतु वैचारिक प्रयासों से आवश्यकतामुक्त कर देती हैं। चूंकि क़ुरआने मजीद का लक्ष्य, लोक-परलोक में मनुष्य का सौभाग्य व कल्याण को सुनिश्चित बनाना है, इस लिए यह बात आवश्यक है कि वह मनुष्य के सांसारिक मामलों, उसके सामाजिक संबंधों तथा व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक व्यवहार के बारे में व्यापक एवं त्रुटिहीन कार्यक्रम प्रस्तुत करे। दूसरे शब्दों में क़ुरआने मजीद ऐसी बातों का वर्णन करता है जो मनुष्य के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती हैं और इसी प्रकार वह उन बातों का भी उल्लेख करता है जो उसके सौभाग्य के मार्ग में रुकावट डालती हैं। हमने बताया कि क़ुरआन ने मनुष्य के कल्याण के मार्ग का चित्रण ईश्वर की पहचान और अनन्य ईश्वर पर ईमान के आधार पर किया है और इसी के साथ उसने नुबुव्वत या पैग़म्बरी और प्रलय पर विश्वास के विषय को भी प्रस्तुत किया है। क़ुरआने मजीद की शिक्षाओं के एक भाग में उन व्यवहारिक क़ाननों को प्रस्तुत किया गया है जो उसके वास्तविक कल्याण को सुनिश्चित बनाने वाले तथा उसकी प्रगति व उत्थान के कारक हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि क़ुरआने मजीद तीन मूल भागों पर आधारित है। पहला भाग, एकेश्वरवाद, नुबुव्वत, प्रलय तथा अन्य विश्वासों सहित आस्था संबंधी सिद्धांतों पर आधारित है। दूसरा भाग सदगुणों व शिष्टाचार के वर्णन पर आधारित है। तीसरा भाग उन धार्मिक आदेशों और व्यवहारिक क़ानूनों पर आधारित है जिनकी मूल बातें क़ुरआन में वर्णित हैं और उन्हें विस्तृत रूप से प्रस्तुत करने का दायित्व पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को सौंपा गया है। कहा जा सकता है कि क़ुरआने मजीद के कार्यक्रमों में मानव जीवन के सभी आयामों का ध्यान रखा गया है चाहे वे व्यक्तिगत व सामाजिक आयाम हों अथवा लोक-परलोक के मामले हों। अर्थात क़ुरआन ने व्यक्तिगत जीवन में भी मनुष्य के दायित्वों का निर्धारण किया है और सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक क्षेत्रों में भी अधिकारों और दायित्वों पर ध्यान दिया है। क़ुरआने मजीद की नैतिक शिक्षाओं के बारे में हमने कुछ उदाहरण दिए। इसी प्रकार क़ुरआन ने अपनी अनेक आयतों में मनुष्य के सामाजिक जीवन के विभिन्न आयामों के बारे में भी बात की है। उदाहरण स्वरूप वह व्यापार को सामाजिक एवं जनसेवा के कार्यों में समझता है। यद्यपि अधिकांश कार्य व व्यापार के संबंध में मनुष्य की भावना धन कमाने की होती है किंतु इसी के साथ आर्थिक गतिविधियां, स्वच्छ, तर्कसंगत एवं वांछनीय होनी चाहिए। सूरए निसा की आयत क्रमांक 29 में कहा गया है। हे ईमान वालो! आपस में एक दूसरे का माल ग़लत ढंग से न खाओ सिवाए इसके कि वह तुम्हारी इच्छा से होने वाला व्यापार और लेन-देन हो। इस्लाम के आर्थिक कार्यक्रमों में अंतिम लक्ष्य, हलाल ढंग से रोज़ी कमाना तथा प्रतिष्ठा के साथ जीवन बिताना है और यही बात इस्लाम के आर्थिक आधारों को अन्य मानवीय मतों और पूंजीवाद से भिन्न करती है। इस्लाम में भौतिक अवसर, लाभ और स्वामित्व, अधिक उच्च एवं स्थायी लक्ष्यों की सेवा में होते हैं। क़ुरआन लोगों को भलाई और सामाजिक संबंधों में शिष्टाचार का न्योता देते हुए कहता है कि ईश्वर के मार्ग में दान-दक्षिणा करो और अपने हाथों से स्वयं को तबाही में न डालो और भलाई करो कि निश्चित रूप से ईश्वर भलाई करने वालों को पसंद करता है। क़ुरआने मजीद आर्थिक संबंधों के मैदान में भी व्याज और डंडी मारने जैसी बुराइयों के वर्णन की ओर से निश्चेत नहीं रहा है और दूसरी ओर उसने लोगों को बिना व्याज का ऋण देने के लिए भी प्रोत्साहित किया है। सूरए बक़रह की आयत क्रमांक 245 में कहा गया है कि कौन है जो ईश्वर को अच्छा ऋण दे कि ईश्वर उसे उसके लिए कई गुना बढ़ा दे? और ईश्वर ही है जो (बंदों की रोज़ी में) कमी भी करता है और वृद्धि भी करता है। और उसी की ओर तुम्हें लौटना है। एक अन्य स्थान पर परिजनों, अनाथों, दरिद्रों, पड़ोसियों, साथियों और मातहतों के अधिकारों के सम्मान पर बल दिया गया है। सूरए निसा की छत्तीसवीं आयत में क़ुरआन कहता है कि ईश्वर की उपासना करो और किसी को उसका समकक्ष न बनाओ और माता-पिता के साथ भलाई करो परिजनों, अनाथों, दरिद्रों नातेदार पड़ोसियों, अपरिचित पड़ोसियों, साथ रहने वाले व्यक्ति, मार्ग में रह जाने वाले यात्री और अपने दासों और दासियों सबके साथ भला व्यवहार करो कि ईश्वर घमंडी और अहंकारी व्यक्ति को पसन्द नहीं करता। क़ुरआने मजीद की आयतों में खान-पान और मनुष्य के मन मस्तिष्क पर उसके प्रभाव पर भी ध्यान दिया गया है। इस आधार पर उसने मनुष्य के वास्तविक लाभों व हितों को दृष्टिगत रखते हुए खाने-पीने के संबंध में सार्थक निर्देश दिए हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में क़ुरआन ने हराम मांस वाले पशुओं को हलाल मांस वाले पशुओं से भिन्न किया है। इस ईश्वरीय किताब ने मनुष्य के अधिकारों पर विशेष रूप से ध्यान दिया है और मीरास, तलाक़, वसीयत और क़ेसास अर्थात शारीरिक  क्षति के बदले जैसे मामलों में नियम और क़ानून प्रस्तुत किए हैं। क़ुरआने मजीद ने समाज की मूलभूत समस्याओं के बारे में निर्णय लेने के क्षेत्र में भी सभी को परामर्श के लिए प्रोत्साहित किया है। वह लोगों से कहता है कि परामर्श और सलाह को अपने जीवन के कार्यक्रम का भाग बना लें ताकि उनके कार्य सही एवं तर्कसंगत रहें। सूरए शूरा की 38वीं आयत में कहा गया है। और (ईमान वाले तो सदैव) अपने कार्यों में परस्पर परामर्श करते हैं। क़ुरआने मजीद परिवार को भी बहुत अधिक महत्व देता है और उसे एक पवित्र एवं स्वस्थ समाज का आधार बताता है। इस ईश्वरीय किताब ने स्त्री और पुरुष को एक दूसरे के लिए प्रेम व संतुष्टि का माध्यम बताया है और दोनों के बीच सुदृढ़ संबंधों के लिए प्रभावी एवं उपयोगी निर्देश प्रस्तुत किए हैं। राजनैतिक मैदान में भी क़ुरआन की शिक्षाएं, लोगों को अपने भविष्य के निर्धारण में भाग लेने और भूमिका निभाने का निमंत्रण देती हैं किंतु इसी के साथ क़ुरआन का यह भी मानना है कि समाज का नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथ में होना चाहिए जो भले, योग्य एवं अमानतदार हों। क़ुरआने मजीद ने उपासना के क्षेत्र में नमाज़, रोज़े, हज इत्यादि उपासनाओं के परिप्रेक्ष्य में ईश्वर की उपासना के सही मार्गों के संबंध में भी शिक्षाएं प्रस्तुत की हैं जिनसे मनुष्य की आंतरिक शक्तियां सुदृढ़ होती हैं और उसका ईमान व धार्मिक आस्थाएं अधिक मज़बूत हो जाती हैं। कुल मिला कर यह कि क़ुरआने मजीद मनुष्य द्वारा इस संसार में किए गए सभी कर्मों और व्यवहार को परलोक व प्रलय की भूमिका तथा उससे जुड़ा हुआ समझता है और उसका मानना है कि उसके कर्म, उसके स्थायी कल्याण व परिपूर्णता अथवा दुर्भाग्य एवं पतन में मूल भूमिका निभाते हैं। क़ुरआने मजीद इसी प्रकार मनुष्य को इस बात के लिए प्रोत्साहित करता है कि वह अपनी बुद्धि व वैचारिक शक्तियों का प्रयोग करके ब्रह्मांड की नित नई वस्तुओं को सही ढंग से पहचाने और उनके संबंध में चिंतन करके अपने जीवन को बेहतर से बेहतर बनाने का प्रयास करे।