इस्लामी संस्कृति व इतिहास-११
इस्लामी संस्कृति व इतिहास-११
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पिछले में हमने मैकेनिक के विषय में मुसलमान बुद्धिजीवियों के आविष्कारों और उपलब्धियों की ओर संकेत किया था और हमने आपको बताया था कि मुसलमान बुद्धिजीवियों विशेषकर जज़री ने संसार और इस्लामी जगत की सेवा में बहुत सी महत्त्वपूर्ण रचनाएं प्रस्तुत की हैं। इन मुसलमान बुद्धिजीवियों ने पानी से चलने वाली घड़ी और गहरे कुओं से पानी निकालने वाले यंत्र और इसी प्रकार बहुत से उपकरणों का आविष्कार किया। इस कार्यक्रम में हम मुसलमान बुद्धिजीवियों के आविष्कारों के बारे में चर्चा करेंगे। कृपया हमारे साथ रहिए। तीसरी हिजरी शताब्दी में इस्लामी जगत में मिकेनिक्स या यंत्र विज्ञान या यंत्र विद्या को ख्याति प्राप्त हुई और यह ख्याति सातवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में अपनी चरम सीमा पर पहुंच गयी। मुसलमान इंजीनियरों ने मिकेनिकल या यांत्रिक उपकरणों का निर्माण करके बहुत बड़ी बड़ी सफलताएं अर्जित की हैं। वह अपने पास मौजूद पदार्थों के अपनी आवश्यकता के अनुसार टुकड़े काटते थे और उसके बाद उन्हें अपनी इच्छानुसार रूप देते और एक दूसरे से जोड़ते थे। प्राचीन समय के ये इन्जीनियर उपकरणों के निर्माण के लिए, धातुओं, साधारण धातुओं, सोना, चांदी, लकड़ी, शिशा, चमड़ा और इसी प्रकार सन, रूई और रेशम की रस्सियों और दूसरे अन्य पदार्थों का प्रयोग करते थे। मुसलमान वैज्ञानिक जिन चीज़ों का प्रयोग करते थे उनमें से सबसे प्रचलित लकड़ी और तांबे की चादर थी। वह पाइप और तैरने वाले तथा गतिशील उपकरणों के निर्माण के लिए तांबे की शीट का प्रयोग करते थे। मुसलमान बुद्धिजीवी कभी ताबें और कभी लोहे से तारों का निर्माण करते थे। वह ज़ंजीर का निर्माण करने के लिए तार का प्रयोग करते थे और इसी प्रकार वह तांबे या लकड़ी से बड़ी चरख़ी, और घिर्री आदि बनाते थे। मुसलमानों विशेषकर इस्लामी सभ्यता के केन्द्रीय क्षेत्र की समस्याओं में से एक की समस्याओं में से एक सूखे और पानी की कमी थी। कुछ देशों में सौम्य ढलान की योजना बनाकर लंबी दूरी तय करके गहराई से धरती की सतह पर पानी पहुंचाया जाता था किन्तु कुछ अन्य क्षेत्रों में निवासियों को पानी को ऊपर लाने में बड़ी कठिनाईयों का सामना था। मैकेनिकस के क्षेत्र में जज़री और बनू मूसा जैसे मुसलमान इंजीनियरों की उपलब्धियों में से एक गहराई से पानी को ऊपर लाने के विभिन्न यंत्रों का निर्माण और उसकी डिज़ाइनिंग करना था जिसे नाऊरा अर्थात रहट कहा जाता था। गहराई से ऊपर की ओर पानी खींचने वाले यंत्र नाऊरा के नमूने कुछ इस्लामी देशों में इस समय भी पाये जाते हैं। बनू मूसा का परिवार पहला मुसलमान मिकैनिक परिवार है जिनके माध्यम से इस्लामी जगत में मिकेनिक्स को ख्याति प्राप्त हुई। बनू मूसा की पुस्तक "अलहेयल" मिकेनिक्स के संबंध में वह पहली पुस्तक है जो इस्लामी जगत में बाक़ी रह गयी है। इस पुस्तक में मिकेनिक्स के सौ यंत्रों का विवरण दिया गया है कि जिनमें से अधिकांश द्रव यांत्रिकी की विशेषता से लाभ उठाकर आटोमैटिक तौर पर चलते हैं। बनू मूसा ने जिन चीज़ों का निर्माण किया उनमें से एक फ़व्वारा है जिससे, पानी निकलते समय अनेक रूप धारण कर लेता है। इसी प्रकार उन्होंने एक ऐसे दीप का निर्माण किया जिसकी लौ स्वयं ही कम और ज़्यादा होती है। समुद्रों और नदियों की सतह को खोदने के लिए एक प्रकार के यांत्रिकी फावड़े का निर्माण और कुएं से प्रदूषित हवा को बाहर निकालने के लिए एक प्रकार के एकज़ास्ट फ़ैन का निर्माण भी बनू मूसा भाइयों के आविष्कारों में से है। उन्होंने विभिन्न प्रकार के लीवर क्रेंक शोफ़्ट, विभिन्न प्रकार की शंकुआकार टोटियों और घिर्रियों का निर्माण भी किया है। बनू मूसा ने पहली बार और यूरोप वालों से पांच सौ वर्ष पूर्व केंक शाफ़्ट का अपने कार्य में प्रयोग किया। बनू मूसा के आविष्कारों में से एक जल घड़ी का निर्माण है जो पानी के दबाव से चलती है। यह घड़ी बाद में उन घडियों का मापदंड बन गयी जो यूरोपीय देशों के बड़े बड़े मैदानों और चर्चों में प्रयोग की जाती थीं। एक निर्धारित समय में उक्त घड़ी से संगीत के सुर निकलते थे। अबुल फ़त्ह अब्दुर्रहमान ख़ाज़नी उन प्रसिद्ध यंत्र वैज्ञानिकों, तथा भौतिक और खगोल शास्त्रियों में से थे जिनका पालन पोषण इस्लामी सभ्यता के क्षेत्र में हुआ। ख़ाज़नी ने इब्ने हैसम और बैरूनी का अनुसरण करते हुए यंत्र विज्ञान के क्षेत्र में बहुत सी उपलब्धियां अर्जित की। ख़ाज़नी तुला विज्ञान के बहुत ही दक्ष और निपुण उस्ताद थे। मीज़ानुल हिकमह नामक उनकी प्रसिद्ध पुस्तक, यंत्र विज्ञान की प्रमुख पुस्तकों मे से एक है। इस पुस्तक में ख़ाज़नी ने राज़ी, बैरूनी और ख़य्याम जैसे बुद्धिजीवियों के दृष्टिकोण को अपने दृष्टिकोण पर प्राथमिकता दी है। टाइमर, सामान ऊपर उठाने का यंत्र अर्थात क्रेम तुला, घनत्व मीटर जैसे विभिन्न प्रकार के उपकरण, उनकी इस पुस्तक में लिख हुये हैं। ख़ाज़नी ने वस्तुओं के भार पर हवा के दबाव के प्रभाव की ओर बहुत ही सूक्ष्मता से संकेत किया है। वह इस संबंध में टोरिचली, पास्कल, बॉयल और दूसरों से कई शताब्दी आगे हैं। इब्ने हैसम के नाम से प्रसिद्ध अबू अली हसन इब्ने हैसम बसरी, चौथी सहस्त्राब्दी के विख्यात मुसलमान गणितज्ञ, भौतिक शास्त्री और प्रकाश विशेषज्ञ हैं। उन्होंने भौतिक शास्त्र और यंत्र विज्ञान के क्षेत्र में बहुत ही मूल्यवान और महत्त्वपूर्ण अविष्कार किये हैं। वह मध्ययुगीन लैटिन भाषा में लिखी गयी पुस्तकों में अलहाज़िन के नाम से प्रसिद्ध हैं। इब्ने हैसम को प्रयोगिकी विज्ञान के क्षेत्र का अग्रणी और ध्वजवाहक वैज्ञानिक कहा जा सकता है। क्योंकि उन्होंने अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोणों विशेषकर प्रकाश के संबंध में अपने दृष्टिकोणों को प्रयोगिकी विज्ञान की शैलियों से प्राप्त किया है। इब्ने हैसम ने प्रकाश संबंधी विज्ञान के आधार को परिवर्तित करके उसे सुव्यवस्थित और स्पष्ट ढंग से प्रस्तुत किया। वह ओक़लीदोस की भांति सैद्धांतिक और प्रयोगिक भौतिक शास्त्री थे। उन्होंने प्रकाश की प्रत्यक्ष गति, छाये की विशेषता, लेंस के प्रयोग और ब्लैक रुम की विशेषता को जानने के लिए विभिन्न परीकण अंजाम दिए। इसी प्रकार उन्होंने प्रकाश के प्रतिबिंबन के नियमों के बारे में आकर्षक शोध किए। इब्ने हैसम ने शीशे की वृत्ताकार और बेलनाकार परिधि में प्रकाश के अपवर्तन के बारे में शोध किया है। उन्होंने बहुत सी पुस्तकें भी लिखी हैं। मुसलमान और यूरोपीय शोधकर्ताओं ने एक सहस्त्राब्दी पूर्व इब्ने हैसम की कुछ रचनाओं और आलेखों का अनुवाद किया और प्रकाशित किया। प्रकाश और भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में इब्ने हैसम ने बहुत सी पुस्तक लिखी हैं। मध्ययुगीन शताब्दी में नूरूल मनाज़िर नामक पुस्तक के लैटिन भाषा में अनुवाद ने पश्चिम में प्रकाश और भौतिक विज्ञान पर बहुत अधिक प्रभाव डाला है किन्तु इब्ने हैसम से पूर्व इस्लामी जगत में प्रकाश के ज्ञान का पतन हो रहा था, यहां तक कि ख़्वाजा नसीरूद्दीन तूसी जैसे महान विद्वान उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों से अवगत नहीं थे। सातवीं सहास्त्राब्दी में एक बार फिर प्रकाश के ज्ञान पर ध्यान दिया जाने लगा और क़ुतुबुद्दीन शीराज़ी ने इस ज्ञान को "क़ौसो क़ज़ह" के नाम से ईरान में प्रचलित किया। वर्तमान समय में प्रकाश के विषय में पश्चिम की प्रगति, मुसलमान वैज्ञानिकों विशेषकर इब्ने हैसम के प्रयासों से बहुत सीमा तक प्रभावित रही है। इसीलिए पश्चिम में इब्ने हैसम को प्रकाश के पितामह की उपाधि दी गयी है। कुछ लेखकों का यह मानना है कि पश्चिम विशेषकर आक्सफ़ोर्ड मत में प्रकाश के संबंध में होने वाली चर्चाओं में जो आंदोलन असित्त्व में आया है वह इब्ने हैसम के प्रकाश संबंधी दृष्टिकोणों से पश्चिम के अवगत होने का परिणाम है। इस बिन्दु में भी कोई संदेह नहीं है कि ब्रिटेन के प्रसिद्ध दर्शन शास्त्री रोजर बेकन पूर्ण रूप से इब्ने हैसम से प्रभावित थे। इस्लामी सभ्यता में मैकेनिक्स या यंत्र विज्ञान और भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में हर चीज़ से पहले इस विज्ञान की उपलब्धियों और तकनीक पर मुसलमानों की दृष्टि थी जो इसको हर ज्ञान से अलग करती है। वास्तव में यदि हम यह चाहते हैं कि मुसलमान बुद्धिजीवियों की वैज्ञानिक उपलब्धियों से अधिक से अधिक अवगत हों तो हमें यंत्र और भौतिक विज्ञान के विषयों में उनके प्रयासों का भी अध्ययन करना चाहिए। http://hindi.irib.ir/