सवेरे-सवेरे-22
सवेरे-सवेरे-22
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वे देश जहां पर पानी की सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता वहां यकृत की बीमारियों में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। गंदे पानी के अतिरिक्त खानों में चिकनाई और मसालों का प्रयोग भी यकृत को ख़राब करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इस्लामी चिकित्सा शैली के एक विशेषज्ञ सैयद अली अबुलहबीब का कहना है कि कुछ एसे खाद्य पदार्थ हैं जो यकृत को स्वस्थ्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका कहना है कि इन खाद्य पदार्थों की संख्या कम नहीं है। उदाहरण स्वरूप गाजर, अनार, शहतूत, ज़ैतून और काहू, जिसे कुछ लोग सलाद पत्ता कहते हैं, यकृत को स्वस्थ रखते हैं। ज़ैतून का तेल यकृत पर चमत्कारिक प्रभाव डालता है। शहतूत का सेवन, हिपैटाइटिस में बहुत लाभदायक सिद्ध होता है। इसके अतिरिक्त तुलसी के बीज, बारहंग और तरंजबीन आदि यकृत की सफ़ाई में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। यकृत को स्वस्थ्य रखने या उसे स्वस्थ बनाने के लिए जौ का सूप, जौ की रोटी, नीबू, प्रतिदिन कम से कम 6 ग्लास पानी एवं ज़ैतून के तेल का सेवन बहुत लाभदायक होता है। इसी प्रकार मधु, किशमिश, शहतूत अंजीर, लौकी, कद्दू, तिल, संतरे और मौसमी का जूस एवं बादाम का सेवन भी यकृत के लिए बहुत लाभदायक होता है। इस प्रकार उचित खाद्य पदार्थों का सेवन करके यकृत को स्वस्थ रखा जा सकता है। स्वस्थ यकृत को स्वस्थ्य शरीर और स्वस्थ्य आत्मा का आधार माना जाता है। यकृत का एक अन्य आश्चर्य चकित करने वाला कार्य, एक एंटी वायरेस पदार्थ बनाना है जिसे इंटरफ़्रोन कहते हैं। यह पदार्थ एसी स्थिति में उत्पन्न होता है जब यकृत पूर्ण रूप से स्वस्थ और सक्रिय हो। दांपत्य जीवन में यह बात बहुत अधिक देखने में आती है कि पति और पत्नी आरंभ के दो तीन वर्षों तक एक-दूसरे के लिए आकर्षण रखते हैं, उनके मन मे एक-दूसरे के प्रति उत्साह और प्रेमपूर्ण उत्तेजना होती है। परन्तु धीरे-धीरे संबन्ध इतने सामान्य और साधारण हो जाते हैं कि प्रेमपूर्ण बातें करना तो दूर, एक-दूसरे पर आपत्ति जताने और छोटी-मोटी लड़ाई के लिए भी मन नहीं करता। बाहर से देखने वाले समझते हैं कि सबकुछ ठीकठाक है परन्तु पति और पत्नी के बीच किसी भी प्रकार की कोई भावना रह ही नहीं जाती। अब ज़रा ध्यान दें। मन लगाकर सोचें। आरंभिक दिनों में आप दोनों अपने बाह्य रूप, कपड़ों, बालों और श्रंगार पर ध्यान दिया करते थे। पत्नी मेज़, थाली या दस्तरख़ान पर खाना सजाती थी, पति के आने की प्रतीक्षा करते हुए चाय या शर्बत तैयार करती थी। यदि पति और पत्नी दोनों ही काम पर जाते थे तो काम से वापसी पर दोनों ही एक-दूसरे की सहायता करते तथा घर की सफाई पर विशेष ध्यान दिया करते थे। पति जी आरंभिक दिनों में कभी फूल तो कभी कोई अन्य छोटा-मोटा उपहार लेकर घर में प्रेवश करते थे,पत्नी पति की मन पसंद डिश बनाकर या उसकी पसंद का कोई काम करके उसे चौकाने का प्रयास करती थी। परन्तु अब। अब तो यह सब किसी को याद भी नहीं आता। संबन्धों में इतनी ठंडक आ गई है कि जैसे बर्फ़ में दब गए हों। यह स्थिति एसे में और विकाराल रूप धारण कर लेती है जब बाहर से कोई ग़लत उकसावा मिल जाता है या फिर एक-दूसरे से इतना ऊब जाते हैं कि मामला तलाक़ तक पहुंच जाता है। एसी स्थिति उत्पन्न न होने पाए इसके लिए क्या किया जाए? नंबर एकः आरंभिक दिनों की भांति ही सदैव अपनी साज-सज्जा, सफाई-सुथराई और कपड़ों पर विशेष ध्यान दें। यह काम पति औरी पत्नी दोनों ही करें तो अच्छा है। नंबर दोः अपनी बातों को पारिवारिक झगड़ों और बखेड़ों में या दूसरों की बुराई में सीमित न करें बल्कि अच्छी किताबें और अच्छी पत्रिकाएं पढ़ें, समाचारपत्र पढ़ने की आदत डालें ताकि अच्छे और ज्ञानवर्धक विषयों पर बातचीत कर सकें। सप्ताह के अंत मे किसी मनोरंजन या किसी से मिलने जुलने का कार्यक्रम मिलजुलकर बनाएं। नंबर तीनः कुछ पति-पत्नी, माता-पिता बनने के पश्चात सदैव ही बच्चों के साथ ही कहीं जाना पसंद करते हैं जबकि उन्हें चाहिए कि बच्चों के बिना भी अपने लिए बाहर जाने का कोई कार्य्रम बनाएं। अकेले फ़िल्म देखना, टहलने जाना या कोई अन्य कार्य जिसमें एक दूसरे से बात करने और एक दूसरे पर ध्यान देने का समय मिल। इसके अतिरिक्त एसे लोगों से संबन्ध रखें जिनका दामपत्य जीवन सुखी हो। सदैव उचित अवसरों और त्योहारों की प्रतीक्षा न करें बल्कि एक दूसरे को छोटे-मोटे उपहार देकर अपने सामानय दिनों को त्योहारों जैसा आनंदमयी बना लें। एक दूसरे की प्रशंसा करने में न हिचकिचाएं। सुंदर वाक्य सीधे दिल में उतर जाते हैं और यह साधारण से जीवन को अमृत समान मीइ कर देतू हैं। यह कार्य किसी भी आयु में किया जा सकता है। और अब एक सच्ची घटना। दीवानों जैसी वेशभूषा में रहने वाले एक ज्ञानी थे जिनका नाम बहलोल था। बहलोल के पास एक व्यक्ति आया। यह व्यक्ति, इस्लाम के उस क़ानून पर आपत्ति करना चाहता था जिसमें मदिरा या शराब को वर्जित किया गया है। उसने बहलोल से पूछा कि यदि मैं अंगूर खाऊं तो क्या यह काम हराम है? बहलोल ने कहा कि नहीं। फिर उसने पूछा कि यदि मैं अंगूर खाकर धूप में लेट जाऊं तो क्या यह हराम है? बहलोल ने उत्तर दिया कि नहीं। इसपर उस व्यक्ति ने कहा कि फिर एसा क्यों है कि अंगूर को यदि एक घड़ें में रखकर उस घड़े को धूप में रख दिया जाए तो कुछ समय बाद उसका सेवन वर्जित कहा जाता है। इसके जवाब में बहलोल ने कहा कि देखो मैं अगर तुम्हारे मुंह पर थोड़ा पानी डालूं तो क्या तुमको पीड़ा होगी? व्यक्ति ने उत्तर दिया कि नहीं। यदि मैं थोड़ी मिट्टी तुम्हारे मुहं पर डालूं तो क्या तुम्हें दर्द होगा? उसने उत्तर दिया कि नहीं। अब बहलोल ने कहा कि यदि मिट्टी में पानी को मिलाकर उसे धूप में रख दिया जाए और उसे तुम्हारे मुहं पर मारा जाए तो क्या होगा यह कहकर बहलोल ने मिट्टी का एक ढेला उठाया और उसके मुंह पर मार दिया। वह व्यक्ति चिल्लाते हुए कहने लगा कि तुमने मेरा सिर तोड़ दिया। बहलतल ने कहा कि अरे क्या हुआ मैंने क्या किया? यह तो वही पानी और मिट्टी है जिससे दर्र नहीं होता। अब सुनो तुमको यह पाठ इसलिए दिया है ताकि ईश्वर के आदेशों को समझो और उनपर विचार करो।