पवित्र रमज़ान-28

पवित्र रमज़ान के महीने के अंतिम दिन हैं और इन दिनों में हम भली भांति यह समझ सकते हैं कि रोज़ा, मनुष्य की आतंरिक इच्छाओं के सामने एक मज़बूत ढाल की भांति हैं। मनुष्य रोज़ा रख कर अपने मन को, अनुचित इच्छाओं से रोकता है और अपने मन मस्तिष्क को हर प्रकार की बुराई से पवित्र करता है और हमें आशा है हम इस प्रक्रिया में अपने कार्यक्रम द्वारा सहायता प्रदान करने में सफल रहे होंगे।

इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम की प्रसिद्ध दुआ, मकारेमुलअखलाक़  में वे अपनी दुआ में कहते हैः हे ईश्वर मुझे एसा ज्ञान प्रदान कर जो मेरे कर्म में सहायक हो।

जैसा कि आप को ज्ञात है कि इस्लाम, ज्ञान विज्ञान तथा चिंतन व विचार का धर्म है। इस्लाम लोगों का कल्याण के मार्ग की ओर मार्गदर्शन करता है। पैगम्बरे इस्लाम अज्ञानता के अंधकार में जीवन व्यतीत कर रहे लोगों के मध्य ईश्वरीय संदेश के साथ भेजे गये थे। यह वह लोग थे जिन्हें न पढ़ना आता था और न लिखना और मूर्खतापूर्ण गौरव के अतिरिक्त उन्हें कुछ नहीं आता था। इस प्रकार के पिछड़े व भ्रष्ट समाज में ईश्वर की ओर से पैगम्बरे इस्लाम के लिए जो सब से पहला संदेश आया वह कलम और पढ़ने के बारे में था। पैगम्बरे इस्लाम ने बच्चों को उसी आयु से शिक्षा की ओर आकृष्ट करने के लिए उनके पिताओं से कहा कि तुम्हारे बच्चों पर तुम पर एक अधिकार यह भी है कि तुम उन्हें लिखना सिखाओ।

इतिहासिक पुस्तकों के वर्णित तथ्यों के अनुसार जब बद्र नामक युद्ध में मुसलमानों को अपने शत्रुओं के मुकाबले में विजय प्राप्त हुई और कुछ इस्लाम विरोधियों को बंदी बनाकर मदीना नगर लाया गया तो वहां मुसलमानों ने अरबों की प्रथा के अनुसार बंदियों को रिहा करने के बदले धन की मांग की तो पैगम्बरे इस्लाम ने कहा कि बंदियों के साथ अच्छा व्यवहार करो और उनके साथ भलाई करो और निर्धनों से धन न चाहो। इन बंदियों में से जो भी पढ़ा लिखा हो और हमारे दस बच्चों को पढ़ना लिखना सिखा देगा उसे स्वतंत्र कर दिया जाएगा। क्या इतिहास में एसा कोई अन्य उदाहरण मिलता है कि जब विजयी सेना, पराजित होने वाली सेना से पढ़ना लिखना सीख कर हर्जाना वसूल करे और पढ़ाने वाले बंदियों को स्वतंत्र कर दे? इस्लाम ने १४ सौ वर्ष पूर्व इस प्रकार से ज्ञान के महत्व को उजागर किया।

पैगम्बरे इसलाम के अभियान की सफलता में एक अन्य चीज़ जो प्रभावी थी वह यह थी कि पैगम्बरे इस्लाम जो भी कहते और लोगों को जो कुछ करने का आदेश देते उसे पहले स्वंय करते और इसी लिए उनकी बातों का लोगों पर अधिक प्रभाव पड़ता था। ईश्वरीय मार्गदर्शक और पैगम्बरे इस्लाम के परिजन भी पैगम्बरे इस्लाम की ही भांति थे वे सब से पहले स्वंय अपने ज्ञान का पालन करते और फिर लोगों को आदेश देते और इसी लिए इमाम ज़ैनुलआबेदीन ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें एसा ज्ञान प्रदान किया जाए जिसे वह स्वंय व्यवहारिक बनाएं क्योंकि जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया है कि कर्म के बिना ज्ञानी उस पेड़ की भांति है जिसमें फल न हों। वास्तव में ज्ञान को व्यवहारिक बनाने के बाद ही उसका लाभ ज्ञानी और समाज तक पहुंचता है।

आज की कहानी पैगम्बरे इस्लाम के युग से संबंधित है।

एक दिन की बात है एक व्यक्ति रोते बिलखते पैगम्बरे इस्लाम की सेवा में पहुंचा और कहने लगाः हाय हाय मैं अपने पड़ोसी का क्या करूं।

पैगम्बरे इस्लाम ने उस व्यक्ति से शांति रहने को कहा और फिर पूरी बात बताने का आदेश दिया। वह व्यक्ति मस्जिद में भूमि पर बैठ गया। उसके हाथ पैर कांप रहे थे। इसी दशा में उसने बोलना आरंभ कियाः मेरे कई बच्चे हैं, मेरा घर बहुत छोटा है किंतु मेरे पड़ोसी के पास खजूर का बड़ा सा बाग है। खजूर के एक पेड़ की डाल हमारे आंगन में लटकी है और मेरा पड़ोसी जब भी खजूर तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ता है तो कुछ खजूर मेरे आंगन में भी गिर जाते हैं और यदि मेरे बच्चे वह खजूर उठा लेते हैं तो मेरा पड़ोसी पेड़ से नीचे उतर पर खजूर उन से छीन लेता है चाहे मेरे बच्चे खजूर मुंह में ही क्यों न रख चुके हों।

पैगम्बरे इस्लाम थोडी देर तक मौन रहे और फिर कहा इंशाल्लाह ईश्वर तुम्हारी सहायता करेगा, धैर्य रखो।

पैगम्बरे इस्लाम ने उस व्यक्ति के पड़ोसी  का पता पूछा और उसी दिन बाग के मालिक से मिलने चले गये। उसने पैगम्बरे इस्लाम को देख कर आश्चर्य किया तो पैगम्बरे इस्लाम ने उस धनी व्यक्ति से कहा क्या तुम अपन बाग का वह पेड़ मुझे दे सकते हो जिसकी डाल तुम्हारे पड़ोसी के घर में गयी है? उसके बदले में ईश्वर तुम्हें स्वर्ग में एक खजूर का पेड़ देगा।

बाग का स्वामी जिसे ईश्वर और पैगम्बरे इस्लाम में आस्था नहीं थी, व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ कहने लगाः उस पेड़ में सब से अधिक खजूर होते हैं, नहीं मैं वह खजूर का पेड़ आप को नहीं दे सकता। यह कह कर वह पैगम्बरे इस्लाम के सामने से हट गया।

इसी मध्य एक अन्य व्यक्ति, जो पैगम्बरे इस्लाम और बाग के मालिक की बात सुन रहा था आगे बढ़ा और उसने कहा हे पैगम्बरे इस्लाम! यदि आप की अनुमति हो तो मैं उस पेड़ को बाग के मालिक से खरीद लूं।

पैगम्बरे इस्लाम ने मुस्करा कर कहा, हां अच्छी बात है।

वह व्यक्ति बाग के मालिक के पास गया और खजूर का पेड़ खरीदने के बारे में बात आरंभ की। बाग के मालिक ने कहाः क्या तुम्हें पता है कि मोहम्मद उस खजूर के पेड़ के बदले स्वर्ग में मुझे एक खजूर का पेड़ देने पर तैयार थे किंतु मैं ने कहा कि मुझे अपने इस पेड़ के खजूर बहुत पसन्द हैं।

उस व्यक्ति ने कहाः तुम्हें वह पेड़ बेचना है या नहीं ?

बाग के मालिक ने कहाः नहीं, हां अगर अच्छ मूल्य मिले तो बेच भी सकता हूं।

खरीदने वाले व्यक्ति ने कहाः उसका क्या मूल्य है?

बाग के मालिक ने कहाः उस पेड़ के बदले चालीस खजूर के पेड़ मुझे चाहिए।

खरीदने में रूचि रखने वाले व्यक्ति ने ठंडी सांस भरी और पीछे हट गया। यह उसकी कुल संपत्ति का आधा भाग था इस लिए उसने कहा, यह तो बहुत ज़्यादा है, एक पेड़ के बदले चालीस पेड़! यह कहां का न्याय है?

बाग का मालिक कंधे उचका कर आगे बढ़ गया। उस व्यक्ति का ध्यान पैगम्बरे इस्लाम में ही लगा था इस लिए उसने आगे बढ़ कर बाग के मालिक को रोका और कहा ठीक है मैं तुम्हें उस पेड़ के बदले चालीस पेड़ दूंगा।

वह व्यक्ति खुश होगया और दौड़ते हुए पैगम्बरे इस्लाम के पास गया और कहा हे ईश्वरीय दूत! मैंने वह पेड़ खरीद लिया और अब उसे आप को उपहार में देता हूं।

पैगम्बरे इस्लाम ने कहा ईश्वर तुम से प्रसन्न हो और तुम्हें स्वर्ग में खजूर का एक पेड़ दे। इसके बाद पैगम्बरे इस्लाम उस निर्धन व्यक्ति के घर में गये और उससे कहा कि आज से यह खजूर का पेड़ तुम्हारा और तुम्हारे बच्चों का है।

 निर्धन व्यक्ति ने कहा धन्य है ईश्वर जो तूने मेरी पुकार सुन ली। उस निर्धन के बच्चे खुश हो गये तभी कुरआने मजीद की यह आयत आयीः सौगंध है रात की जब वह संसार पर छा जाती है और क़सम है दिन की जब वह चमकता है और कसम है उसकी कि जिसने स्त्रीलिंग व पुलिंग बनाया, तुम्हारे प्रयास अलग अलग हैं तो जो ईश्वर के लिए दान देता है और ईश्वर से डरता है और उसकी ओर से अच्छे पारितोषिक में विश्वास रखता है हमे उसे सरल मार्ग पर लगा देते हैं किंतु जो कंजूसी करता है और इस मार्ग से स्वंय को आवश्यकतामुक्त समझता है तथा ईश्वर की ओर से अच्छे पारितोषिक का इन्कार करता है तो हम शीघ्र ही उसे कठिन मार्ग पर डाल देंगे।

 आइये अब इमाम अली अलैहिस्सलाम की ओर से अपने पुत्र इमाम हसन की दिये जाने वाले उपदेशों पर चर्चा करते हैं।

इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैः दुख को संयम व विश्वास की शक्ति से स्वंय से दूर कर दो। जो मध्यमार्ग को छोड़ देता है वह सही मार्ग से हट जाता है। और जान लो अच्छा मित्र और साथी मनुष्य के परिजन की भांति होता है और मित्र वही है जो मनुष्य की अनुस्पथिति में भी उसके हितों की रक्षा करे।

इमाम अली अलैहिस्सलाम इस वास्तविकता की ओर संकेत करते हैं कि जीवन अच्छी बुरी घटनाओं से भरा होता है और कभी कभी मनुष्य दुखी होता है और समस्याएं उसे घेर लेती हैं कही सामाजिक स्तर पर कभी राजनीतिक स्तर पर और कभी आर्थिक रूप स वह परेशान होता है तो कभी पारिवारिक समस्याएं होती हैं। मनुष्य यदि इन सब समस्याओं के सामने हार मान ले तो बड़ी जल्दी उसका पतन हो जाएगा किंतु वह दो प्रकार की शक्तियों द्वारा दुखों का निवारण कर सकता है सब से पहली शक्ति, धैर्य व संयम है। यदि मनुष्य  धैर्य व संयम से काम ले तो ईश्वर की ओर से उसे पारितोषिक मिलता है और यदि धैर्य व संयम न करे तो भी घटनाओं की प्रक्रिया अपनी ढगर पर चलती रहेंगी अलबत्ता धैर्य न करने के कारण समस्या में ग्रस्त व्यक्ति को कोई पुण्य भी नहीं मिलेगा। इसके अतिरिक्त मनुष्य में विश्वास की शक्ति भी होनी चाहिए अर्थात उसे यह समझना चाहिए कि ईश्वर के काम किसी न किसी कारण के अंर्तगत होते हैं भले ही हमें उसके सही कारणों का पता न हो।

प्रसिद्ध तत्तदर्शी हज़रत लुक़मान भी अपने पुत्र को उपदेश देते समय कहते हैं कि निश्चित रूप से जो भी धैर्य व संयम पर आधारित व्यवहार करता है तो उसका काम सही महत्वपूर्ण व सुदृढ़ होता है।

इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैं जो मध्यमार्ग को छोड़ देता है वह सही मार्ग से हट जाता है। इस वाक्य से इमाम अली का आशय यह है कि लोक परलोक की सुरक्षा सदैव मध्यमार्ग में है और किसी भी प्रकार की अधिकता व कमी पराजय व पतन का कारण बनती है और हम नमाज़ में जिस सीधे मार्ग पर चलने की हर दिन दुआ करते हैं वह यही संतुलन का मार्ग है।

इमाम अली अलैहिस्सलाम अच्छे मित्र को रिश्तेदार की भांति बताते हैं क्योंकि कभी कभी दोस्ती का रिश्ता इतना मज़बूत हो जाता है कि वह रिश्ते नाते का स्थान ले लेता है बल्कि कभी कभी रिश्तेदारी से भी अधिक हो जाता है। बड़ी प्रसिद्ध कहावत है कि किसी से  पूछा गया  मित्र बेहतर है या भाई? तो उस व्यक्ति ने कहा वह भाई जो मित्र हो सब से अधिक बेहतर है।

इस से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि रिश्तेदारों के लिए जो अधिकार रखे जाते हैं वही अधिकार अच्छे मित्रों के भी होते हैं इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मित्र वही है जो मनुष्य की अनुस्पथिति में भी उसके हितों की रक्षा करे। इमाम अली अपनी इस बात से इस वास्तविकता की ओर संकेत करते हैं कि जो लोग किसी की उपस्थिति में उससे प्रेम व लगाव प्रकट करते हैं तो यह इस बात का चिन्ह नहीं है कि वे वास्तव में उससे लगाव रखते हैं क्योंकि सच्चे मित्र का पता उसी समय चलता है जब मनुष्य अपने मित्र के सामने जो कुछ कहता हो वही सब कुछ उसकी अनुपस्थिति में भी कहे और जिस प्रकार से उसके सामने उसका मान सम्मान रखता है उसी प्रकार उसकी अनुपस्थिति भी उसके सम्मान की रक्षा करे।