पवित्र ईदे फ़ित्र
पवित्र ईदे फ़ित्र
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१८ ज़िलहिज्जा सन दस हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने ईश्वर के आदेश पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। आज ही के दिन पैग़म्बरे इस्लाम ईदे फ़ित्र मुसलमानों की एकता व सहृदयता का प्रतीक ईदे फ़ित्र की सुगंध पवित्र रमज़ान के दरवाज़ों से गुज़र कर लोगों के घरों को महका रही है। यह ईद ईश्वर पर असीम आस्था रखने वालों के मन व आत्मा में ईमान के फूलों के खिलने का समाचार दे रही है। वे लोग जिन्होने एक महीने तक रोज़े रख कर शरीर और आत्मा दोनों पर जमी धूल को झाड़ कर ईश्वरीय प्रकाश से अपने अस्तित्व को चमका दिया है, इस दिन उत्सव मना रहे हैं। ईदे फ़ित्र मनुष्य के अपनी ईश्वरीय प्रवृत्ति की ओर लौटने का दिन है, और ईश्वर के प्रेमी इसी प्रवृत्ति की ओर लौटने पर अपने पालनहार का आभार व्यक्त करने के लिये विशेष नमाज़ का आयोजन करते तथा उत्सव मनाते हैं। जिन लोगों ने पवित्र रमज़ान के पूरे महीने अपनी आंतरिक इच्छाओं को नियंत्रित करके अपने आप को सुधारने तथा अपने व्यक्तित्व में संतुलन उत्पन्न करने का अभ्यास कर लिया है और इस प्रकार ईमान के ऊंचे स्तर तक पहुंच गये हैं, वे इस ईद में आत्मिक व आध्यात्मिक स्वाद का आभास करते हैं। इस प्रकार आत्मा और मन को प्राप्त होने वाले महान स्थान उत्सव मनाने का वास्तविक कारण हैं। शव्वाल महीने का चांद निकलते ही ईदे फ़ित्र आ पहुंचती है।लोग एक दूसरे को शुभकामनाये और मुबारकबाद देते हैं और अनेक लोग इस रात की विशेष नमाज़ और दुआयें पढ़ते हैं, फिर अगली सुबह की तय्यारियां आरंभ हो जाती हैं। ईद की प्रातः लोग नहा धोकर और पवित्र वस्त्र पहिन कर ईद गाह की ओर चल पड़ते हैं उनके होठों पर ईश्वर का गुणगान होता है तथा वे ईश्वर की महानता व अनन्यता की गवाही देते हुये नमाज़ के लिये आगे बढ़ रहे होते हैं। पैगम्बरे इस्लाम(स) के पौत्र इमाम अली रज़ा(अ) अल्लाहो अकबर अर्थात ईश्वर सबसे महान है, बार बार दोहराने का कारण बताते हुये कहते हैं, यह शब्द ईश्वर की महानता को दर्शाते हैं और एक प्रकार से उसके प्रति सम्मान प्रकट करने तथा उसके मार्गदर्शन एवं अनुकंपाओं के लिये आभार व्यक्त करने के अर्थ में हैं। ईदे फ़ित्र सभी मुसलमानों की ईद है और इस्लाम जगत में हर स्थान पर मनाई जाती है। यदि इस दिन आप किसी मुस्लिम देश या मुस्लिम समाज में हों तो आपको उस प्रसन्नता व आनन्द का आभास होगा जो मुसलमानों को इस दिन प्राप्त होता है और जिसे वे एक दूसरे में स्थानांतरित करते हैं। वास्तव में यदि देखा जाये तो यह प्रसन्नता रोज़े का महीना समाप्त होने के कारण नहीं होती बल्कि इसका कारण पापों से पवित्र हो कर एक नया व पवित्र जीवन आरम्भ करना होता है। रमज़ान एक भट्ठी के समान है जो रोज़ा रखने वालों के अवगुणों व अशिष्ट व्यवहार को जला कर मनुष्य को जीवन के प्रति एक नया दृष्टि कोण तथा एक नया व्यक्तित्व प्रदान करती है। इस वर्ष ईदे फ़ित्र सदैव की भांति नहीं मनाई जा सकेगी क्योंकि कई इस्लामी देश इस वर्ष संकटों में घिरे हुये हैं। लोग इस ईद के धार्मिक आयाम तो मनाएंगे परन्तु ईद का उत्सव नहीं मनाया जासकेगा। सीरिया, बहरैन, मिस्र, ट्युनिस तथा अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध जैसी स्थिति है और जनता बड़ी कठिनाई में जीवन व्यतीत कर रही है जब कि उधर फ़िलिस्तीन में जनता ज़ायोनी शासन के अत्याचारों में ग्रस्त है और पश्चिमी शक्तियां पूरी ढिटाई से ज़ायोनी शासन का साथ दे रही हैं। उधर अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान तथा इराक़ में अमरीकी हितों के लिये काम करने वाली सऊदी कठपुतलियां अर्थात सलफ़ी गुट के लोग आतंक फैलाये हुये हैं। इस प्रकार मुसलमानों को शीया व सुन्नी के नाम पर आपस में लड़वाकर इस्लाम के शत्रु उन्हें कमज़ोर कर रहे हैं और स्वयं इसका लाभ उठा रहे हैं। विश्व के सभी इस्लामी देशों में ईद सदैव बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती थी। उदीहरण स्वरूप आप सीरिया को ले लें। वहां ईद के अवसर पर बड़े स्तर पर उत्सव मनाया जाता था, नगरों की सजावट होती थी, लोग नये वस्त्र पहनते थे, घरों को साफ़ सुथरा करके सजाया जाता तथा मेहमानों के लिये विभिन्न प्रकार के खाने और मिठाइयां तय्यार की जाती थीं परन्तु इस समय भ्रष्ट तकफ़ीरी गुटों ने पश्चिमी देशों तथा कुछ अरब देशों की सहायता से लोगों का नर संहार करके और घरों को तबाह करके बड़ी संख्या में महिलाओं तथा बच्चों को कैम्पों में रहने पर विवश कर दिया है। प्रत्येक स्थिति में, दुखी मन के साथ भी लोग ईदे फ़ित्र की नमाज़ पढ़ने तो जायेंगे ही क्योंकि यह नमाज़ सब को एकत्रित करके उन्हें यह ढारस बंधाएगी कि वे अकेले नहीं हैं और सबसे बढ़कर ईश्वर उनकी स्थिति को अवश्य ही उत्तम रूप में परिवर्तित करेगा तथा अत्याचारियों से प्रतिशोध अवश्य लेगा। यही स्थिति इराक़, बहरैन, मिस्र आदि की भी है। हमारी दुआ है कि वर्तमान ईद विश्व में शान्ति का संदेश लेकर आई हो, आपस में लड़ने वाले मुसलमानों में सद्बुद्धि आये कि वे अपने वास्तविक शत्रुओं को पहचानें और भ्रष्ट शक्तियों एवं गुटों की कठपुतली बनकर अपने देश व धर्म को हानि न पहुचायें। क्योंकि ईदे फ़ित्र ऐसा आध्यात्मिक अवसर है जो एक महीने तक ईश्वर का आदेशापालन करने के बाद हाथ आता है। यह ईद ईश्वरीय आतिथ्य समाप्त होने तथा गुनाह व पाप से दूर रहने का मीठा फल चखने का अवसर बन कर आती है। इस दिन ईश्वरीय अनुकंपाओं के द्वार उपासकों एवं पवित्र लोगों के लिये खुले होते हैं, ईश्वरीय कृपा, वर्षा की भांति उनके तन मन पर बरस रही होती है। मन की आखों से देखें तो हर वस्तु ईश्वरीय रंग में डूबी तथा एक अलौकिक सुगंध में बसी होती है। यह दिन अपने पालन हार से सामिप्य का दिन होता है। पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद(स) कहते हैं कि जब ईद की पूर्व संध्या आती है तो ईश्वर रोज़ा रखने वालों को असीम प्रतिदान देता है। ईद के दिन हर व्यक्ति अपने प्रयास को अनुसार प्रतिदान प्राप्त करता है, अर्थात जिसने पवित्र रमज़ान में ईश्वर का आज्ञा पालन अधिक किया है, भूख, प्यास तथा अपनी आंतरिक इच्छाओं को अच्छी तरह नियंत्रित किया है, उसका भाग ईद की ईश्वरीय कृपाओं एवं अनुकंपाओं में अधिक होगा। हज़रत अली(अ) मुसलमानों का ध्यान ईद की महानता की ओर आकर्षित करते हुये कहते हैः आज के दिन को ईश्वर ने तुम्हारे लिये ईद बनाया है अतः निरन्तर ईश्वर की याद में रहो ताकि वह भी तुम को याद रखे। उसे पुकारो कि तुम्हारा उत्तर दे, इस शुभ दिन अपना फ़ितरा दो जो वास्तव में तुम्हारे पैग़म्बर की परम्परा है तथा पालनहार की ओर से तुम पर अनिवार्य किया गया है। फ़ितरा एक प्रकार का इस्लामी कर है जिसे रमज़ान के रोज़ों के बाद देना अनिवार्य होता है और इसका उद्देश्य इस्लामी समाज से दरिद्रता को उखाड़ फेंकना होता है। आर्थिक विकास और सामाजिक समस्याओं के समाधान के अतिरिक्त फ़ितरे के अन्य लाभ भी हैं जैसे सहकारिता व सहयोग की भावना को उजागर करना, समाज की सांसकृतिक तथा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति, ऐसे ऋणी लोगों के ऋण चुकाना जो वास्तव में कठिनाई में घिरे हुये हैं,स्कूल, सड़कें, तथा अस्पताल बनवाना और समाज की अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना। फ़ितरे के सामाजिक व आर्थिक आयामों के अतिरिक्त इसके आध्यात्मिक आयाम भी हैं। इस्लामी शिक्षओं में आया है कि यदि फ़ितरा उपासना तथा ईश्वरीय सामिप्य की दृष्टि से दिया जाता है तो इस प्रकार भौतिकता से आध्यात्मिकता के लिये लाभ उठाया जाता है और एक ईमान वाला व्यक्ति मार्गदर्शन व परिपूर्णता के मार्ग पर रहने के लिये स्वयं को भौतिकता की ज़ंजीरों से मुक्त करा लेता है तथा हल्का होकर ईश्वर की ओर बढ़ने लगता है। http://hindi.irib.ir/