डिक्शनरी में शिया का मतलब
डिक्शनरी में शिया का मतलब
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अरबी डिक्शनरीयों में शिया शब्द, किसी एक इंसान या कई इंसानों का किसी दूसरे की बात मानना, किसी की मदद व सपोर्ट करना, तथा कहने या करने में समन्वयन और हमाहंगी के मतलब में इस्तेमाल किया जाता है। नीचे कुछ मशहूर डिक्शनरीयों के नमूने प्रस्तुत किए जा रहे हैं। القاموس: شيعة الرجل اتباعه و انصاره، و الفرقة على حدة و يقع على الواحد و الإثنين، و الجمع و المذكر، و المؤنث अल-क़ामूस- किसी इंसान के शिया उसके मानने वाले और मददगार होते हैं। एक मज़हब पर भी शिया शब्द इस्तेमाल होता है। यह शब्द एकवचन (Singular), द्विवचन (Dual), बहुवचन (Plural), पुल्लिंग (Masculine), स्त्रीलिंग (Feminine) सबके लिए एक ही रूप में इस्तेमाल होता है। (अल-क़ामूसुल मुहीत पार्ट 3 पेज 47) لسان العرب: الشيعة، القوم الذين يجتمعون على الأمر، و كل قوم اجتمعوا على امر فهم شيعة، و كل قوم امرهم واحد يتبع بعضهم رأي بعض فهم شيعة लिसानुल अरबः शिया वह ग्रुप है जो किसी बात पर सहमत हो, जो ग्रुप किसी बात पर सहमति करे वह शिया है। हर वह ग्रुप जो एक बात पर सहमत हो और उनमें से कुछ लोग, कुछ दूसरों का हुक्म मानें, वह शिया हैं। (लिसानुल अरब पार्ट 1 पेज 55) معجم المقاييس: الشين و الياء و العين اصلان يدل أحدهما على معاضدة و مساعفة و الى آخر على بثّ و اشادة... و الشيعة الانصار و الاعوان मोजमुल-मक़ाईस- (ش،ع،ی) शीन, ऐन, या, के दो बेसिक मतलब हैं। एक मतलब,मदद के हैं और दूसरे प्रसार व छिन्न भिन्न होने को बयान करते हैं....... शिया यानि मदद और सपोर्ट करने वाले।( मोजम मक़ाईसुल लुग़ः पेज 545) المصباح المنير: الشيعة الاتباع و الانصار، و كل قوم اجتمعوا على امر فهم شيعة मिस्बाहुल-मुनीर- शिया मानने वाले और मददगारों को कहा जाता है और जो ग्रुप भी किसी बात पर सहमति करे वह शिया है। (मिस्बाहुल-मुनीर पार्ट 1 पेज 398) اقرب الموارد: شيعة الرجل اتباعه و انصاره، شيع و اشياع अक़रबुल मवारिद- किसी इंसान के शिया यानि उसके मानने वाले और मददगार, शिया की बहुवचन शियअ और अशयाअ है। (अक़रबुल मवारिद पार्ट 1 पेज 626) النهاية: اصلها من المشايعة و هي المتابعة و المطاوعة अन-निहायः- शिया के मौलिक मतलब, अनुसरण के हैं यानि दूसरे की बात मानना। (अन-निहायः, इब्नुल असीर पार्ट 2 पेज 519) ऊपर बयान किये गये उदाहरणों में मनन चिंतन करने से यह नतीजा निकलता है कि डिक्शनरी के अनुसार शिया शब्द के तीन मतलब हैं और इन तीनों मतलबों में से कोई एक मतलब ज़रूरी मुराद होते हैं। 1.अनुसरण व बात मानना, 2.मदद 3. सहमति व हमाहंगी। क़ुरआने करीम में शिया शब्द या उसके व्युत्पन्न Derived (शियअ, अशयाअ) अपने शाब्दिक मतलब में ही इस्तेमाल होते हैं यानि ऐसा ग्रुप जो एक बात पर सहमत हो, किसी ख़ास दीन व मज़हब का हुक्म मानना, कुछ लोगों का कुछ दूसरों की बात मानना व आज्ञापालन करना, जैसे बनी-इस्राईल का एक इंसान जो क़िब्ती से मुकाबला कर रहा था, उसे क़ुरआन ने मूसा का शिया कहा है فوجد فيها رجلين يقتتلان هذا من شيعته و هذا من عدوّه हज़रत मूसा (अ.) ने शहर में दो लोगों को झगड़ा करते हुए देखा, जिनमें से एक उनका दोस्त और दूसरा उनका दुश्मन था। (सूरा-ए-क़ेसस आयत नंबर 15) मतलब यह है कि उन दोनों में से एक, बनी-इस्राईल और दूसरा क़िब्ती था इसलिए कि बनी-इस्राईल ख़ुद को हज़रत इब्राहीम, हज़रत याक़ूब और हज़रत इस्हाक़ का मानने वाले समझते थे हालांकि उन पैग़म्बरों की शरीयतों में परिवर्तन आ चुका था, लेकिन उन्हीं पैग़म्बरों का मानने वाला होने के आधार पर बनी-इस्राईल के उस आदमी को मूसा का शिया कहा गया यानि वह उस दीन व शरीयत का मानने वाला था जिसे हज़रत मूसा स्वीकार करते थे। (तफ़सीरे अल-मीज़ान पार्ट 16पेज 17) इसी तरह हज़रत इब्राहीम के बारे में अल्लाह तआला का इरशाद हैः و انّ من شيعته لإبراهيم नूह के शियों में से एक इब्राहीम भी थे। (सूरा-ए-साफ़्फ़ात आयत नम्बर 83) मतलब यह है कि तौहीद (एकेश्वरवाद), न्याय व इंसाफ और हक़ का अनुसरण करने के बारे में हज़रत इब्राहीम (अ.) की वही पॉलीसी थी जो पॉलीसी हज़रत नूह (अ.) की थी। (मजमउल- बयान पार्ट 4 पेज 449 (يعني انه على منهاج و سنّته في التوحيد و العدل و اتباع الحق) इस आयत से यह मुराद नहीं है कि वह एक दूसरे का आज्ञापालन करते थे कि एक इमाम व पथप्रदर्शक और दूसरा मअमूम व हुक्म मानने वाले हो बल्कि यहाँ पर मुराद पॉलीसी और दीन में एकता व हमाहंगी है। इसी लिए इस सम्बंध में समय के आगे या पीछे होने का भी अंतर नहीं पड़ता है। (अल-मीज़ान पार्ट 17 पेज 147 (كل من وافق غيره في طريقته فهو من شيعته تقدّم او تأخّر)) इसलिए क़ुरआन मजीद कभी कभी पूर्ववर्तियों (साबेक़ीन) को बाद में आने वालों (मुतअख़्खेरीन) का शिया कहता है। و حيل بينهم و بين ما يشتهون كما فعل باشياعهم من قبل काफ़िरों और उनकी कामुक इच्छाओं के बीच मौत के माध्यम से दूरी पैदा कर दी गई, जिस तरह उनके पहले वालों के साथ किया गया था। (सूरा-ए-सबा आयत नम्बर 54) इस आयते करीमा में पिछले ज़माने के नास्तिकों को पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. के ज़माने के नास्तिकों का शिया कहा गया है, मतलब यह है कि दोनों नास्तिकता व बेदीनी में एक जैसे हैं। http://www.wilayat.in/