अमर ज्योति-34

क़ुरआने मजीद, ईश्वर की दया का अमर ग्रंथ है जो उसकी इच्छा से पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के हृदय पर उतारा गया है और शब्दों तथा आयतों के ढांचे में लिखित रूप में सामने आया है। इस ईश्वरीय किताब की शिक्षाएं अत्यंत व्यापक एवं अद्वितीय हैं। श्रोताओ जैसा कि पिछले कार्यक्रम में बताया गया कि क़ुरआने मजीद सही जीवन शैली, न्यायपूर्ण सामाजिक व राजनैतिक संबंध और मानव समाज के सही रणनैतिक नियमों को मनुष्य के समक्ष प्रस्तुत करता है। इस ईश्वरीय किताब की एक बड़ी विशेषता इसके इस संसार में आने के तेरह शताब्दियों बाद भी इसके प्रभाव का बाक़ी रहना और इसकी आयतों की ताज़गी है। यही विषय इस बात का कारण बना है कि बड़े बड़े मुस्लिम विद्वानों द्वारा क़ुरआन की आयतों के गहन अध्ययन व चिंतन के अतिरिक्त ग़ैर मुस्लिम विद्वान भी इसके प्रभाव के कारणों की खोज करें। इस मध्य जिन लोगों ने पूरे न्याय एवं निष्पक्षता के साथ क़ुरआने मजीद के ज्ञानों व संस्कृति पर ध्यान दिया है, वे उसकी ओर अवश्य आकृष्ट हुए हैं और क़ुरआन ने उन पर तर्कसंगत एवं मूल्यवान प्रभाव डाला है किंतु कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने पूर्वाग्रह और संकीर्ण दृष्टि से क़ुरआन को देखा है अतः उनके कार्य का परिणाम आरोप और दोषारोपण के अतिरिक्त कुछ नहीं निकला है। अलबत्ता इतिहास में बड़ी संख्या में द्वेष व शत्रुता की भावना से लोगों ने क़ुरआने मजीद का मुक़ाबला करने का प्रयास किया है विशेष कर ईश्वर की ओर से पैग़म्बरे इस्लाम के पास क़ुरआन भेजे जाने के समय में इस ईश्वरीय किताब का अपमान करने का व्यापक प्रयास किया गया जिसके उत्तर में ईश्वर ने विरोधियों को मुक़ाबले की चुनौती दी और उनसे कहा कि वे इस क़ुरआन जैसा एक ही सूरा या कुछ ही आयतें ले आएं। कहा जा सकता है कि किसी भी किताब की क़ुरआन जितनी व्याख्या व समीक्षा नहीं हुई है, यहां तक कि अन्य आसमानी किताबों पर भी न तो इतने आक्रमण हुए और न उनका इतना अनादर किया गया। इन सबके बावजूद क़ुरआने मजीद दिन प्रतिदिन अंतर्राष्ट्रीय हल्क़ों में पहले से अधिक अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। इस समय पश्चिम में इस्लाम व क़ुरआन के बारे में लिखी जाने वाली हज़ारों किताबें इस बात का प्रमाण हैं कि यह अंतिम ईश्वरीय धर्म, ईश्वरीय किताब और उसकी पवित्र शिक्षाएं विश्व के इस क्षेत्र में भी सक्रिय ढंग से उपस्थित हैं। पश्चिमी देशों के विश्वविद्यालयों में इस्लाम शास्त्र को एक विषय के रूप में पढ़ाए जाने से पता चलता है कि इस किताब को अधिक से अधिक समझने की रुचि बढ़ती जा रही है। इसी के साथ यह बात भी उल्लेखनीय है कि क़ुरआने मजीद के विरुद्ध कुप्रयास भी निरंतर जारी हैं। पूर्वी मामलों के विशेषज्ञ उन लोगों में से हैं जिन्होंने क़ुरआने मजीद के ईश्वरीय चमत्कार होने के बारे में संदेह पैदा किए। उनका सबसे बड़ा संदेह, क़ुरआने मजीद की उन आयतों के मुक़ाबले पर आधारित है जिनमें विरोधियों को चुनौती दी गई है। उन्होंने कभी क़ुरआन जैसी ही कोई किताब प्रस्तुत करने का प्रयास किया तो कभी क़ुरआन जैसे सूरे बनाने का विफल प्रयत्न किया। पूर्वी मामलों के विशेषज्ञों ने अपनी किताबों में अरबों की गद्य व पद्य की कुछ रचनाओं को इस बात के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया है कि क़ुरआन कोई असाधारण कथन नहीं है। उदाहरण स्वरूप लीडन के विश्वकोष में क़ुरआन का चमत्कार नामक लेख की ओर संकेत किया जा सकता है। रिचर्ड सी मार्टिन उन लोगों में से था जिसने क़ुरआन का चमत्कार नामक अपने लेख में उन लोगों का उल्लेख किया है जिन्होंने क़ुरआन उतरने के काल में, इस ईश्वरीय किताब का मुक़ाबला करने का प्रयास किया था। इन्हीं में से एक मुसैलमए कज़्ज़ाब था। वह उन लोगों में से था जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के काल में दिखावे के लिए इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया था किंतु उनके जीवन के अंतिम काल में उसने स्वयं के पैग़म्बर होने का दावा किया था। मुसैलमा ने जिस कथन को क़ुरआन के समान बता कर प्रस्तुत किया था वह हर दृष्टि से क़ुरआन की तुलना में निरर्थक था। उसने अपने उस कथन में भी क़ुरआन के बहुत से शब्दों को प्रयोग किया था और जहां केवल उसकी अपनी बात थी वह पूर्ण रूप से अर्थहीन थी और उसमें किसी प्रकार का कोई साहित्यिक या आध्यात्मिक सौंदर्य नहीं था। वर्तमान काल में कुछ लोगों ने इस्लाम व क़ुरआन से शत्रुता के चलते, क़ुरआने मजीद के विरोधी कुछ अरब भाषियों की सहायता से, क़ुरआन की आयतों के समान वाक्य बनाए हैं और उनका प्रचार प्रसार किया। ईसाई लेखक नसीरुद्दीन ज़ाहिर ने वर्ष 1912 में मिस्र में क़ुरआने मजीद के चमत्कार होने को रद्द करते हुए एक लेख प्रकाशित किया था। अपने इस लेख में उसने दावा किया कि न केवल यह कि क़ुरआन जैसी किताब प्रस्तुत करना संभव है बल्कि उससे बेहतर किताब भी प्रस्तुत की जात सकती है। उसने अपने विचार में सूरए हम्द और सूरए कौसर जैसे सूरे बना कर प्रस्तुत कर दिए। अरबी साहित्यकारों के अनुसार इन बनावटी सूरों में अनेक कमियां और आपत्ति जनक बिंदु पाए जाते हैं। इन वाक्यों में प्रस्तुत किए गए शब्द, व्यक्तिगत विचारों से प्रभावित होने के कारण, अर्थ, क्रम, और विषय वस्तु की दृष्टि से वांछित अर्थ पहुंचाते हैं और न ही उनमें क़ुरआने मजीद जैसी वाग्मिता और शब्दालंकार पाया जाता है। अमेरिकन ऑन लाइन नामक एक अमरीकी कंपनी ने भी वर्ष 1997 में क़ुरआने मजीद के मुक़ाबले में तजस्सुद, मुसलेमून, वसाया और ईमान के नाम से चार जाली सूरे इंटरनैट पर प्रस्तुत किए। इन जाली सूरों में भी अनेक शब्द क़ुरआने मजीद से चुराए हुए हैं और इसके साथ ही कई वाक्य निरर्थक हैं तथा इनमें आपस में स्पष्ट रूप से विरोधाभास पाया जाता है। क़ुरआने मजीद पर की जाने वाली कुछ आपत्तियां उसकी वाग्मिता, शब्दालंकार, क़ानूनों, वैज्ञानिक रहस्यों, शैली और उसकी विशेष मधुरता से संबंधित हैं। विलियम जेम्ज़ डुरेंट ने सभ्यता का इतिहास में दावा किया है कि विभिन्न अवसरों पर और विभिन्न कारणों से आने वाली आयतों के चलते क़ुरआने मजीद के टैक्स्ट में बिखराव व पुनरावृत्ति पाई जाती है। जबकि क़ुरआने मजीद के इस संसार में भेजे जाने के समय ही अरब जगत के अनेक साहित्यकारों ने, जो मुसलमान भी नहीं थे, इस बात को स्वीकार किया था कि शब्दालंकार एवं वाग्मिता की दृष्ट से क़ुरआन, चमत्कारिक है। वलीद इब्ने मुग़ीरा, ख़ालिद इब्ने अक़बह, तुफ़ैल इब्ने अम्र, अत्बह इब्ने रबीआ और अनीस इब्ने जनादह जैसे लोग, जो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के कट्टर शत्रु थे, क़ुरआने मजीद के इस आयाम की महानता को स्वीकार किया है। दूसरी ओर क़ुरआन की यही साहित्यिक विशेषताएं, इन नियमों पर ध्यान का सबसे महत्वपूर्ण कारक रही हैं। स्पष्ट है कि अधिक समय बीत जाने से लोगों के कथनो में स्वाभाविक रूप से मतभेद पैदा हो जाता है किंतु क़ुरआने मजीद यद्यपि तेईस वर्षों के दौरान ईश्वर की ओर से भेजा गया है परंतु वह पूर्ण रूप से इस प्रकार के मतभेदों से सुरक्षित है और उसकी यही विशेषता, उसके ईश्वरीय चमत्कार होने का एक प्रमाण है। क़ुरआने मजीद ने अपने चमत्कारिक आयामों के आधार पर जो क़ानून एवं नियम बनाए हैं वे अत्यंत सुदृढ़ एवं असाधारण रूप से ठोस हैं और मानवीय समाजों द्वारा बनाई गई किसी भी क़ानूनी व्यवस्था में इतनी सुदृढ़ता नहीं पाई जाती। मनुष्य ने जो भी क़ानून बनाया है, समय बीतने के साथ उसकी कमियां स्पष्ट होती जाती है और यही कारण है कि हम सभी मानवीय क़ानूनों में परिवर्तन एवं प्रगति के साक्षी हैं जबकि क़ुरआन द्वारा निर्धारित क़ानूनी व्यवस्था, हर समय और स्थान के सभी लोगों के लिए सबसे संपूर्ण क़ानूनी व्यवस्था है। ब्रिटेन से संबंध रखने वाले डेविड सेमोएल मार्गोलियोथ जैसे पूर्वी मामलों के विशेषज्ञों ने क़ुरआने मजीद के इस चमत्कारिक आयाम पर कुछ आपत्तियां की हैं और इस्लामी क़ानूनी व्यवस्था को अरब के शुष्क एवं गर्म क्षेत्र के रहने वाले अरबों के स्वभाव और आदतों से प्रभावित बताया है किंतु पूर्वी मामलों के इन्हीं विशेषज्ञों के एक अन्य गुट ने इस्लाम व क़ुरआन से शत्रुता की भावना से ही सही, क़ुरआन के चमत्कारों सहित इस ईश्वरीय किताब के बारे में अध्ययन किया और इसकी आयतों की इतर मानवीय विषय वस्तु को देख कर क़ुरआन की महानता और उसके चमत्कार होने की बात को स्वीकार कर लिया। विलियम जेम्स डुरेंट ने, जिनके क़ुरआन के बारे में नकारात्मक विचार का इससे पहले हमने उल्लेख किया, अपनी किताब में क़ुरआन की महानता को स्वीकार करते हुए लिखा है कि इस किताब ने मुसलमानों के शिष्टाचार को सुव्यवस्थित किया और दसियों करोड़ लोगों की जीवन शैली को सही आयाम दिया। क़ुरआन, सादा हृदयों में सरल और हर प्रकार की भ्रांति से दूर आस्थाएं पैदा करता है जो अप्रिय संस्कारों और मूर्तिपूजा व सन्यास जैसी ज़ंजीरों से मुक्त होती हैं। मुस्लमानों की नैतिक व सांस्कृतिक उन्नति, क़ुरआन के कारण ही संभव हो सकी है और इस किताब ने उनके बीच सामाजिक व सार्वजनिक व्यवस्था के सिद्धांतों को सुदृढ़ बनाया है तथा उन्हें स्वास्थ्य संबंधी नियमों के पालन के लिए प्रेरित किया है। इस प्रकार से क़ुरआन ने मुसलमानों के मन मस्तिष्क को अंधविश्वासों, अत्याचार, हिंसा और इसी प्रकार की कुरीतियों से मुक्ति दिला दी। लबीद इब्ने अबू रबीआ नामक व्यक्ति की घटना अत्यंत प्रख्यात है जो इस्लाम से पूर्व के सबसे बड़े सात अरब साहित्यकारों में से एक था। जब उसने सूरए बक़रह की आरंभिक आयतों को कहीं लिखे हुए देखा तो उनकी वाग्मिता एवं शब्दालंकार पर इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि अनायास ही उसने आश्चर्य से चिल्ला कर कहा कि ये वाक्य केवल और केवल ईश्वर की ओर से हैं। यह घटना इतनी प्रख्या है कि आज भी पूर्वी मामलों के पश्चिमी विशेषज्ञ अपनी किताबों में इसका उल्लेख करते हैं। आज क़ुरआने मजीद के बारे में अध्यय व समीक्षा की प्रक्रिया, अपने सही मार्ग से बहुत अधिक भटक चुकी है और अधिकतर द्वेष एवं शत्रुता के रूप में सामने आ रही है। उस पवित्र किताब की प्रतियों को, जिसके डेढ़ अरब से अधिक अनुयाइयों की संख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है, कई बार जलाया जा चुका है किंतु इसी प्रकार की शत्रुताओं के कारण, अधिक लोग इस किताब के अध्ययन की ओर उन्मुख भी हो रहे हैं। http://hindi.irib.ir/