लेखक: आयतुल्लाह हुसैन अनसारियान
किताब का नाम: शरहे दुआ ए कुमैल
वो प्रार्थना को जीवन के विकास, दिल के निस्पंदन, अन्दर से माद्दे की गर्दो ग़ुबार हटाना, जीवन को अपस्ष्टता के मसाइल और कठिनाईयो के हल का कारक जानते थे और विश्वास रखते थे कि कोई भी आवेदक परमेश्वर के दरबार से गंतव्य स्थान (मक़सद) तक पहुंचे बिना और आवश्यकता के पूर्ण हुए बिना वापस नही लौटता। इसी लिए प्रार्थना के उत्तर हेतु, आस्तिक (मोमिन) होना और इस संबंध मे कोई संदेह नही है, और सबकी सब प्रार्थनाओ मे, प्रार्थना के क़बूल होने के लिए परमेश्वर से ख़ाज़ेआना तरीक़े से विनती करते थे और आत्मविश्वास रखते थे कि ज़रूरतमंद की प्रार्थना परमेश्वर के दरबार मे क़बूल होगी।
पवित्र क़रान इस हक़ीक़त को हज़रत इब्राहीम की पवित्र ज़बान और उज्जवल दिल से हिकायत करता है:
اَلحَمدُ لِلّٰہِ الَذِی وَھَبَ لِی عَلَی الکِبَرِ اِسمَاعِیلَ وَ اِسحَاقَ اِنَّ رَبِّی لَسَمِیعُ الدُّعَا(सूरए इब्राहीम 14, आयत 39)
भगवान का शुक्र है जिसने मुझे बुढ़ापे मे इस्माइल और इसहाक़ जैसे दो बच्चे दिये है, वास्तव मे मेरा परमेश्वर प्रार्थनाओ का सुनने वाला है।
प्रार्थना की शक्ति के माध्यम से ईश्वरीयदूत हज़रत ज़कर्याह (अ.स.) ने वृद्धावस्था मे दयालु प्रभु से बच्चे का अनुरोध किया और प्रिय परमेश्वर ने उनके अनुरोध को क़बूल करते हुए उनको और उनकी पत्नि को (बांझपन की आयु मे) याहिया प्रदान किया।
[1]
प्रार्थना के माध्यम से हज़रत मसीह (अ.स.) ने अपने अनुयायियो की मांग का पालन करते हुए, परमेश्वर से आसमानी भोजन के अवरोहण का अनुरोध किया और प्रिय परमेश्वर ने उनके अनुरोध को क़बूल करते हुए उनके और उनके अनुयायियो हेतु आकाश से स्वादिष्ट एवम उत्तम भोजन का अवरोहण किया।
[2]
परमेश्वर ने सेवको (बन्दो) को सभी स्थितियो मे प्रार्थना करने का आदेश दिया है और उनसे खुशीओ एवम नाखुशीओ के अवसर पर चाहता है कि ज़िल्लत के साथ मेरी पूजा करें और मेरे सामने प्रार्थना हेतु हाथो को उठाऐं, और विनम्र दिल एवम टूटे हुए दिल के आँसू के साथ, अपनी आवश्यकताओ की उससे (मुझ से) विनती करें और उसके निश्चित और निर्णायक वादो के मामलो मे प्रार्थना के स्वीकार होने की उम्मीद रखें और निर्णायक घोषणा की है कि जो व्यक्ति प्रार्थना से अहंकार (अकड़ता) करता है, अपमानित, मरीज़, नीच और नरक के योग्य है। इन सभी प्रकट और गुप्त मामलो को क़ुरान के एक छंद मे बयान किया है:
وَ قَالَ رَبُّکُم أُدعُونِی أَستَجِب لَکُم اِنَّ الَذِینَ یَستَکبِرُونَ عَن عِبَادَتِی سَیَدخُلُونَ جَھَنَّم دَاخِرِینَ (सूरए ग़ाफ़िर 40, आयत 60)
और तुम्हारे परमेश्वर ने कहा: कि तुम मुझ से प्रार्थना करो मै स्वीकार करूँगा और वास्तव मे जो लोग मेरी पूजा (इबादत) से अकड़ते है निकट भविष्य मे अपमान के साथ नरक मे प्रवेश करेंगे।
1 وَ اِنِّی خِفتُ المَوَالِیَ مِن وَرَائِی وَ کَانَت اِمرأَتِی عَاقِراً فَھَب لِی مِن لَدُنکَ وَلِیّا۔ یَرِثّنِی وَ یَرِثُ مِن آلِ یَعقُوبَ وَ اجعَلہُ رَبَّ رَضَیّا۔ یَا زَکَرِیّا اَنَّا نُبَشِّرُکَ بِغُلَام اِسمُہُ یَحیَی لَم نَجعَلہُ لَہُ مِن قَبلُ سَمِیّا۔ قَالَ رَبِّ أَنِّی یَکُونُ لِی غُلَامُ وَ کَانَت اِمرَأتِی عَاقِراً وَ قَد بَلَغتُ مَنَ الکِبَرِ عَتِیّا۔ قَالَ کَذَلِکَ قَالَ رَبُّکَ ھُوَ عَلَیَّ ھَیَّنٔ وَ قَد خَلَقتُکَ مِن قَبلُ وَ لَم تَکُن شَئا (सूरए मरयम 19, आयत 5 से 9)
और मुझे अपने बाद अपने परिवार वालो से ख़तरा है और मेरी पत्नि (जीवन के आरम्भ से) बांझ है तो मुझे एक वली और वारिस प्रदान कर। जो मेरा और आले याक़ूब का वारिस हो और परमेश्वर (हर प्रकार से) उसे (अपना) पसंदीदा बना दे। ज़कर्याह हम तुम्हे एक बेटे की बशारत देते है जिसका नाम याहया है (और) हमने इस से पूर्व उनका हमनाम कोई नही बनाया है। ज़कर्याह ने कहा प्रभु मेरे पुत्र कैसे होगा जबकि मेरी पत्नि बांझ है और मै भी वृद्धावस्था की अंतिम सीमा तक पहुँच गया हूँ। (वही के फ़रिश्ते ने ज़कर्याह से कहा) उसी प्रकार है (जैसा तुमने कहा, परन्तु) तुम्हारे परमेश्वर का कहना है कि यह (कार्य) मेरे लिए अधिक सरल है और मैने इससे पूर्व खुद तुम्हे भी जन्मदिया है जबकि तुम कुछ भी नही थे।
[2] وَ کَذَلِکَ جَعَلنَا لِکُلِّ نَبِیّ عَدُوَّاً شَیَاطِینَ الاِنسِ وَ الجِنِّ یُوحِی بَعضُھُم اِلَی بَعض زُخرُفَ القَولِ غُرُوراً وَ لَو شَاءَ رَبُّکَ مَا فَعَلُوہُ فَذَرھُم مَا یَفتَرُونَ۔ وَ لِتَسغَی اِلَیہِ أَفئِدَۃُ الَذِینَ لَا یُؤمِنُونَ بِالآَخِرَۃِ وَ لِیَرضَوہُ وَ لِیَقتَرِفُوا مَا ھُم مُقتَرِفُونَ۔ أَفَغَیرَ اللہِ أَبتَغِی حَکَماً وَ ھُوَ الَذِی أَنزَلَ اِلَیکُمُ الکِتَابَ مُفَصَّلا وَ الَذِینَ آتَینَاھُم الکِتَابَ یَعلَمُونَ أَنَّہُ مُنَزَّلٔ مِن رَبِّکَ بِالحَقِّ فَلَا تَکُونَنَّ مِنَ المُمتَرِینَ۔ وَ تَمَّت کَلِمَۃُ رَبِّکَ صِدقاً وَ عَدلا لَا مُبَدِّلَ لِکَلِمَاتِہِ وَ ھُوَ السَّمِیعُ العَلِیم (सुरए अनाम 6, आयत 112 से 115)
और इसी प्रकार हमने हर ईश्वरदूत (नबी) के हेतु दानव (जिन) और मानव शयातीन उनका शत्रु बनाया है यह लोगो को धोखा देने के लिए व्यर्थ की बातो के संकेत करते है, और अगर तुम्हारा परमेश्वर चाह लेता तो ऐसा नही कर सकते थे इसलिए अब आप उन्हे इफ़्तेरा के हाल पर छोड़ दें (और हम सेवको के परीक्षण के रूप मे दानव एवम मानव शयातीन की ओर से व्यर्थ की बातो मे एक दूसरे के आड़े नही आये है)। जिन लोगो का परलोक पर विश्वास नही है उनके दिल व्यर्थ की बातो की ओर आकर्षित होते और उसको पसंद करते है और (क्रूरता के अंत तक पहुँचने के लिए जो अटल रवय्ये और उनका दुशमन है) और हर वह बुरा कार्य जिसको वो करना चाहते है आखिर कार उसे करें। क्या मै परमेश्वर के आलावा कोई आदेश तलाश करूँ ? जबकि वही वह है जिसने इस आसमानी किताब (जिसमे सारे उपदेश और मआरिफ़ ) को विस्तृत रूप से बयान किये है तुम्हारी ओर अरोहण की है। जिन लोगो को हमने किताब दी है (विशेष रूप से उनके विद्वान) जानते है कि यह किताब (क़ुरान) उनके परमेश्वर की ओर से सत्य और सही नाज़िल हुई है, बस (इनकार करने वालो का चमत्कार देखने और अहले किताब का विरोध करना हक़ीक़त को तलाश करने के कारण नही है) संदेह करने वालो मे न हों। और तुम्हारे परमेश्वर का कथन सत् और अदालत से पूर्ण है कोई बदलने वाला नही है और वह सुनने वाला भी है ज्ञान वाला भी है।