सवेरे सवेरे-14
सवेरे सवेरे-14
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पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम का कहना है कि तुम लोगों में से वह मुझे सबसे अधिक प्रिय है जिसका स्वभाव सबसे अच्छा हो और जो सबसे अधिक विनम्र हो। अच्छे स्वभाव और विनम्र आचरण वाला व्यक्ति सदैव ही दूसरों के सम्मान का पात्र बना रहता है क्योंकि वह किसी का दिल नहीं दुखाता बल्कि दूसरों की सहायता करना चाहता है। वह लोगों के प्रति अपने मन में प्रेम की भावना रखता है। यह बातें जो मनुष्य के चरित्र, उसके व्यवहार और व्यक्तित्व को सुसज्जित करती हैं, तभी किसी के मन में आती हैं जब उसकी प्रवृत्ति में मौजूद ईश्वरीय प्रेम निखरकर सामने आ रहा हो। ईश्वर का प्रेम यूं तो सभी की प्रवृत्ति में मौजूद होता है परन्तु उसको उभारना और निखारना वास्तव में माता-पिता का दायित्व होता है। बच्चों का पालन-पोषण, माता-पिता के लिए एक जटिल परन्तु आकर्षक काम है। यद्यपि शारीरिक एवं मानसिक अर्थात ज्ञान संबन्धी विकास पर ध्यान देना अत्यधिक महत्वपूर्ण है और इसके आयामों मे दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है और इसकी आवश्यकता बहुत बढ़ रही है परन्तु जीवन मे हर रोज़ बढ़ती हुई आधुनिकता के कारण बहुत सी बातों का प्रशिक्षण भी आवश्यक हो गया है। इन बातों में धार्मिक रीति-रिवाजों को सिखाना, माता-पिता के अधिकारों से बच्चों को अवगत कराना, उनका और दूसरे अपने से बड़े लोगों का सम्मान करना लोगों की सहायता करना आदि यह सब वह महत्वपूर्ण बातें हैं जो यदि बचपन से बच्चे को न सिखाई गई हों तो वह एक स्वार्थी और परिवार के प्रति लापरवाह व्यक्ति बनकर समाज में क़दम रखता है। एक परिपूर्ण मनुष्य के लिए आवश्यक यह है कि वह अपनी संस्कृति, राष्ट्रीयता और सबसे बढ़कर अपने धर्म से पूर्णतयः परिचित हो। याद रखें कि अन्धविश्वास और वास्तविक धार्मिक नियमों में बहुत अंतर होता है। जब धर्म की बात की जाती है तो वास्तविक नियमों को दृष्टि में रखा जाता है। हम अपने जीवन में सारी योजनाएं और कार्यक्रम केवल भविष्य के लिए बनाते हैं इसीलिए अपने वर्तमान से न मानसिक रूप से लाभान्वित हो पाते हैं न ही उसका आनंद उठा पाते हैं। यदि हम अपना ध्यान वर्तमान क्षणों पर केन्द्रित करें तो पता चलेगा कि जीवन की वास्तविकता अपनी पूरी मिठास के साथ अभी इसी क्षण हमारे सामने मौजूद है। हम जो भी काम कर रहे हैं, चाहे वह दफ़्तर हो, स्कूल हो या घर उसमें आनंद लें। यह देखें कि ईश्वर ने हमें शक्ति दी है, समय दिया है और हम एक काम में लगे हुए हैं, यही गतिशीलता तो जीवन है। जी हां, एक ग्रहणी जल्दी-जल्दी पति और बच्चों के लिए नाश्ता बना रही है। बच्चे बीच-बीच में अपने कपड़ों, जूतों और मोज़ों के बारे में आकर प्रश्न भी कर रहे हैं। पति को भी एक से अधिक काम इसी समय याद आ रहे हैं। अब यदि गृहणी यह सोच-सोचकर खीजने लगे कि यह भी कोई जीवन है। नौकरों की तरह लगी हुई हूं। सारे काम मुझपर लदे हुए हैं। तो जीवन कड़वाहटों से भर जाएगा। जबकि अपनी सोच को सकारात्मक बनाकर अपनी झुंझलाहट को भी नियंत्रित कर सकती है और जीवन का आनंद भी ले सकती है। सोच यदि यह हो कि घर मेरे अधिकार में है, यहां की सारी बातें मेरी सहायता से ही होती हैं। कल यह बच्चे बड़े हो जाएंगे तो फिर इस प्रकार की मेरी सेवाओं को याद करेंगे, मेरे आभारी होंगे। मेरा पति यह सारे कष्ट परिवार के लिए ही तो उठा रहा है। मैं कितनी सौभाग्यशाली हूं कि जीवन के इस उतार-चढ़ाव में अपने पति के साथ इन सेवाओं में सहभागी हूं। यही उतार-चढ़ाव और यही सुन्दर क्षण तो जीवन हैं। यह भी कहा जा सकता है कि इतने अधिक कामों के बीच इस प्रकार की सोच का समय कहां से मिलेगा? तो इसके लिए एक मार्ग यह है कि अपने कामों के पश्चात कुछ समय बिल्कुल चुप रहकर व्यतीत करें। यह मौन आपके और भीड़भाड़ के बीच एक पर्दा सा खींच देता है। इस वातावरण में आपको स्वयं को पहचानने का समय मिलता है। इस समय आप अपने अन्तर्मन की आवाज़ सुन सकते हैं। मौन धारण करके आप उन वास्तविकताओं को स्वीकार कर सकते हैं जो जीवन की मिठास के संबन्ध में कही गई है। इस प्रकार आपके कार्य आपको अर्थपूर्ण और मूल्यवान लगने लगेंगे। मौन आपके मन की शांति का कारण बनता है और ध्यान केन्द्रित करने में आपकी सहायता करता है। कुछ दिन मौन धारण करके ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करके आपको अपने वर्तमान समय और वर्तमान क्षणों को दृष्टि में रखने और इस प्रकार वर्तमान जीवन का आनंद उठाने की आदत पड़ जाएगी। गर्मी की ऋतु में जब सूरज एसे चमक रहा हो कि लगे कि आग की लपटें हमारी ओर फेंक रहा है। आप सबसे पहला काम यह करें कि धूप का चश्मा लगा कर ही घर से बाहर निकलें। इसके अतिरिक्त दिन में कम से कम तीन बार अपनी आखों को ठंडे पानी से धोना चाहिए। आपके क्षेत्र में पानी यदि स्वस्थ्य रूप में आपके पास न पहुंचता हो तो जिस प्रकार पीने के पानी को उबालकर ठंडा करते और तब प्रयोग करते हैं उसी प्रकार आंखों के लिए भी उबालकर ठंडा किया हुआ पानी ही प्रयोग करें। गंदे हाथों से आंखों को न छुए। जहां तक हो सके लेंस का प्रयोग न करे, प्यास के बिना भी पानी और अन्य पौष्टिक द्रव्य पदार्थों का प्रयोग अधिक करें। डाक्टर से पूछकर आंखों को धोने के लिए विशेष क़तरे प्रयोग करें। आंखों की ओर से लापरवाही बहुत ही ख़तरनाक रूप धारण कर सकती है। इस बात को बिल्कुल न भूलें। http://hindi.irib.ir/