अहकाम

तक़लीद

सवाल: क्या तक़लीद के बाद पूरी तौज़ीहुल मसाइल का पढ़ना ज़रुरी है?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: उन मसाइल का जानना ज़रूरी है जिस से इंसान हमेशा दोचार है।

आयतुल्लाह ख़ामेनई: ज़रूरी नही है बल्कि सिर्फ़ दर पेश आने वाले मसाइल का जानना ज़रूरी है।

सवाल: अगर किसी मसले में मुजतहिद का फ़तवा न हो तो क्या दूसरे की तक़लीद की जा सकती है?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: अगर किसी मसले में किसी मरजअ ने फ़तवा न दिया हो तो रूतबे के ऐतेबार से उस के बाद वाले मुजतहिद के फ़तवे पर अमल करना वाजिब है।

आयतुल्लाह ख़ामेनई: किसी दूसरे मुसावी मुजतहिद के फ़तवे पर अमल किया जा सकता है।

ग़ुस्ल

सवाल: क्या वह रुतूबत जो औरत की शर्मगाह से ख़ारिज होती है, पाक है?

जवाब: तमाम मराजे ए केराम: रुतूबत पाक है ग़ुस्ल की ज़रुरत नही है लेकिन अगर यक़ीन हो कि पेशाब या मनी है तो ऐसी सूरत में नजिस है।

सवाल: किन गुस्लों को अंजाम देने के बाद उससे नमाज़ पढ़ सकते हैं?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: तमाम वाजिब और मुसतहब ग़ुस्लों (ग़ुस्ले इस्तेहाज़ ए मुतवस्सिता के अलावा के साथ नमाज़ पढ़ सकते हैं लेकिन ऐहतेयाते मुसतहब यह है कि वुज़ू भी करे।)

आयतुल्लाह ख़ामेनई: सिर्फ़ ग़ुस्ले जनाबत के साथ नमाज़ पढ़ी जा सकती है दूसरे ग़ुस्लों के बाद वुज़ू भी ज़रुरी है।

सवाल: अगर इंसान मसला न जानने या बे तवज्जोही की बेना पर वाजिब ग़ुस्लों को अंजाम न दे तो उस की इबादात का क्या हुक्म है?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: ऐसी सूरत में नमाज़े बातिल हैं और अगर ग़ुस्ले जनाबत, हैज़, निफ़ास जान बूझ कर अंजाम नही दिया है तो उस का रोज़ा भी बातिल है लेकिन अगर मसला न जानने की वजह से ऐसा किया है तो रोज़ा सही है।

आयतुल्लाह ख़ामेंनई: अगर बे तवज्जोही की वजह से वाजिब ग़ुस्लों को अंजाम न दे तो नमाज़ और रोज़े की क़ज़ा के साथ साथ रोज़े का कफ़्फ़ारा भी वाजिब है लेकिन अगर मसला न जानने की वजह से ऐसा किया है तो सिर्फ़ नमाज़ों की क़ज़ा करेगा और अगर मसला जानने में कोताही न की हो तो फ़क़त रोज़ों की क़ज़ा करेगा।

सवाल: जिस शख़्स पर कई ग़ुस्ल हों क्या वह एक ही ग़ुस्ल में तमाम ग़ुस्लों का नीयत कर सकता है?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: हाँ एक ग़ुस्ल सब के लिये काफ़ी है लेकिन तमाम ग़ुस्लों की नीयत ज़रुरी है।

नमाज़

सवाल: अगर किसी इंसान के ज़िम्मे वाजिब नमाज़ और रोज़ा क़ज़ा हों तो क्या वह मुसतहब्बी नमाज़ और रोज़े अंजाम दे सकता है?

जवाब: तमाम मराजे ए केराम: मुसतहब्बी नमाज़ पढ़ सकता है लेकिन मुसतहब्बी रोज़े नही रख सकता।

सवाल: अगर कमरे का फ़र्श नजिस हो तो ऐसी सूरत में क्या उस पर नमाज़ सही है?

जवाब: तमाम मराजे ए केराम: अगर नजिस फ़र्श ख़ुश्क हो और उस की रुतूबत पढ़ने वाले के बदन या लिबास तक न पहुचे तो कोई हरज नही है लेकिन सजदे की जगह (सजदा गाह) पाक होनी चाहिये।

सवाल: अगर नमाज़ी नमाज़ की हालत में दूसरी रकअत में तशह्हुद भूल जाये तो क्या उस की नमाज़ बातिल है?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: नही बल्कि ऐसी सूरत में नमाज़ तमाम होने के बाद दो सजद ए सहव अंजाम देगा। सजद ए सहव का तरीक़ा यह है कि नमाज़ ख़त्म होने के फ़ौरन बाद सजदे में जाये और कहे: बिस्मिल्लाहि व बिल्लाह अल्ला हुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आलि मुहम्मद, और फिर दूसरे सजदे में भी यही कहे और फिर तशह्हुद व सलाम बजा लाये और सलाम में सिर्फ़ अस सलामों अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू कहना काफ़ी है।

आयतुल्लाह ख़ामेनई: ऐसी सूरत में नमाज़ तमाम होने के बाद तशह्हुद की कज़ा करेगा और सजद ए सहव अंजाम देगा।

सवाल: अगर नमाज के दौरान नमाज़ी को याद आ जाये कि ग़ैर शरई तरीक़े से ज़िबह शुदा जानवर के चमड़े का बेल्ट लगाये हुए है उस की घड़ी का पट्टा उस चमड़े से बना है तो उसे क्या करना चाहिये?

सवाल: आयतुल्लाह सीस्तानी: अगर नमाज़ के दौरान याद आ जाये तो उसे फ़ौरन उतार दे और उस की नमाज़ सही है।

आयतुल्लाह ख़ामेनई: नमाज़ बातिल है लिहाज़ा दोबारा पढ़नी पढ़ेगी।

नमाज़ और उस में पर्दा

सवाल: नमाज़ की हालत में एक औरत पर कितना पर्दा वाजिब है?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: तमाम बदन का छिपाना वाजिब है सिवाए चेहरे का इतना हिस्सा जो वुज़ू में धोया जाता है, कलाई से उंगलियों के सिरे तक और पैरों को उंगलियों से टख़ने तक अलबत्ता वाजिब मिक़दार के यक़ीन के लिये चेहरा, कलाई और टख़ने के अतराफ़ में थोड़ा बढ़ा कर छिपाये।

सवाल: अगर नमाज़ के दौरान ख़ातून मुतवज्जे हो जाये कि उस के बाल दिखाई दे रहे हैं तो उस की क्या ज़िम्मेदारी क्या है और अगर नमाज़ के बाद मालूम हो तो उस की नमाज़ का क्या हुक्म है?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: नमाज़ के दौरान जैसे मुतवज्जे हो फ़ौरन उसे छुपाये और अगर नमाज़ के बाद मालूम हो तो उस की नमाज़ सही है।

पर्दा व हेजाब

सवाल:क्या हेजाब ज़रूरियाते दीन यानी उन चीज़ों में से है जिन के वाजिब होने पर अक़ीदा न होने से इंसान दीन से ख़ारिज हो जाता है और वह लोग जो हेजाब से मुतअल्लिक़ ला परवाही करते हैं, उन का क्या हुक्म है?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: हेजाब ज़रूरियाते दीन में से है और लापरवाही करने वाले लोग गुनाहगार हैं।

सवाल: क्या ऐसी दुकानों पर काम करना जायज़ है जहाँ नंगी तस्वीरों पर मुश्तमिल रिसाले बिकते हों और क्या ऐसे रिसालों की तिजारत व तबाअत जायज़ है?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: यह तमाम काम जायज़ नही हैं क्यों कि फ़ेअले हराम की तरवीज और फ़ह्हाशी का प्रचार है।

सवाल: क्या औरतें शादी बियाह में मेकअप और आराइश के साथ जा सकती हैं जबकि ना महरम मर्द उन्हे देख रहे हैं?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: औरतों पर हेजाब वाजिब है और वह अपने महासिन को किसी ना महरम के सामने ज़ाहिर नही कर सकती हैं।

सवाल: वह ग़ैर मुस्लिम औरतें जो मोहतरम भी नही हैं और पर्दे की क़ायल भी नही है, क्या उन्हे लज़्ज़त की निगाह से देखा जा सकता है?

जवाब: लज़्ज़त की निगाह से देखना जायज़ नही है।

ग़ीबत

सवाल: ग़ीबत किसे कहते हैं और इस का क्या हुक्म है?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: गीबत यानी किसी शख़्स की बुरी आदत या काम को उस की ग़ैर मौजूदगी में दूसरे के सामने बयान करना। ग़ीबत करना और सुनना दोनो हराम और गुनाहाने कबीरा में से है।

सवाल: अगर कोई शख़्स बे नमाज़ी है लेकिन खुले आम गुनाह नही करता तो क्या उस की ग़ीबत करना जायज़ है?

जवाब: नही जायज़ नही है।

सिगरेट

सवाल: अवामी जगहों (Public Place) पर सिगरेट पीने का क्या हुक्म है?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: अगर दूसरों को कोई ख़ास नुक़सान पहुच रहा हो या आईन्दा नुक़सान पहुचने का अंदेशा हो तो जायज़ नही है। इसी तरह अपने बारे में भी अगर मालूम है कि नुक़सान देह है तो पीना जायज़ नही है।

शादी बियाह

सवाल: लहवो लअब वाली शादी बियाह की महफ़िलों में शिरकत न करना ख़ानदान और रिश्तेदारोंमें आपसी रंजिश का सबब बनता है ऐसी सूरत में क्या ज़िम्मेदारी है?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: अगर हराम में मुब्तला हो रहा है तो जायज़ नही है।

आयतुल्लाह ख़ामेनई: हराम महफिलों में शिरकत करना किसी भी सूरत में जायज़ नही है और अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुन्कर हर शख़्स पर वाजिब है।

सवाल: शादी बियाह की ऐसी महफ़िलों में शिरकत करना कैसा है जिन में नाच गाना और म्यूज़िक (Music) हो?

जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: अगर गाना बजाना और म्यूज़िक लह व लअब और अय्याशी जैसी महफ़िलों की तरह हो तो शिरकत करना जायज़ नही है।

आयतुल्लाह ख़ामेनई: इस क़िस्म के प्रोग्राम में शिरकत करने की सूरत में अगर गुनहगारों की ताइद हो रही हो तो जायज़ नही है।